ओमिक्रोन है या डेल्टा वैरिएंट, कोरोना की लहर में भी झारखंड में मुश्किल है अभी जीनोम सिक्वेंसिंंग
झारखंड में कोरोना संक्रमण की स्थिति लगाातर खराब होती जा रही है। दुखद स्थिति यह है कि यहां अब तक genome sequencing की व्यवस्था नहीं हो सकी है। अब भी झारखंड ओडिशा पर ही निर्भर है। तीसरी लहर में भी झारखंड में मुश्किल है जीनोम सिक्वेंसिंग।
रांची, राज्य ब्यूरो। राज्य सरकार ने रांची स्थित राजेंद्र आयुर्विज्ञान संस्थान (रिम्स) में जीनोम सिक्वेंसिंग लैब स्थापित करने हेतु मशीन खरीदने का आदेश तो जारी कर दिया है, लेकिन काेरोना की वर्तमान लहर में राज्य में ही जीनोम सिक्वेंसिंग होना मुश्किल लग रहा है। रिम्स में यह मशीन लगाने में 40 से 45 दिन लगने की संभावना जताई जा रही है, तबतक राज्य में कोरोना की वर्तमान लहर ढलान पर होगी। ऐसे में ओमिक्रोन की पहचान के लिए राज्य को भुवनेश्वर स्थित आइएलएस पर ही निर्भर रहना होगा।
अमेरिकी कंपनी को खरीदारी का दिया गया है आदेश
राज्य सरकार ने काफी जद्दोजहद के बाद मशीन क्रय करने का आदेश अमेरिका की कंपनी को इलुमीना को दिया है। बताया जाता है कि कंपनी ने 40 से 45 दिनाें में मशीन उपलब्ध कराने का आश्वासन दिया है। मशीन क्रय करने में देरी इस कारण हुई, क्योंकि विभागीय प्रक्रियाओं में अनावश्यक समय लगा। साथ ही स्वास्थ्य विभाग इस मशीन खरीदने को लेकर अपनाई जानेवाली प्रक्रिया पर स्पष्ट निर्णय समय पर नहीं ले सका। पहले तो यह स्पष्ट ही नहीं हो पा रहा था कि यह मशीन स्वयं रिम्स खरीदेगा या इसे राष्ट्रीय स्वास्थ्य अभियान के माध्यम से राज्य बजट की राशि से खरीदा जाएगा। शुरू में मनोनयन के आधार पर मशीन खरीदने का निर्णय लिया गया, लेकिन बाद में टेंडर करने का भी निर्णय लिया गया। एक बार ओडिशा की तर्ज पर मशीन खरीदने का प्रस्ताव बढ़ा तो उसे यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया गया कि संबंधित संकल्प ही निरस्त हो चुका है। अब ओडिशा की तर्ज पर ही मशीन खरीदने का आदेश जारी किया गया है।
झारखंड में नहीं हो पा रही ओमिक्रोन की पहचान
राज्य में जीनोम सिक्वेंसिंग मशीन नहीं होने से ओमिक्रोन की पहचान नहीं हो पा रही है, क्योंकि भुवनेश्वर स्थित लैब से काफी देर तथा काफी कम संख्या में सैंपल की सिक्वेंसिंग हो पा रही है। राज्य में यह मशीन होती तो छह घंटे में ही ओमिक्रोन की पहचान हाे जाती। अधिसंख्य राज्यों में बड़ी संख्या में ओमिक्रोन की पहचान हो रही है, लेकिन राज्य में बेतहाशा बढ़ रहे संक्रमण के बाद भी ओमिक्रोन की पुष्टि नहीं हो सकी है।
पांच प्रतिशत सैंपल की जीनोम सिक्वेंसिंग की अनुशंसा
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद ने कोरोना की पहली लहर के बाद ही आरटी-पीसीआर में पाजिटिव पाए गए सैंपल में कम से कम पांच प्रतिशत सैंपल की जीनोम सिक्वेंसिंग कराने की अनुशंसा सभी राज्यों से की थी। उस समय ही स्पष्ट हो गया था कि आनेवाले दिनों में आरटी-पीसीआर जांच लैब की तरह जीनोम सिक्वेंसिंग लैब की आवश्यकता राज्य में ही पड़ेगी। इसके बावजूद इस मशीन की खरीदारी में लापरवाही बरती गई।
डेल्टा की पहचान में भी हुई थी देरी
कोरोना की दूसरी लहर में डेल्टा वैरिएंट की पहचान में भी देरी हुई थी। भुवनेश्वर से रिपोर्ट मिलने के बाद जबतक पता चला कि राज्य में डेल्टा वैरिएंट के कारण वायरस इतना अधिक काफी घातक साबित हुआ तबतक ता यहां कोरोना का संक्रमण काफी कम हो चुका था।
क्या है जीनोम
जीनोम सिक्वेंसिंग एक प्रकार से किसी वायरस की कुंडली होती है। इससे पता चलता है कि वायरस कैसा है तथा उसकी प्रकृति कैसी है। उसमें कितना म्यूंटेंट हो चुका है। इसी का पता लगाने के लिए सिक्वेंसर मशीन का इस्तेमाल किया जाता है। आरटी-पीसीआर में पाजिटिव पाए गए सैंपल की जीनोम सिक्वेंसिंग की जाती है।