निमोनिया से फेफड़े में गंभीर बीमारी का खतरा
जागरण संवाददाता राची इंडियन एकेडमी ऑफ पेडियाट्रिक्स(आइएपी) झारखंड चेप्टर द्वारा आयोजित कार्यक्रम का समापन हुआ।
जागरण संवाददाता, राची : इंडियन एकेडमी ऑफ पेडियाट्रिक्स(आइएपी), झारखंड चेप्टर द्वारा आयोजित दो दिवसीय शिशुरोग विशेषज्ञों का वार्षिक सम्मेलन पेडिकॉन का रविवार को रिम्स ऑडिटोरियम में समापन हो गया। सम्मेलन के दूसरे दिन पीएमसीएच, पटना के शिशु रोग विभाग के सह प्राध्यापक डॉ. अवध अग्रवाल ने निमोनिया के उपचार पर विस्तार से जानकारी देते हुए बताया कि निमोनिया से फेफड़े में गंभीर संक्रमण होने से जानलेवा साबित होता है। इससे बचने के लिए शून्य से पाच वर्ष तक के बच्चों को निमोनिया का दो टीका(वैक्सीन) दिलाना जरुरी है। इस टीके से बच्चों को निमोनिया से बचाया जा सकता है। नये रिकोमेंडेशन के अनुसार अब पाच से 17 वर्ष तक के बच्चों एवं 50 वर्ष से ज्यादा उम्र के लोगों में भी निमोनिया के लक्षण पाए जा रहे है। इससे बचने के लिए निमोनिया का एक डोज वैक्सीन से इस गंभीर बीमारी से बचा जा सकता है।
डॉ. अग्रवाल ने कहा कि छोटे बच्चों के बढ़ते मृत्यु का प्रमुख कारण निमोनिया और डायरिया है। पाच वर्ष तक के बच्चों में निमोनिया एवं डायरिया से मृत्यु की ज्यादा संभावना रहती है। वायरल डायरिया दो वर्ष से कम के बच्चों में ज्यादा होता है। वहीं रोटा वायरस डायरिया दो वर्ष से ज्यादा उम्र के बच्चों में होता है। इस बीमारी को हम हाइजिन करके नहीं रोक सकते इसके लिए वैक्सीन जरुरी है।
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प्रोबाइटिक से एंटिबायटिक प्रयोग कर सकते हैं कम
एपीआइ, झारखंड के सचिव एवं जमशेदपुर के शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. जय भादुड़ी ने कहा कि हमारे शरीर में लाखों बैक्टेरिया है जिसमें कुछ अच्छे और कुछ खराब बैक्टेरिया है। प्रोबाइटिक दवा के माध्यम में शरीर में हम अच्छे बैक्टेरिया प्रवेश कराकर खराब बैक्टेरिया पर प्रहार कर उसे खत्म कर सकते हैं। इससे एंटिबायटिक का प्रयोग भी कम हो जायेगा।