Weekly News Roundup Ranchi: बाबा की दुकान पर भक्तों की भीड़, बिक्री से पहले बुकिंग की जिद
Weekly News Roundup Ranchi. दुकानदार बड़े धर्म संकट में हैं। कह रहे हैं कि आएगा तो रखेंगे क्यों। बेचेंगे ही न। पर भक्त कहां मानने वाले हैं।
रांची, [ब्रजेश मिश्र]। Patanjali Corona Medicine यूं तो बाबा का लोहा सब मानते हैं। अनुलोम-विलोम से अष्टांग योग तक बाबा का ब्रांड है। 24 घंटे पहले बाबा ने धमाका किया। 24 घंटे बाद भक्तों ने एंट्री ले ली। राजधानी में सुबह सबेरे पतंजलि की कई दुकानों पर भक्त पहुंच गये। बोले बाबा वाला कोरोना किट दे दीजिए। बेचारे, दुकानदार बड़े धर्म संकट में पड़े। बताया, भाई अभी नहीं आया। बाबा ने तो कल ही बताया। एक हफ्ते लगेंगे। भक्त कहां मानने वाले, कहा, अरे तो बुकिंग कर लीजिए। आएगा तो पहले मिल जाएगा। दुकानदार विशेषज्ञ की भूमिका में आ गये। हरे भईया, अभी देर है। थोड़ा सब्र कर लो। आएगा तो रखेंगे क्यों, बेचेंगे ही। भक्त उबल पड़े। बाबा जी ने कहा है बुकिंग होगी। वह तो कीजिए। दुकानदारों को बोलते नहीं बन रहा। बड़ी मुसीबत गले पड़ गई है। दवा न हुई, हड्डी हो गई। लाएं तो कहां से बताएं तो क्या।
जमीन वाले नेताजी
विधायक जी बड़े जमीनी हैं। यह किसी और ने नहीं सुनाया। नेताजी ने खुद फरमाया। कहा, जमीन से जुड़े हैं, माध्यम पर भरोसा नहीं करते। पूर्व के अनुभव कड़वे रहे हैं। कहते कुछ हैं, आता कुछ है। सो, जनता से सीधा संवाद कायम करते हैं। ठीक ही है, लोकतंत्र में कुछ तो जमीनी है बंधु। वरना, खुद को जमीनी कहने वाले कब हवाई हो जाते हैं, पता ही नहीं चलता। शुक्र है, जांच एजेंसियों का। सत्ता की हवा बदलने के साथ जमीन और आसमान का भेद मिटा देती हैं। कभी जो अर्श पर होते हैं, उन्हें फर्श पर खड़ा कर देती हैं। जिनकी जनसेवा चरम उत्कर्ष से पहुंचती है, उन्हें पुण्य फल का लाभ दिलाती हैं। कृष्ण जन्म स्थल के दर्शन कराती हैं। निवास का सौभाग्य दिलाती हैं। जमीनी प्रतिनिधि भी जन्मों के आधे बंधन पूरे कर चुके हैं। कभी मंत्री बनकर, कभी पार्टी बदलकर, कभी जेल भ्रमण कर।
कालिख की कोठरी
कालिख की कोठरी में बेदाग निकल जाना। यूं तो यह कहावत है। कुछ लोग हकीकत बना लेते हैं। कप्तान साहब ने जब से जिले की कमान संभाली। थाने पर मनचाही पोस्टिंग का धंधा बंद हो गया। नीचे वाले की निगाहें, जरूर मछली की आंख पर होती है। निशाना नहीं लग रहा। कई दरवाजे खटखटा लिए, बस टका सा जबाव, फोन कर के क्या फायदा। हंस कर टाल देंगे। मंत्री से लेकर विधायक तक कप्तान साहब की इस कला से वाकिफ हैं। साहब किसी की नहीं सुनते। पैरवी को कतई नहीं। चाहें जहां से करा लीजिए। बड़े प्यार से कह देते हैं, देखिए यह तो नहीं हो सकता। साहब की खाकी पर अब तक एक भी दाग नहीं है। पूववर्ती सरकार में सत्ताधारी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष के फरमान को नजरंदाज कर दिया। इस चक्कर में जल्दी तबादले का फरमान आ गया।एक जिले से दूसरे जिले। साहब वसूलों पर कायम रहे।
फोटो वाले कोतवाल
साहब का शहर के थाने से गहरा लगाव है। घुम-फिर कर रांची लौट ही आते हैं। कैमरे से प्यार भी बहुत पुराना है। छोटी-मोटी पाटिर्यों से अक्सर सुर्खियों में भी बने रहते हैं। कभी लोगों को मदद करने वाले मसीहा बन जाते हैं। कभी लोगों की दवा पहुंचाने वाले देवदूत। मानो, वर्दी तो केवल शौक के लिए पहन ली है। असल उद्देश्य समाज सेवा ही है। पुलिस में रहते हुए अगर ऐसी छवि बन जाए तो काली करतूत बिल्कुल सफेद चादर से ढंक जाती है। साहब लंबे समय से इस फील्ड में जमे हुए हैं। उन्हें समाजसेवी पुलिसवाला बनने का पूरा फायदा पता है। बता रहे हैं कि अपने समाजसेवी और राजनीतिक रसूख का इस्तेमाल कर मलाईदार पोस्टिंग की उम्मीद पाले बैठे थे। किसी ने ऊपर पूरी पोल-पट्टी खोल कर रख दी। बनता काम, बनने से पहले ही बिगड़ गया। कोतवाल साहब फिर फोटो के भरोसे हैं।