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बुजुर्ग नेताजी बोल रहे...अभी तो मैं जवान हूं... जानें सत्ता के गलियारे का हाल

नेताजी हाजिर जवाब हैं तत्काल पलटवार भी कर देते हैं। लेकिन उन्हें भी पता है बात इतने से बनने वाली नहीं है। युवा होने का सार्टिफिकेट देना ही होगा।

By Alok ShahiEdited By: Published: Sat, 26 Oct 2019 07:48 PM (IST)Updated: Sat, 26 Oct 2019 07:48 PM (IST)
बुजुर्ग नेताजी बोल रहे...अभी तो मैं जवान हूं... जानें सत्ता के गलियारे का हाल
बुजुर्ग नेताजी बोल रहे...अभी तो मैं जवान हूं... जानें सत्ता के गलियारे का हाल

रांची, [जागरण स्‍पेशल]। झारखंड में विधानसभा चुनाव की घोषणा अब कभी भी हो सकती है। पक्ष और विपक्ष दोनों अपनी तैयारियों में जुटा है। नेता-कार्यकर्ता भी अपने हिसाब से मतदाताओं को साधने में लगे हैं। ऐसे में हर पार्टी में उम्‍मीदवारी के रूप में इनाम की प्रत्‍याशा लगाए नेताओं की ओर से दावेदारी भी जमकर हो रही है। आइए जानते हैं सत्‍ता के गलियारे का हाल....

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अभी तो मैं जवान हूं

उम्र का पैमाना जब टिकट का आधार बनने लगे, तो छटपटाहट लाजिमी है। अपने शहरी विकास की बागडोर संभालने वाले मंत्री जी भी इन दिनों कुछ बेचैन हैं। हालांकि, बहुत उम्रदराज नहीं हैं, लेकिन फिर भी गाहे-बगाहे जो मिलता है, उनसे उनकी उम्र पूछने लगता है। हाजिर जवाब हैं, तत्काल पलटवार भी कर देते हैं। लेकिन, उन्हें भी पता है, बात इतने से बनने वाली नहीं है। युवा होने का सार्टिफिकेट देना ही होगा। सो, कुर्ता-पैजामा त्याग पहन ली पैंट-कमीज और पहुंच गए कमल दल के मुख्यालय। जोखिम लेकर किसी तरह सांस खींचकर तीन तल्ले तक बिना लिफ्ट के चढ़ भी गए। बड़े-बड़ों को धर्म संकट में डाल दिया। मैसेज साफ था, अभी तो मैं जवान हूं।

रैली की भीड़ को जनादेश मान बैठे हुजूर

साहब ने रैली में भीड़ क्या देखी, उसे जनादेश ही मान बैठे। तबसे बहकी-बहकी बातें कर रहे हैं। अभी  तक झार प्रदेश में महागठबंधन तक ने शक्ल नहीं लिया है, परंतु व्यवहार पूरी तरह से मुख्यमंत्री वाला हो गया है। लालबाबू लैपटॉप योजना की घोषणा तक कर डाली। योजना का लाभ लेने के लिए तिथि तक मुकर्रर कर दी, फोन नंबर तक एनाउंस कर डाला। यह देख बगलगीर को रहा नहीं गया। सामने से बोलने की हिम्मत नहीं थी, बुदबुदा उठा। हुजूर 28 महीने का मुख्यमंत्रित्व काल बीत गया। अब तो जागिए, कौन अपना और कौन पराया, पहले ढूंढ लाइए, फिर सरकार बनाइए।

लौट कर 'नेताजी' घर को आए

नेताजी कभी दूसरों को 'ऊर्जाÓ देते थे। अब स्वयं ऊर्जा विहीन हो चुके हैं। पांच साल पहले काफी मशक्कत से स्वयं को ऊर्जावान बनाने वाली पार्टी को छोड़कर भगवा रंग में रंग गए थे। वहां उनकी कोई चाल नहीं चली। अब नेताजी लौटकर वापस आ गए हैं। लेकिन, अब इस पार्टी में इतनी ऊर्जा नहीं बची कि उनको ऊर्जावान बना सके। नेताजी डुमरी से ही चुनाव लडऩे की घोषणा भी कर दी है। बड़े गर्व से कहते हैं, कभी उनकी जमानत जब्त नहीं हुई। अब उन्हें कौन समझाए कि वर्तमान दशा-दिशा तो कुछ ऐसी है कि जमानत बचना मुश्किल है। 


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