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आनलाइन पढ़ाई का असर, पांच महीने में 4500 बच्चे आंख का इलाज करने पहुंचे अस्पताल

बच्चों की पढ़ाई पर हो रहे असर को देखते हुए आनलाइन टीचिंग को शिक्षकों के साथ-साथ अभिभावकों ने भी अपनाया। लेकिन अब ये बदलाव लोगों के लिए परेशानी का सबब भी बन रहा है। रिम्स के मुताबिक पिछले कुछ महीनों में आंख के मरीजों की संख्या बढ़ी है।

By Vikram GiriEdited By: Published: Mon, 18 Jan 2021 10:02 AM (IST)Updated: Mon, 18 Jan 2021 11:07 AM (IST)
आनलाइन पढ़ाई का असर, पांच महीने में 4500 बच्चे आंख का इलाज करने पहुंचे अस्पताल
पांच महीने में 4500 बच्चे आंख का इलाज करने पहुंचे अस्पताल। जागरण

रांची, जासं । कोरोना काल ने लोगों के जीवन में कई बदलाव लाए। कुछ बदलाव साकारत्मक रहें, तो वहीं कुछ के नाकारात्मक असर अब देखने को मिल रहे हैं। हम बात कर रहे हैं आनलाइन पढ़ाई की। कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए जब स्कूल-कॉलेज बंद कर दिए गए। इस दौरान बच्चों की पढ़ाई पर हो रहे असर को देखते हुए आनलाइन टीचिंग को शिक्षकों के साथ-साथ अभिभावकों ने भी अपनाया। लेकिन अब ये बदलाव लोगों के लिए परेशानी का सबब भी बन रहा है। रिम्स के आंकड़ों के मुताबिक पिछले कुछ महीनों में आंख के मरीजों की संख्या में काफी वृद्धि हुई है। और गौर करने वाली बात ये है कि इनमें बच्चों की संख्या सबसे अधिक है।

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रिम्स के आई ओपीडी में पिछले पांच महीने में 4500 से अधिक बच्चें इलाज कराने पहुंचे, जिसमें 2000 से अधिक को चश्मा लगाने की नौबत आ गई। रिम्स के नेत्र रोग विशेषज्ञ डा. राहुल प्रसाद ने कहा कि कोरोना के कारण स्कूलें बंद हो गई, जिसके बाद सब आनलाइन हो गया। अचानक बच्चों का स्क्रीनटाइम बढ़ गया। इससे उनके आंखों पर जोर पडऩा, आंखों से पानी आना, आंखों में सूखापन आदि लक्षण देखने को मिले। डा. राहुल प्रसाद ने आंकड़ों का उदाहरण देते हुए बताया कि कोरोना से पहले जहां 100 मरीजों में एक सा दो में इस तरह की परेशानी देखने को मिलती थी, लेकिन अब संख्या बढ़कर 10 से 15 हो चुकी है। इसका कारण आनलाइन एजुकेशन के कारण मोबाइल, टैब व लैपटाप का इस्तेमाल अधिक बढ़ा है, जिसके कारण बच्चों की आंखों की रोशनी कम होती जा रही है।

कोरोना के बाद नेत्र ओपीडी में 8000 लोगों ने कराई है जांच, इनमें 4500 से अधिक बच्चे

रिम्स के ओपीडी आंकाडों के अनुसार कोरोना के बाद आंखों से संबंधित बीमारी के कारण 8000 लोग इलाज कराने पहुंचे। कुल संख्या में आधे से अधिक यानी करीब 4500 स्कूली बच्चे थे। डा. राहुल प्रसाद के अनुसार बच्चों को चश्मा के अलावा स्क्रीनटाइम कम करने की सलाह दी जा रही है। वहीं अधिक समस्या को देखते हुए एआरसी कोटेड ग्लास के इस्तेमाल करने का भी सुझाव दिया जा रहा है। कमरें मेंं लाइट की पर्याप्त व्यवस्था सुनिश्चित कराने के लिए चिकित्सक परिजनों को भी परामर्श दे रहे है।

हर 20 मिनट में 20 सैकेंड का लें ब्रेक

नेत्र रोग विशेषज्ञ डा. अभिषेक रंजन ने कहा कि आनलाइल पढ़ाई के कारण सबसे अधिक 7 से 15 साल तक के बच्चे परेशान है। निजी क्लीनिक में भी इनकी संख्या बढ़ी है। इन्हें इलाज के साथ हर 20 मिनट में अपनी आंख को ब्रेक देने की सलाह दी जा रही है। डा. अभिषेक ने बताया कि लगातार स्क्रीन में नजर डालकर रखने से आंखों की रोशनी कम होने लगती है। इसलिए नजर को थोड़े-थोड़े देर में भटकाने की जरूरत है। आंखें सूखने की स्थिति में पानी से धोना चाहिए। पानी आने की स्थिति में चिकित्सक से परामर्श लेने के बाद आइ ड्रॉप या एआरसी कोटेड चश्मा का इस्तेमाल करना चाहिए।

बढ़ रही आंखों में ड्राइनेस की समस्या, ब्लिकिंग रेट में भी कमी

डा. अभिषेक रंजन बताते है कि मोबाइल, लैपटाल, एवं अन्य एलईडी के स्क्रीन पर बने रहने से आंखों में ड्राइनेस की समस्या बढ़ रही है। हर बच्चों में ब्लिकिंग रेट की कमी मिल रही है। यह समस्या नए उम्र के युवाओं के साथ विभिन्न विभागों में काम करने वाले लोगों में बढऩे लगी है। यदि आंखों का ब्लिकिंग सामान्य नहीं रहा तो इसका प्रभाव ब्रेन पर भी पडऩे की संभावना बढ़ जाती है। आंखों के साथ कानों पर भी बुरा असर डाल रहा है।

आई ओपीडी में मरीजों की संख्या

माह - संख्या

जनवरी - 2135

फरवरी - 2242

मार्च - 1162

अप्रैल - 1 (ओपीडी बंद)

मई - 1 (ओपीडी बंद)

जून - 352

जुलाई - 360

अगस्त - 218

सितंबर - 598

अक्टूबर - 2238

नवंबर - 1190

दिसंबर - 2158


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