हकीकत में है जो मांझी किनारा ढूंढ लेता है..
दैनिक जागरण के ब्रांड झारखंड पेज के फेसबुक लाइव पर शुक्रवार को आनलाइन अंतरराष्ट्रीय कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया।
जागरण संवाददाता, रांची : दैनिक जागरण के ब्रांड झारखंड पेज के फेसबुक लाइव पर शुक्रवार को आनलाइन अंतरराष्ट्रीय कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। इसमें देश-विदेश के कवि और कवयित्री जुड़े। कवियों ने एक से बढ़कर एक रचनाएं सुनाकर श्रोताओं का भरपूर मनोरंजन किया। साथ ही सम्मेलन के दौरान कमेंट के जरिए आने वाली श्रोताओं की फरमाइशें भी पूरी की। कवियों ने कोरोना काल में इस तरह के लाइव कार्यक्रम के आयोजन और कवियों को मंच देने के लिए दैनिक जागरण को धन्यवाद दिया।
जर्मनी से डा. शिप्रा शिल्पी ने सरस्वती वंदना से कार्यक्रम की शुरुआत की। मंच संचालन कर रहीं कवयित्री डा. ममता वाष्र्णेय ने नीरज की कविता व गीत की पंक्तियों से काव्य पाठ की शुरुआत की। अलीगढ़ की कवयित्री डा. ममता वाष्र्णेय ने सुनाया- हकीकत में है जो मांझी किनारा ढूंढ लेता है, वो अक्सर तीरगी में भी उजाला ढूंढ लेता है..। जर्मनी से डा. शिप्रा शिल्पी ने सुनाया- चांदनी ने सुन लिया एक मीठा ख्वाब फिर खामोशियों से बुन लिया..। किशोर पारीक किशोर ने देह ने तटबंध सारे तोड़ डाले दोष सारा फागुनी मौसम का प्रियतम, ठूंठ में भी कोपलें दिखने लगी है तुम ही कहो हम होश में कैसे रहें..। अमेरिका से अर्चना पंडा ने पढ़ा- माथे पर हिदी की बिदी इंग्लिश का सम्मान भी है, नए जमाने के हैं लेकिन संस्कारों का ध्यान भी है। रोम-रोम में रामायण है, मगर बाइबिल ज्ञान भी है, अमेरिका से पहले मेरे दिल में हिन्दुस्तान भी है..। मास्को से श्वेता सिंह उमा ने पढ़ा- दरख्तों से बिछुड़ते पत्ते की सरसराहट तो देखो, इंसान के ईमान में हो रही गिरावट तो देखो। शमशीर को खून की लत लग चुकी है, जंगे मैदान में फतह की हड़बड़ाहट तो देखो..।