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नक्सली से कथाकार बने देवकीनंदन दास, आज पूरे देश में सुना रहे राम की कथा

देवकीनंदन दास ने बातचीत में कहा कि नक्सली बनने से पूर्व 1991 में मैं वनवासी कल्याण केंद्र से जुड़ा था। उस समय मेरे ऊपर एकल विद्यालय ग्राम प्रमुख का दायित्व था। 1995 की बात है मेरे गांव में वनवासी कल्याण केंद्र की बैठक चल रही थी।

By Vikram GiriEdited By: Published: Mon, 05 Oct 2020 08:01 PM (IST)Updated: Tue, 06 Oct 2020 08:45 AM (IST)
नक्सली से कथाकार बने देवकीनंदन दास, आज पूरे देश में सुना रहे राम की कथा
नक्सली से कथाकार बने देवकीनंदन दास। फाइल फोटो- जागरण

रांची (संजय कुमार) । लगभग ढाई दशक पूर्व देवकीनंदन चौधरी का नक्सलियों से अटूट नाता था। इस बीच 1996 में वे एकल अभियान के संपर्क में आए और उसी के होकर रह गए। वह अकेले नहीं, बल्कि अपने 100 साथियों के साथ एकल की हरिकथा योजना का हिस्सा बन गए। आज उनकी पहचान हरिकथा वाचक देवकीनंदन दास के रूप में है। वे हरिकथा का वाचन भी करते हैं और बतौर एकल के अखिल भारतीय कथाकार प्रशिक्षण प्रमुख बन आदिवासी युवतियों व दूसरे लोगों को कथा वाचन का प्रशिक्षण भी दे रहे हैं।

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झारखंड, बिहार, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, गुजरात, बंगाल, महाराष्ट्र, असम, राजस्थान सहित लगभग देश के सभी राज्यों में जाकर राम कथा व भजन सुनाने का काम अपनी मंडली के साथ करते हैं। देवकीनंदन दास अपनी बात साझा करते हुए कहते हैं, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के अनुषांगिक संगठन एकल अभियान के संस्थापक श्यामजी गुप्त ने उन्हेंं नया जीवन दे दिया। उनके रूप में मुझे भगवान मिल गए। मेरे नाम से जिस इलाके के लोग कांपते थे आज वहीं लोग कथावाचक के रूप में मुझे सम्मान देते हैं।

नक्सलियों के भय से 1993 में वे उनके लिए काम करने लगे

1989 में स्नातक करने के बाद देवकीनंदन लातेहार जिले के अपने गांव टेमकी में लोगों का इलाज करने का काम करते थे। गांव में अच्छी कमाई हो जा रही थी। 1993-94 की बात है। पढ़े लिखे युवाओं को नक्सलियों ने अपने साथ जोडऩे का अभियान चला रखा था। इनका एक दोस्त जुड़ चुका था। उसी के साथ कुछ नक्सली इनके घर पहुंचे और संगठन से जुडऩे का दबाव बनाने लगे।

भय से परिवार से इजाजत लेकर नक्सली गतिविधियों में शामिल हो गए जबकि यादव परिवार से तालुक रखने वाले इनके बाबा व पिता की गांव में काफी प्रतिष्ठा थी। उस समय के दिनों को याद करते हुए देवकीनंदन ने कहा कि रात में भोजन कही और, तो खाना कही और, खाना पड़ता था। चैन नहीं था। शांति से जीना चाहता था। आज तो पूरा जीवन ही बदल गया है।

नक्सली के कामों से ऊब कर देश के लिए कुछ करने की इच्छा हुई

देवकीनंदन दास ने बातचीत में कहा कि नक्सली बनने से पूर्व 1991 में मैं वनवासी कल्याण केंद्र से जुड़ा था। उस समय मेरे ऊपर एकल विद्यालय ग्राम प्रमुख का दायित्व था। 1995 की बात है, मेरे गांव में वनवासी कल्याण केंद्र की बैठक चल रही थी। मैंने बैठक में जाकर कहा कि अब देश के लिए कुछ करने की इच्छा है। जो अधिकारी थे उन्होंने कहा कि अयोध्या जाना पड़ेगा। उस समय आरएसएस के वरिष्ठ प्रचारक श्यामजी गुप्त वनवासी कल्याण केंद्र के संगठन मंत्री हुआ करते थे।

उन्होंने ही एकल हरी कथा की शुरुआत की थी। मैं तैयार हो गया। वर्ष 1996 में रांची के निवारणपुर स्थित आरएसएस कार्यालय में 10 दिनों का प्रशिक्षण हुआ। उसके बाद मुझे छह माह के प्रशिक्षण के लिए अयोध्या भेज दिया गया। वहां से लौटने के बाद एक प्रखंड के 30 गांवों की जिम्मेदारी सौंप दी गई। धीरे-धीरे दायित्व बढ़ता गया और आज अखिल भारतीय प्रशिक्षण प्रमुख की जिम्मेदारी सौंप दी गई है।

अयोध्या से लौटने के बाद नक्सलियों ने बुलाया था

देवकीनंदन दास उस समय की घटना को याद करते हुए कहते हैं कि जब अयोध्या से प्रशिक्षण लेकर लौटा तो गांव पहुंचने पर नक्सलियों ने मुझे बुलाया। डर तो था, लेकिन जब रामजी का काज शुरू कर दिया था तो निर्भीक होकर उनके बीच पहुंचा। सब मजाक में कहने लगे कि देखो बाबा बनकर आ गया। उनलोगों से मैंने कहा कि यहां मुझे अच्छा नहीं लग रहा था। फिर सभी ने कहा कि जाओ निर्भीक होकर अपना काम करते रहो। हमारा जीवन देखकर नक्सल गतिविधियों में शामिल कई लोग एकल के कथाकार योजना से जुड़ गए। कथाकार दिलेश्वर यादव ने तो कहा कि इस संगठन से जुडऩे के बाद तो पूरा जीवन ही बदल गया है।


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