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झारखंड में जल्द प्रभावी होगा 'पेसा'

रांची पांचवीं अनुसूची राज्यों में शामिल झारखंड में पेसा यानी कि पंचायतों के प्रावधान (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम-1996 के प्रभावी होने की संभावना बढ़ गई है। सरकार ने इससे संबंधित ड्राफ्ट तैयार कर लिया है। सक्षम प्राधिकार के अनुमोदन के बाद इसे लागू करने की तैयारी है।

By JagranEdited By: Published: Wed, 15 May 2019 07:48 AM (IST)Updated: Wed, 15 May 2019 07:48 AM (IST)
झारखंड में जल्द प्रभावी होगा 'पेसा'
झारखंड में जल्द प्रभावी होगा 'पेसा'

रांची : पांचवीं अनुसूची राज्यों में शामिल झारखंड में पेसा यानी कि पंचायतों के प्रावधान (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम-1996 के प्रभावी होने की संभावना बढ़ गई है। सरकार ने इससे संबंधित ड्राफ्ट तैयार कर लिया है। सक्षम प्राधिकार के अनुमोदन के बाद इसे लागू करने की तैयारी है।

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पेसा को प्रभावी करने में हो रही लेटलतीफी पर राष्ट्रीय जनजाति आयोग की तल्ख टिप्पणी के बाद राज्य सरकार ने यह जवाब आयोग को भेजा है। इधर आयोग ने मुख्य सचिव को एक पत्र भेजा है, जिसमें पेसा की गाइडलाइन के आधार पर तैयार ड्राफ्ट के अनुमोदन की प्रक्रिया तेज करने को कहा गया है। आयोग ने इसी तरह आदिवासियों के लगभग दर्जन भर मसलों पर सरकार का ध्यान आकृष्ट कराया है। साथ ही इससे संबंधित रिपोर्ट तलब की है।

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क्या है पेसा कानून :

पेसा के अनुसार पांचवीं अनुसूची क्षेत्रों में पंचायती राज व्यवस्था को आदिवासी समुदाय के गांव, समाज, पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था और संस्कृति के अनुरूप लागू किया जाना है। पेसा में निहित प्रावधान की बात करें तो गांव की ग्रामसभा, जिसमें गांव के सभी मतदाता सदस्य होंगे, ही सामुदायिक संपत्तियों जैसे जल, जंगल, जमीन आदि की मालिक होंगे। कहा जा सकता है कि पेसा पांचवीं अनुसूची आदिवासियों की स्वशासन प्रणाली के संरक्षण और उनके सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक विकास के लिए संवैधानिक ढांचा देती है।

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संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप की टिप्पणी :

संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप के अनुसार आदिवासियों के हितों की रक्षा के लिए भारत में जो भी कानून हैं, वह दुनियां में सबसे अच्छे हैं, परंतु उसका क्रियान्वयन नहीं हो रहा। राज्य सरकारें यह कहकर इसे टालती रही कि पेसा को प्रभावी बनाने के लिए नियमावली ही नहीं बनी। सवाल यह कि यह जिम्मेदारी किसकी है। केंद्र ने इससे संबंधित मॉडल नियम बनाकर संबंधित राज्यों को भेज दिया, परंतु राज्य ने इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया।

(सुभाष कश्यप ने यह टिप्पणी

संविधान की पांचवीं अनुसूची पर रांची विवि के आर्यभट्ट सभागार में आयोजित व्याख्यान में 11 नवंबर 2018 को की थी।)

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आयोग की सरकार को नसीहत :

- स्थानीयता नीति का कड़ाई से हो अनुपालन। इससे जुड़ी शिकायतों को दूरे करे सरकार।

- भ्रम की स्थिति उत्पन्न न हो। जनता को पारदर्शी तरीके से सूचनाएं उपलब्ध कराएं।

- उचित ढंग से लागू करें आरक्षण नीति के प्रावधान।

- विकास की बुनियादी आवश्यकता है शिक्षा। अनुसूचित जनजाति के बच्चों से संबंधित छात्रावास और छात्रवृत्ति से जुड़ी समस्याएं दूर करें।

- अनुसूचित जनजातियों की समस्याओं के निराकरण के लिए अनुसूचित जनजाति आयोग का करें गठन।

- रोजगार की तलाश में बाहर जाने वाले युवक-युवतियों में से कितने का पिछले तीन वर्षो में शारीरिक और मानसिक शोषण हुआ, बताए सरकार।

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जाति प्रमाणपत्र के लिए महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ का फार्मूला अपनाएं :

पत्र में अनुसूचित जनजातियों के नाम जाति प्रमाणपत्र जारी करने में आ रही दिक्कतों की ओर भी इशारा किया गया है। इस समस्या के निदान के लिए आयोग ने महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ का फार्मूला अपनाने का नसीहत दी है। आयोग ने इसके लिए जहां स्पष्ट अधिनियम बनाने की बात कही है, वहीं इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय में दिए गए निर्देशों का अनुपालन सुनिश्चित करने को कहा है।

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पत्थलगड़ी मामले में निर्दोष न फंसे, सुनिश्ििचत करें :

पत्थलगड़ी को लेकर पिछले वर्ष मचे बवाल के मामले में आयोग ने स्पष्ट कहा है कि इसमें कोई निर्दोष न फंसे, सरकार यह सुनिश्चित करे। ऐसे संवेदनशील मामले में प्रशासन परस्पर संवाद स्थापित कर सौहार्द का माहौल बनाने की कोशिश करे। इससे इतर कानून का उल्लंघन करने वालों के विरुद्ध वैधानिक कार्रवाई की जाए। कोचांग सामूहिक दुष्कर्म कांड की तथ्यात्मक रिपोर्ट आयोग को मुहैया कराए।

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100 में चार रुपये के उत्पाद आदिवासियों से खरीदे सरकार :

जनजातियों की आर्थिक स्थिति समृद्ध करने के निमित्त आयोग ने सरकार के स्तर पर होने वाली कुल खरीदारी का चार फीसद हिस्सा आदिवासियों से खरीदे जाने का निर्देश दिया है। आयोग ने इस संबंध में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम विभाग के दिशानिर्देशों का हवाला दिया है। इसके दायरे में केंद्र एवं राज्य सरकार के अधीन कार्यरत सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम भी आएंगे। आयोग ने सरकार से यह पूछा है कि पिछले तीन वर्षो में इस नियम का कितना अनुपालन हुआ।

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