झारखंड में आदिवासी किसानों के बीच मूंगफली की खेती को दिया जाएगा बढ़ावा
राज्य सरकार के साथ कृषि संस्थानों के द्वारा लगातार आदिवासी किसानों की आर्थिक उन्नति के लिए जमीनी स्तर पर कार्य किए जा रहे हैं। उनके लिए विभिन्न योजनाओं को लागू किया जा रहा है। पिछले साल देश में मूंगफली की मांग में 35 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है।
रांची, जासं । राज्य सरकार के साथ कृषि संस्थानों के द्वारा लगातार आदिवासी किसानों की आर्थिक उन्नति के लिए जमीनी स्तर पर कार्य किए जा रहा है। उनके लिए विभिन्न स्तरों पर योजनाओं को लागू किया जा रहा है। पिछले एक वर्ष में देश में नगदी फसल मूंगफली की मांग में लगभग 35 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है। देश को अपने मूंगफली की जरूरतों की आपूर्ति के लिए दूसरे देशों पर निर्भर रहना पड़ता है।
वहीं कोरोना संक्रमण के कारण ये निर्यात भी प्रभावित हुआ है। ऐसे में केंद्र और राज्य सरकार के द्वारा देश में मूंगफली की बेहतर खेती वाले स्थानों को चिंहित करके उत्पादन बढ़ाने पर जोड़ दिया जा रहा है। इसी के तहत राज्य में बिरसा कृषि विवि की मदद से ट्राइबल सब प्रोग्राम के तहत आदिवासी किसानों को मूंगफली की खेती और उसके मूल्य संवर्धन की तकनीक सिखाई जाएगी।
बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के आनुवांशिकी एवं पौधा प्रजनन विभाग के अध्यक्ष डा जेडए हैदर बताते है कि झारखंड के काफी कम क्षेत्र करीब 23 हजार हेक्टेयर मात्र में मूंगफली की खेती होती है। इसकी उत्पादकता 1012 किलो प्रति हेक्टेयर मात्र है। जबकि पठारी क्षेत्र की वजह से प्रदेश की मिट्टी हल्की एवं बालुआही है, जो मूंगफली फसल के लिए उपयुक्त होती है। गरीबों का बादाम कही जाने वाली मूंगफली प्रदेश में उगाई जाने वाली सरसों, तीसी के बाद तीसरी मुख्य तिलहनी फसल है। वर्षा आधारित इस फसल के अनेक लाभ को देखते हुए राज्य में इसकी खेती की काफी संभावनाएँ है।
डा जेडए हैदर बताते हैं कि खरीफ मौसम में बीएयू के आनुवांशिकी एवं पौधा प्रजनन विभाग में संचालित आईसीएआर – जनजातीय मूंगफली शोध उपपरियोजना के अधीन प्रदेश के आदिवासी किसानों के खेतों में मूंगफली की आधुनिक खेती तकनीक को बढ़ावा दिया जा रहा है। यह योजना आईसीएआर – मूंगफली शोध निदेशालय, जुनागढ़ (गुजरात) के सौजन्य से इस वर्ष लागू किया गया है।
पौधा प्रजनक एवं प्रभारी डा शशि किरण तिर्की ने बताया कि खरीफ मौसम में मूंगफली की उन्नत किस्म गिरनार – 3 का अग्रिम पंक्ति प्रत्यक्षण कराया गया है। मूंगफली शोध निदेशालय, जुनागढ़ द्वारा विकसित गिरनार – 3 मूंगफली सूखा सहिष्णु और 110 से 115 दिनों में पककर तैयार होने वाली किस्म है। यह एक रोग सहिष्णु प्रजाति है, जो दोमट मिट्टी के लिये उपयुक्त होती है। इसकी गुली हल्के भूरे रंग की और मोटी होती है। इसमें तेल की करीब 51 प्रतिशत मात्रा पाया जाता है। इसके 100 दानों का वजन 50 ग्राम होता है। इसकी औसत पैदावार 20 से 25 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है।
डा जेडए हैदर ने बताया कि इस कार्यक्रम में रांची एवं पूर्वी सिंहभूम जिले के 7 प्रखंडो के 15 गांवो के 227 आदिवासी किसानों के करीब 12 एकड़ भूमि में उन्नत किस्म के समावेश से मूंगफली की खेती को बढावा दिया जा रहा है। इनमें रांची के मांड़र प्रखंड के सोसई, गरमी व मलती, नगड़ी प्रखंड का चीपड़ा, कुद्लोंग व सिमरटोला तथा कांके प्रखंड का अकम्बा, मुरुम, नगड़ी व दुबलिया प्रमुख गांव है। पूर्वी सिंहभूम जिले के बहरागोरा प्रखंड का सिरसोई व जेरबार तथा दालभूम प्रखंड का राजाबेरा आदि प्रमुख गांव है। इन गांवो के किसानों को मूंगफली प्रत्यक्षण हेतु आदिवासी किसानों के बीच 10 क्विंटल मूंगफली किस्म गिरनार – 3 का सत्यापित बीज तथा अन्य उपादानों का वितरण किया गया है। साथ ही वैज्ञानिकों द्वारा सभी किसानों को मूंगफली की उन्नत खेती तकनीक एवं प्रबंधन की ट्रेनिंग दिया गया है।
मूंगफली के तेल का उपयोग रसोई कार्यों, वनस्पति घी व अन्य सौंदर्य प्रसाधनों के निर्माण में किया जाता है। इसकी खली खाद व पशु आहार तथा छिलके ईंधन के रूप में काम आती है। मूंगफली में 25 से 30 प्रतिशत सुपाच्य प्रोटीन, पर्याप्त मात्रा में विटामिन ई तथा फास्फोरस, कैल्शियम व लोहा जैसे खनिज भरपूर मात्रा में होते हैं। अभी मूंगफली की बिजाई का उपयुक्त समय चल रहा है। बाजार में अच्छी मांग होने के कारण किसान मूंगफली की खेती करके अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।