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Netaji Jayanti: सुभाषचंद्र बोस ने रांची से अपनी मां को लिखा था पत्र, आप भी पढ‍़िए

Netaji Jayanti. आज नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती है। नेताजी का रांची से भी लगाव रहा है। उन्‍होंने अपने रांची प्रवास के दौरान अपनी मां को पत्र लिखा था।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Thu, 23 Jan 2020 11:53 AM (IST)Updated: Thu, 23 Jan 2020 11:53 AM (IST)
Netaji Jayanti: सुभाषचंद्र बोस ने रांची से अपनी मां को लिखा था पत्र, आप भी पढ‍़िए
Netaji Jayanti: सुभाषचंद्र बोस ने रांची से अपनी मां को लिखा था पत्र, आप भी पढ‍़िए

रांची, जासं। आज नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती है। नेताजी का रांची से भी लगाव रहा है। उन्‍होंने अपने रांची प्रवास के दौरान अपनी मां को पत्र लिखा था। आप भी पढ‍़िए उन्‍होंने अपनी मां को लिखे पत्र में क्‍या लिखा था।

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रांची

रविवार

आदरणीय मां

मुझे काफी समय से कलकत्ता के समाचार नहीं मिले हैं। आशा करता हूं कि आप सब स्वस्थ होंगे। मैं समझता हूं कि आपने शायद समयाभाव के कारण पत्र नहीं लिखा है। मां, मैं सोचता हूं कि क्या इस समय भारत माता का एक भी सपूत ऐसा नहीं है, स्वार्थरहित हो? क्या हमारी मातृभूमि इतनी अभागी है? कैसा था हमारा स्वर्णिम अतीत और कैसा है यह वर्तमान! वे आर्यवीर आज कहां हैं, जो भारत माता की सेवा के लिए अपना बहुमूल्य जीवन प्रसन्नता से न्यौछावर कर देते थे? आप मां हैं, लेकिन क्या आप केवल हमारी ही माता हैं?

नहीं, आप सभी भारतीयों की मां हैं, और यदि सभी भारतीय आपके पुत्र हैं तो क्या आपके पुत्रों का दुख आपको व्यथा से विचलित नहीं कर देता? मां, केवल देश की ही दुर्दशा नहीं हो रही है। आप देखिए कि हमारे धर्म की हालत क्या है? हमारा हिंदू धर्म कितना और कैसा पवित्र था और आज वह किस प्रकार पतन के गर्त में जा रहा है। आप उन आर्यों की बात सोचें जिन्होंने इस धरती की शोभ बढ़ाई थी और अब उनके पतित वंशजों को देखें। तो क्या हमारा सनातन धर्म विलुप्त होने जा रहा है?

आप देखें कि किस प्रकार नास्तिकता, श्रद्धाहीनता और अंधविश्वास का बोलबाला है। इसी का परिणाम है कि इतना अधिक पाप और जन-जन के लिए दुख और कष्ट। देखिए कि जो आर्य जाति इतनी धर्मप्राण थी, उसी के वंशज आज कितने अधार्मिक और नास्तिक हो गए हैं। बड़े दुख की बात है कि हम क्या थे और क्या हो गए हैं। हमारा धर्म कहां से कहां पहुंच गया। मां, इन सब बातों को सोचकर तुम्हें बेचैनी नहीं होती, क्या तुम्हारे हृदय में पीड़ा से हाहाकार नहीं मच जाता।....

मेरी प्रभु से प्रार्थना है कि  मैं संपूर्ण जीवन दूसरों की सहायता में बिता सकूं। मुझे आशा है कि वहां सब कुशल हैं। यहां हम सानंद हैं। कृपया मेरे प्रणाम स्वीकार करें। और इस पत्र का उत्तर अवश्य दें।

सदैव आपका प्रिय पुत्र

सुभाष

(पत्र का संपादित अंश)


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