नेताजी के सुझावों का मोल ही नहीं, हुजूर ध्यान ही नहीं दे रहे; पढ़ें सियासत की खरी-खरी
Political Gossip in Jharkhand. तमाम सुझाव रद्दी की टोकरी में चले जा रहे हैं। नेक बगलगीर सांत्वना दे रहे हैं कह रहे हैं कि यहां कोई जौहरी नहीं बैठा जो आपकी कद्र करे।
रांची, आनंद मिश्र। कहते हैं, ओल्ड इज गोल्ड। बात में दम भी है। रेटिंग कैटेगिरी में दम तोड़ते दूरदर्शन ने रामायण और महाभारत ऐसा अपना गोल्ड कलेक्शन लॉक डाउन में निकला तो तमाम निजी चैनलों ने दम तोड़ दिया। दूरदर्शन की रेटिंग फर्राटा मारते कब पहले पायदान पर पहुंच गई, पता ही नहीं चला। अपने झारखंड के भी कई गोल्डन किरदार हैं। सोने की तरह खरे और हीरे की तरह चमक रखने वाले। कई तो राज्य की कमान तक संभाल चुके हैं, संकट की घड़ी में खरे-खरे सुझाव भी हुजूर को दे रहे हैं। एक ने तो बकायदा पोस्टल सर्विस खोल दी है। कांके रोड तक बिना रुके संदेश, सुझावों की पोटली में बांधकर प्रतिदिन पहुंचा रहे हैं, लेकिन हुजूर ध्यान ही नहीं दे रहे हैं। तमाम सुझाव रद्दी की टोकरी में चले जा रहे हैं। नेक बगलगीर सांत्वना दे रहे हैं, कह रहे हैं कि यहां कोई जौहरी नहीं बैठा जो आपकी कद्र करे। फटेहाल लोग सोने की कीमत क्या जानें?
सितारे गर्दिश में
हुजूर का इकबाल बुलंद रहे। समय की नजाकत के साथ अपने दल के पॉलिटिकल एजेंडे को मुश्किल दौर में भी थामे हुए हैं, लेकिन कुछ पनोती 'हाथÓ वालों को विरासत में मिली है, पीछा ही नहीं छूटता। बमुश्किल साझे की सत्ता मिली, वह भी खजाने की बागडोर के साथ। रांची से दिल्ली तक की बांछें खिली हुई थीं, लेकिन खजाने का द्वार खुला तो ठन-ठन गोपाल। पीछे वालों ने धेला तक नहीं छोड़ा था। सांस लेते तब तक तालाबंदी हो गई। उधर, मैडम लॉकडाउन में भी हाईटेक संसाधनों के माध्यम से टास्क सौंप रहीं हैं, किसानों की कर्ज माफी का क्या हुआ? अब क्या बताएं कि यहां तो सितारे गर्दिश में चल रहे हैं। अपना नाम खुद जप रहें है इन दिनों। राम नाम में शक्ति भी बहुत है। अब तो राम ही करेंगे बेड़ा पार।
काम का नुस्खा
समय-समय का फेर है। कमल दल वालें करें तो लीला और हाथ वालें करें तो पाप। अब क्या करोगे, उनकी तो सियासत की पतंग ही राम भरोसे उड़ रही है। कृपा वहीं से आ रही है। ऐसे ही थोड़ी न कोई तालाबंदी में तीन-तीन स्टेट पार कर झारखंड पहुंच सकता है। जनता की चिंता में दुबले हुए जाते थे वहां, भगवान का नाम लिया और पहुंच गए। अब पटको जितना सिर पटकना है। इधर, सत्ताधारी दल मोर्चाबंदी भी ठीक तरह से नहीं कर पा रहे हैं। एक हाथ वाले छोटे नवाब ही हैं जो दे रहे हैं खरी- खरी। सर्टिफिकेट मांग लिया है। कहते हैं दिखाओ, कैसा होता है। हम भी अपने भाइयों के लिए वैसा ही बनवाएंगे और उन्हें वापस लाएंगे। अब कमल दल वाले अपना नुस्खा क्योंकर बताने लगे? इस नुस्खे में बड़ा दम है, यूपी वालों ने कोटा से 250 बस भरकर बच्चों को बुलवा लिया। वो भी हाथ वालों के स्टेट से। बड़े काम का पुर्जा है, यूं ही थोड़ी न हाथ लगने देंगे।
दुखती रग
हुजूर का मन राजपाट में ज्यादा रम नहीं रहा है। वैसे भी काहे का अपना राज। इससे अच्छा तो पहले थे। जब चाहा मन की भड़ास निकाल ली। हिसाब-किताब तुरंत ले लिया। अब हर बात के पहले सोचना पड़ता है कि कहीं ऊपर वाले नाराज हो गए तो अच्छे दिन का अंत ही समझो। बस उतनी ही रफ्तार से चला रहे कि बस किसी को ठहर जाने का अहसास नहीं हो। कहां सपने देखे थे कि सारे घर के बल्ब बदल जाएंगे लेकिन यहां तो एक पर ही दो-चार घरों का लोड है। इतनी धुकधुकी लगी रहती है कि न दिन की चैन है न रातों का आराम। न जाने कैसे बीतेंगे आने वाले पांच साल, यही सोच कर दिल बैठा जा रहा है।