Nirjala Ekadashi: गर्मी में शीतलता का संदेश देता है निर्जला एकादशी, पढ़ें क्या है इसका महत्व
Nirjala Ekadashi 2020 जेष्ठ मास की शुक्ल पक्ष एकादशी को किया जाने वाला निर्जला एकादशी का पर्व पूर्णतः निराहार व निर्जला रहकर किया जाता है।
पलामू, जासं। सनातन संस्कृति परंपरा में पर्व-त्योहार, आराधना-उपासना के माध्यम से भक्ति भावना के साथ-साथ समर्पण व त्याग का संदेश देते हैं। वर्ष के विभिन्न ऋतुओं में अलग-अलग तरीके से किए जाने वाले व्रत व पूजा अर्चना में सांस्कृतिक जुड़ाव आध्यात्म व वैज्ञानिकता का समावेश होता है। इन व्रत त्यौहारों पर किए जाने वाले दान पुण्य समाज के विभिन्न वर्गों को जोड़ते हैं। साथ ही परस्पर सद्भावना के विकास का मार्ग प्रशस्त करते हैं। दान की जाने वाली वस्तुएं जरूरतमंदों की आवश्यकताओं की पूर्ति करती हैं तो किसी के जीविकोपार्जन का साधन बनती हैं।
इन्हीं पर्व त्योहारों में महत्वपूर्ण है निर्जला एकादशी का पर्व। जेष्ठ मास की शुक्ल पक्ष एकादशी को किया जाने वाला यह पर्व पूर्णतः निराहार व निर्जला रहकर किया जाता है। पर्व में भगवान विष्णु की पूजा उपासना की जाती है एवं विभिन्न मौसमी वस्तुओं का दान किया जाता है। इसमें गर्मी के दिनों के लिए हितकर माने जाने फल तरबूज, ककड़ी, नींबू समेत चीनी, गुड़ आदि शरबत के सामान व पंखा दान, घट दान अर्थात मिट्टी के घड़े का दान शामिल है।
इसके अलावा व्रती ब्राह्मण, दीन दुखियों, गरीबों को शर्बत आदि पिलाते हैं। अब इसका वैज्ञानिक विश्लेषण करें तो स्पष्टत: सामने आता है कि ज्येष्ठ मास में प्रचंड गर्मी पड़ती है। इसमें किए जाने वाले दान पुण्य कई जरूरतमंद की आवश्यकताओं को पूरा करते हैं। मसलन व्रत के लिए मिट्टी के घड़ों व हाथ निर्मित पंखों की बिक्री खूब होती है। इससे कुंभकारों आदि को रोजगार मिलता है। कुटीर उद्योग को बढ़ावा मिलता है।