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स्थायी द्विपुष्कर योग में दो जून को मनेगी निर्जला एकादशी

ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष एकादशी अन्य 24 एकादशी में सर्वोत्तम मानी जाती है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 01 Jun 2020 01:29 AM (IST)Updated: Mon, 01 Jun 2020 01:29 AM (IST)
स्थायी द्विपुष्कर योग में दो जून को मनेगी निर्जला एकादशी
स्थायी द्विपुष्कर योग में दो जून को मनेगी निर्जला एकादशी

जागरण संवाददाता, राची: ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष एकादशी अन्य 24 एकादशी में सर्वोत्तम मानी जाती है। इसे निर्जला एकादशी भी कहा जाता है। इस बार निर्जला एकादशी दो जून को है। एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना के बाद दान-दक्षिणा का विशेष विधान है। विशेषकर इस दिन दैनिक उपयोग में आने वाली वस्तुएं यथा पंखा, जूता, कपड़ा, अन्न, जलपात्र, छाता, फल आदि का दान किया जाता है। पुराणों के अनुसार प्रात:काल पूजा अर्चना के बाद जरूरतमंदों को दिए जाने वाले दान का कभी क्षय नहीं होता है। ऐसे लोगों पर भगवान विष्णु की विशेष कृपा होती है। खुद के जीवन से दुख-दरिद्रता तो समाप्त होता ही है मृत्युलोक में पूर्वजों को भी तृप्ति होती है। वहीं, एकादशी के दिन बड़ी संख्या में साधक निर्जला व्रत भी रखते हैं।

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जल भरे पात्र का दान महादान::

पंडित राजेश उपाध्याय के अनुसार निर्जला एकादशी के दिन जल भरा घड़ा दान करने से भगवान विष्णु के प्रिय बनते हैं। धर्म शास्त्रों में नर सेवा को नारायण सेवा माना गया है। भूखे-प्यासे को भोजन पानी पिलाने से बढ़कर कोई और पुण्य नहीं होता है। ऐसा करने वाले एकादशी को निराहार रहकर पूजा के उपरात जल के घड़े के दान संसार सागर से तारने वाला होता है। ऐसा करने से मनुष्य भगवान विष्णु के समीप पहुंचकर आनन्द का अनुभव करता है। तत्पश्चा द्वादशी को ब्राह्मण भोजन कराने के बाद स्वयं भोजन करें।

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करें इन चीजो का दान

स्नान के उपरात भगवान विष्णु के मंत्र-ऊं नमो भगवते वासुदेवाय: का जाप दिन-रात करते रहना चाहिए। गोदान, वस्त्र दान, छत्र, जूता, फल आदि का दान करना चाहिए। इस दिन बिना पानी पिये जरूरतमंद आदमी को हर हाल में शुद्ध पानी से भरा घड़ा यह मंत्र पढ़ कर दान करना चाहिए।

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देवदेव हृषिकेश संसारार्णवतारक।

उदकुंभप्रदानेन नय मा परमा गतिम्

इस श्लोक का अर्थ है कि संसार सागर से तारने वाले देवदेव हृषिकेश! इस जल के घड़े का दान करने से आप मुझे परम गति की प्राप्ति कराइए।

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-ग्रंथों के अनुसार इस दिन तिल, अन्न और जल दान करने का सबसे ज्यादा महत्व है। ये दान सोना, चादी, हाथी और घोड़ों के दान से भी ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। अन्न और जल दान से मानव, देवता, पितृ सभी को तृप्ति मिल जाती है। शास्त्रों के अनुसार कन्या दान को भी इन दानों के बराबर माना जाता है। भगवान विष्णु को यह एकादशी बहुत प्रिय हैं। साथ ही, इस दिन स्नान, दान और व्रत से भगवान अत्यंत प्रसन्न होते हैं। वर्षो से इस दिन लोग जलदान करते हैं। ज्येष्ठ की तपती धूप में सड़कों पर मीठा जल और शर्बत की पिलाते हैं इसके अलावा भंडारे का भी आयोजन किया जाता है। इसके अलावा साम‌र्थ्य अनुसार अन्न, जल, वस्त्र, छतरी, गोदान, जल से भरा मिट्टी का कलश, फल, सुराही तथा किसी भी धातु से बना जल का पात्र, हाथ का पंखा, बिजली का पंखा, शर्बत की बोतलें, आम, खरबूजा, तरबूज तथा अन्य मौसम के फल आदि का दान दक्षिणा सहित देने का शास्त्रानुसार विधान है। यही नहीं राहगीरों के लिए किसी भी सार्वजनिक स्थान पर ठंडे एवं मीठे जल का प्याऊ लगाना और भंडारे का आयोजन करना भी श्रेयकर माना गया है।

---------------- निर्जला एकादशी पूजा शुभ मुहूर्त

निर्जला एकादशी 1 जून को दोहपर 2 बजकर 57 मिनट से आरंभ होकर 2 जून को 12 बजकर 04 मिनट पर समाप्त हो रही है। अत: व्रती इस दिन भगवान श्रीहरि विष्णु जी की पूजा दोपहर 12 बजकर 04 मिनट तक कर सकते हैं।

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निर्जला एकादशी मंगलवार, जून 2, 2020 को

3 जून को , पारण (व्रत तोड़ने का) समय - 05:23 से 08:10 के बीच


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