माननीय गरम हैं, कह रहे हैं अपना टाइम आएगा; पढ़ें सियासत की खरी-खरी
Jharkhand Political News. कल तक डबल इंजन था तो हाथों-हाथ लिए रहते थे। इंजन फेल हो गया तो रसद-पानी भी उठा लिया गया।
रांची, [आनंद मिश्रा]। दिल्ली वालों की दिल्लगी, दिल्ली वाले ही जानें। हम झारखंडी तो दिल पर ले लेते हैं। यहां तो अपमान के आंसू खाए जाते हैं हुजूर को। बताओ यह कोई बात हुई। घंटा भर स्क्रीन पर टकटकी लगाए अपने नंबर का इंतजार करते रहे और नंबर आया ही नहीं। पिछली बार भी ऐसा ही किया था ऊपर वालों ने। कल तक डबल इंजन था तो हाथों-हाथ लिए रहते थे।
इंजन फेल हो गया तो रसद-पानी भी उठा लिया गया। ऐसे में खीज तो उठेगी ही और किसी न किसी पर निकलेगी भी। मुखिया जी ही नहीं, अपने सेहत वाले माननीय भी गरम हैं। कह रहे हैं कि अपना टाइम आएगा। इधर, कमल दल वाले मामले को रफू करने में जुटे हैं। अब उन्हें कौन बताए कि मामला रफू का नहीं, पैबंद का है और पैबंद भी इतना बड़ा कि सवा तीन करोड़ जनता को साफ दिख रहा है।
मुश्किल में जान
कोरोना ने सबकुछ छीन लिया है। दिन का चैन और रातों की नींद गायब है। हुजूर की किस्मत ही कुछ ऐसी है। कैबिनेट का बंटवारा हुआ, तो इन्हें आधा-अधूरा विभाग मिला। पहले इसका अहसास तक नहीं था। सोचा जमीन वाला महकमा टाइप करना भूल गया टाइपिस्ट। सो, बगैर देरी किए पहुंच गए थे चार्ज लेने चचा। वहां बड़ी मुश्किल से समझाकर भेजा गया कि ये वाला विभाग नहीं मिला आपको।
बेचारे तमतमाए भीतर जाकर मिले तो वहां से भी टका सा जवाब मिला। वे इस झटके से उबरे नहीं थे कि कोरोना ने हिलाकर रख दिया। लाख कहते फिर रहे कि हमारा बालक तो दिल्ली गया नहीं, लेकिन दुश्मनों ने एक नहीं मानी। अब आधा-अधूरा विभाग कहीं हाथ से फिसल गया तो कोरोना को कोसते ही रह जाएंगे। सो, चुपचाप सत्ता की धार में बह रहे हैं। बुजुर्ग हैं और जानते हैं कि चुप्पी ही इलाज है।
ताड़ गए हाकिम
काम करो नहीं, काम से डरो नहीं। काम करो या न करो, काम की फिक्र जरूर करो। अफसरों के यह पुराना फंडा है और इस पर सोशल साइट्स का सहारा मिल जाए तो बात ही क्या। कुछ फोटो डालो, बैठे-बैठे वाहवाही लूटो। लेकिन बड़े हाकिम की आंखों में धूल झोंकना आसान नहीं है। घाट-घाट का पानी पिया है। सोशल साइट्स के जरिए नौकरी बजाने वाले अफसरों को साहब ने ताड़ लिया है।
सख्त ताकीद की कि इस प्रवृत्ति से बाहर निकलें, फील्ड में जाएं। सात-सात टास्क फोर्स अलग से बना दी। चार ओएसडी भी बना दिए गए हैं। सूची में नाम आते ही तमाम साहबों के होश उड़े हुए हैं। हाकिम की सख्ती से सभी वाकिफ हैं, इधर कुंआ उधर खाई। फरमान पर अमल करें, तो खुद का सुख-चैन आड़े आता है न करें तो कोप का भाजन बनें। खैर सभी हुक्म बजाने में लग गए हैं।
दिमाग की बत्ती
कमल दल वाले बत्ती जलाने और बुझाने के माहिर खिलाड़ी हैं। इनके दिमाग की बत्ती जली नहीं कि सामने वाले की बत्ती गुल हो जाती है। मौका कोई भी हो चौका लगा ही देते हैं। ऐसे ही नहीं देश भर में इनका राजनीतिक ग्राफ चढ़ा हुआ है। पूरे देश को एक सूत्र में बांध दीया-टार्च जलवा दी। दल से जुड़े एक सज्जन बता रहे थे कि हमने तो एक तीर से दो शिकार कर लिए।
40वें स्थापना दिवस की पूर्व संध्या पर देश भर के लोगों से दीया जलावा लिया। अब हाथ वाले, हाथ मल रहे हैं और तीर कमान वालों का धनुष इस राजनीतिक धर्मयुद्ध में उठ ही नहीं रहा है। मौका ही ऐसा है। दिल की बात जुबां पर भी नहीं ला सकते। न जाने क्या मायने निकाल लिए जाए। फिलहाल चुपचाप अपना काम करने में लगे हैं और माकूल समय की तलाश में भी।