Jharkhand: राज्यसभा की एक सीट जीतकर भी मजबूत होकर उभरा एनडीए, यूपीए में बढ़ेगा टकराव
Jharkhand Political Update. भाजपा ने मनोवैज्ञानिक बढ़त ली है। ओम माथुर ने कांग्रेस पर निशाना साधा। कहा कि पर्याप्त संख्या के बावजूद शिबू सोरेन को चुनाव लडऩे पर मजबूर किया।
रांची, राज्य ब्यूरो। झारखंड में राज्यसभा की दो सीटों में एक-एक सीट बांटकर प्रत्यक्ष तौर पर जरूर नजर आ रहा हो कि एनडीए और यूपीए बराबरी पर छूटे, लेकिन सियासी मायने निकाले जाएं तो एनडीए खेमा सत्ताधारी दलों पर भारी पड़ता दिखाई देता है। रणनीतिक और सियासी दोनों मोर्चों पर एनडीए इस चुनाव में मजबूत होकर उभरा। चुनाव परिणाम की टीस सत्ताधारी दलों में लंबे समय तक महसूस की जाएगी, अंतद्र्वंद्व बढ़ेगा और यही भाजपा की झारखंड की सक्रिय राजनीति में दमदार वापसी का सिलसिला शुरू होगा।
यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि राज्यसभा चुनाव में बड़ी जीत दर्ज कर भाजपा ने मनोवैज्ञानिक बढ़त हासिल कर ली है और आगे के मोहरे भी सधे अंदाज में चलने शुरू कर दिए हैं। निशाने पर झामुमो नहीं कांग्रेस है। भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ओम प्रकाश माथुर ने यूं ही नहीं राजनीतिक मर्यादाओं का हवाला देते हुए कहा कि पर्याप्त संख्या बल के बावजूद कांग्रेस ने गुरुजी को जीत के लिए चुनाव में जाने को मजबूर किया।
प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश ने भी चुनाव जीतने के बाद कहा था कि गुरुजी को निर्विरोध उच्च सदन पहुंचना चाहिए था। मायने स्पष्ट हैं, भाजपा की कोशिश झामुमो और कांग्रेस के बीच चुनाव से उपजे टकराव को बढ़ाने की है। दोनों के बीच दूरी जितनी बढ़ेगी, भाजपा की आगे की राह उतनी ही आसान होगी। वैसे भी राज्यसभा चुनाव में 31 विधायकों का समर्थन हासिल कर भाजपा ने यह जता दिया है कि सत्ता से उसकी दूरी अब बहुत अधिक नहीं रह गई है।
विधानसभा की हार से भाजपा ने लिया सबक
विधानसभा की हार से भाजपा ने बड़ा सबक लिया है। चुनाव में तत्कालीन नेतृत्व ने लगातार गुरुजी पर निशाना साधा था, परिणाम संताल और कोल्हान में भाजपा की बड़ी हार के रूप में सामने आया और वह सत्ता से बाहर हो गई। अब भाजपा इन खुले हुए सुराखों को बंद करना चाह रही है। गुरुजी के प्रति साफ्ट रवैया अख्तियार करते हुए आदिवासी जमात में अपनी पैठ मजबूत करना चाह रही है।
एकजुटता का नया फार्मूला
राज्यसभा चुनाव में प्रत्याशी भाजपा का जीता लेकिन इसे एनडीए की जीत के रूप में प्रचारित किया जा रहा है। वजह साफ है, भाजपा को पता चल गया है कि झारखंड में एकला चलो की राह कभी भी मंजिल तक नहीं पहुंचा सकती। झारखंड की राजनीतिक, जातिगत और क्षेत्रीय समीकरण कुछ ऐसा है कि कोई भी एक राजनीतिक दल अपने बूते सरकार बनाने की स्थिति में नहीं रहता है।
पिछले तमाम चुनावों में यह स्पष्ट देखा जा चुका है। बावजूद इसके भाजपा ने अपने पुराने सहयोगी आजसू पार्टी को छोड़कर एकला चलो की राह अपनाई और हार का सामना किया। पिछली हार से भाजपा की पुरानी सहयोगी आजसू को भी सबक मिला और वह महज दो सीटों पर सिमट गई। हार से सबक ले अब एक बार दोनों फिर साथ हैं।
एनडीए अब कभी न टूटने का वादा और दावा दोनों कर रहा है। यह दावा कितना मजबूत साबित होगा यह कुछ ही माह बाद राज्य में दो सीटों पर होने वाले उपचुनावों में साफ हो जाएगा। माना जा रहा है कि बिना अड़े दोनों ही दल एक-एक सीट (दुमका व बेरमो) स्वेच्छा से बांटने पर राजी हो जाएंगे।