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चाय के प्याले में राजनीतिक चर्चा का तूफान

प्रभात गोपाल झा रांची रांची की अपनी एक अलग दुनिया है। अजब रंग है। थोड़ा सा मायावी भी। यहां राजनीति की अपनी समझ रखने वाले लोग हैं।

By JagranEdited By: Published: Sat, 20 Apr 2019 07:03 AM (IST)Updated: Sat, 20 Apr 2019 07:03 AM (IST)
चाय के प्याले में राजनीतिक चर्चा का तूफान
चाय के प्याले में राजनीतिक चर्चा का तूफान

प्रभात गोपाल झा, रांची : रांची की अपनी एक अलग दुनिया है। अजब रंग है। थोड़ा सा मायावी भी। यहां राजनीतिक सरगरमी का वैसा जोश ऊपरी तौर पर नजर नहीं आता। शहर ऊपर से शांत लगता है, लेकिन इसके चौक-चौराहों, मैदानों और गलियों में बतकही का ऐसा दौर सजा है कि लोग इससे अनजान या अनछुआ नहीं रह सकते। फिलहाल मौसम चुनाव का है और शहर के मोरहाबादी मैदान में इसकी झलक साफ दिखाई पड़ती है। सुबह, दोपहर और शाम. तीनों वक्त युवा, बुजुर्ग और महिलाएं चुनाव में कौन जीतेगा? यही अटकलबाजी करते नजर आएंगे। शिबू सोरेन के आवास के सामने तो चाय की चुस्कियों के बीच राजनीतिक बतकही का दौर चलता रहता है। यहां रांची कॉलेज, हॉस्टल के युवा से लेकर विभिन्न वर्गो से जुड़े सदस्य जमा होते रहते हैं। राजेश, मोहित और विजय ऐसे ही कुछ युवा हैं, जो शुक्रवार को वहां जमा थे। लगातार तर्को का दौर चालू था। कोई भाजपा को जिताता रहता है, तो कोई कांग्रेस को। आसपास मौजूद कई लोग भी तीसरी पार्टी या झामुमो के पक्ष में जमकर तकरार करते दिखते हैं। कई लोग ऐसे रहते हैं, जो तटस्थ की भूमिका में दिखते हैं। उनका साफ तर्क रहता है कि जो बेहतर प्रत्याशी होगा, उसे वह जिताएंगे। अब शिबू सोरेन आवास से थोड़ा आगे बढि़ए, तो बापू की प्रतिमा कुछ कहती नजर आती है। उम्र के अंतिम पायदान पर खड़े बुजुर्ग देश की स्थिति पर चिंता जाहिर करते हैं। लेकिन उनकी आंखों में उम्मीद की एक लौ भी टिमटिमाती नजर आती है। वह कहते हैं कि हमने तो इंदिरा और इमरजेंसी का भी दौर देखा है। वीपी सिंह का भी और राजीव का भी। कोई भी जीते, आदमी सही होना चाहिए। कई लोग मोदी जी के पक्ष में दमदार तर्क देते नजर आते हैं। वहीं यह भी कहते हैं कि विश्वास तो केजरीवाल पर भी था। आसपास मौजूद फूड ट्रक के पास खड़े युवा एकटक उनके ख्यालात से रूबरू होने की कोशिश करते रहते हैं। इधर शहर के हरमू में सहजानंद चौक के अगल-बगल मौजूद दुकानों और प्रतिष्ठानों में मोहल्ले के लोग जुटते और चर्चा करते दिख जाएंगे। उनका सटीक आकलन ज्यादातर बहती हवा को टटोलने पर निर्भर रहता है। कई तो खुद को एक पार्टी विशेष के आंकड़े को लेकर पूरे विश्वास से दावा करते नजर आएंगे। भले ही वह कल की तारीख में फेल हो जाए। चर्चा का दौर ऐसा पहले शायद ही शहर में दिखा होगा। ऊपर से शांत दिखने वाले शहर के लोगों की धड़कनों में राजनीति बसती दिखती है।

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शाम के वक्त शहर के बरियातू पहाड़ी मैदान में इलाके के युवा खेलते-खेलते विमर्श की अलग दुनिया रच डालते हैं। ठंडी हवा के झोंके के बीच कुछ होने या कर गुजरने की तमन्ना है, लेकिन राजनीतिक आबोहवा को जानकर सभी खामोश हैं। सबको इंतजार चुनाव के परिणाम का है। कुछ तो होगा। कोई खास आएगा। लेकिन कौन आएगा. यही सबके सामने रहस्य। सबने देश की किस्मत को फिलहाल समय पर छोड़ दिया है।


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