दिन-रात पीट रहे जागरूकता का ढोल, 4 MVI के भरोसे झारखंड के 24 जिले
झारखंड का परिवहन विभाग सिर्फ जागरूकता के भरोसे है। लगातार घटते कर्मचारियों के कारण न वाहनों की फिटनेस की जांच होती है न सुरक्षा मानकों का पालन होता है।
रांची, राज्य ब्यूरो। सर्दी के दौरान कोहरे की वजह से दुर्घटनाओं का ग्राफ बढऩे लगता है। खासकर सुदूरवर्ती इलाकों में जहां पेड़-पौधों की भरमार है और ट्रैफिक अक्सर तेज रहती है। इन इलाकों में देर रात और सुबह कोहरे का आतंक साफ दिखता है। इसी दौरान दुर्घटनाएं होती हैं। हालांकि राहत की बात यह है कि झारखंड के अधिसंख्य शहरों में दिन के समय कोहरा कम होता है और घटनाएं भी कम होती हैं। लेकिन इसके भरोसे काम तो चलता नहीं।
लगातार कम हो रही कर्मचारियों की संख्या : सरकार के स्तर पर सुरक्षा को प्राथमिकता देने की कोशिश भी होती नहीं दिख रही। राज्य के 24 जिलों में वाहनों की जांच का काम पूरी तरह से रुका हुआ लगता है। चार एमवीआइ के भरोसे पूरा महकमा चलता है और एक औसतन अवकाश पर होते हैं। ऐसे में नंबर प्लेट, रेडियम स्टीकर्स, इंडीकेटर, फॉग लैंप, बीम लाइट, डे-टाइम रनिंग लाइट आदि की जांच तो कभी होती ही नहीं।
सरकार ने कहीं न कहीं यह मान लिया है कि वाहनों की फिटनेस जांच में इन तथ्यों की कोई भूमिका नहीं। ऐसा मानने के पीछे मानस संसाधन बड़ा कारण है। वाहनों की सामान्य जांच के लिए भी कर्मियों की कमी है। इनफोर्समेंट की टीम भी नहीं और मोबाइल दारोगा तक का पता नहीं। ऐसे में पूरा कामकाज जागरूकता कार्यक्रमों के भरोसे चल रहा है।
शिक्षण संस्थानों में दी जा रही नियमों की जानकारी : सरकार के निर्देश पर सड़क सुरक्षा को लेकर लगातार जागरूकता कार्यक्रम चलते हैं और स्कूल-कॉलेज में वाहन चलाने के नियमों की जानकारी के साथ-साथ परिवहन के दौरान विशेष चिह्नों के बारे में जानकारी दी जाती है। कुल मिलाकर पूरा विभाग इसी जागरूकता कार्यक्रम के भरोसे दुर्घटनाओं को रोकने में लगा है।
फॉग लैंप की अनदेखी करते हैं वाहन : धुुंध में आवश्यक फॉग लैंप की अनदेखी अक्सर होती है और इसमें वाहन चालकों की बड़ी भूमिका है। इसके साथ ही डिपर लाइट का इस्तेमाल भी कम ही होता है। झारखंड में वाहनों के हेडलाइट का ऊपरी हिस्सा नहीं नहीं रंगने के बावजूद वाहन मालिकों पर कहीं कोई जुर्माना नहीं लगाया जा रहा है। कुछ वाहनों के हेडलाइट तो सामनेवालों को चौंधियाने के लिए काफी हैं।