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रांची ज‍िले के इस बेड़ो स्‍थ‍ित इस श‍िव मंद‍िर के गुंबद पर चढ़कर नृत्‍य करता है पाहन

खास बात यह भी है क‍ि इस श‍िव मंद‍िर में पुजारी कोई पंड‍ित नहीं होता है। गांव के पाहन ही सबकुछ होता है। नई फसल से बना पीठा चढ़ाने के बाद ही उसे ग्रहण करते हैं जनजातीय लोग। यह मंद‍िर सनातन समाज के ल‍िए आस्‍था का केंद्र बन गया है।

By M EkhlaqueEdited By: Published: Tue, 01 Dec 2020 05:30 PM (IST)Updated: Tue, 01 Dec 2020 05:30 PM (IST)
रांची ज‍िले के इस बेड़ो स्‍थ‍ित इस श‍िव मंद‍िर के गुंबद पर चढ़कर नृत्‍य करता है पाहन
बेड़ो स्‍थ‍ित श‍िव मंद‍िर जहां गुंबद के ऊपर चढ़कर नृत्‍य करता है पाहन।

संवाद सूत्र, बेड़ो (रांची) : रांची ज‍िले के बेड़ो प्रखंड मुख्यालय स्थित महादानी बाबा मंदिर भगवान शिव पर आस्था और विश्वास का सबसे बड़ा केंद्र है। सनातन समाज के बीच यह महादानी मंदिर आस्था का प्रतीक बन गया है। दंतकथा के अनुसार, इसका निर्माण स्वंय भगवान विश्वकर्मा ने अपने हाथों से किया था। वहीं, इतिहासविदों के अनुसार कुषाण काल के दौरान इसकी स्थापना हुई थी। वैसे यह आज भी शोध का विषय बना हुआ है। यहां जनजातीय समुदाय द्वारा आदि देव महादेव की पूजा की जाती है।

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इस मंदिर की खास बात यह है कि यहां का पुजारी कोई पंडित नहीं होकर गांव का पाहन होता है। आज भी आदिवासियों और स्थानीय लोगों के बीच महादानी मंदिर के प्रति आस्था व विश्वास कायम है। यहां प्रत्येक वर्ष भगवान शिव को नए चावल से बने पीठा का भोग चढ़ाकर ही लोग नई फसल का उपयोग करते हैं। प्रत्येक वर्ष यहां कार्तिक पूर्णिमा के नौ दिनों के बाद हड़बोड़ी बूढ़ा जतरा का आयोजन होता है। इस दौरान हड़बोड़ी की परंपरा अनुसार पूजा अर्चना व पारंपरिक सामाज‍िक नियम की अदायगी के बाद गांव के पहान की अगुवाई में ढ़ोल, ढाक, मांदर, नगाड़ा, झंडा और दीप कलश के साथ शाम में एक शोभायात्रा भी निकाली जाती है।

पहान द्वारा महादानी बाबा की पूजा कर मंदिर के गुंबद पर चढ़कर पारंपरिक नृत्य किया जाता है। यह परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी पाहन द्वारा निभाई जाती है। आस्था है कि खेतों में लगी फसल काटने के बाद पहले महादानी को चढ़ाया जाता है। इससे महादानी प्रसन्न होकर सबके घरों में धन संपदा से सालों भर परिपूर्ण रखते हैं। यह आज भी प्रासंगिक है। हड़बोड़ी जतरा के पूर्व बेड़ो में घर-घर परंपरा के अनुसार एक स्वादिस्ट व्यंजन पीठा बना कर देवी- देवताओं को भोग लगाया जाता है। वहीं, महादानी मंदिर के शिवलिंग में चढ़ने वाले जल, दूध, फल, फूल व अन्य पूजन सामग्री बहते हुए उत्तर की ओर स्थित डुकू तलाब में प्रवाहित होता था, लेकिन कलान्तर में मानवीय हस्तक्षेप के बाद यह स्रोत बंद हो गया।


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