Naxal Attack News: देश की सबसे बड़ी आंतरिक समस्या बने नक्सलियों पर हो निर्णायक प्रहार
Naxal Attack News मुख्यमंत्री ने गृहमंत्री से आग्रह किया है कि उग्रवाद उन्मूलन के लिए चलाई जा रही केंद्रीय योजनाओं को अचानक बंद न किया जाए। नक्सलियों के खिलाफ लड़ाई अंतिम दौर में है। ऐसे में जरूरी है कि कोई भी निर्णय बहुत सोच-समझ कर लिया जाए।
रांची, प्रदीप शुक्ला। इसी सप्ताह दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की नक्सल प्रभावित 10 राज्यों के साथ हुई बैठक में झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने एलान किया कि नक्सलियों के खिलाफ छिड़े युद्ध को हम जरूर जीतेंगे। बेशक उनकी इस घोषणा के दो दिन बाद ही मंगलवार को लातेहार जिले के सलैया जंगल में सुरक्षाबलों की उग्रवादी संगठन झारखंड जनमुक्ति परिषद (जेजेएमपी) के साथ हुई मुठभेड़ में एक डिप्टी कमांडेट रैंक स्तर के अधिकारी की शहादत हो गई, लेकिन इससे सुरक्षाबलों के हौसले पर कोई फर्क नहीं पड़ा है। पिछले कुछ सालों में केंद्र और राज्य के संयुक्त प्रयास से नक्सलियों के सफाए के लिए चल रहे अभियान के अच्छे परिणाम मिले हैं। अब राज्य में नक्सली कुछ हिस्सों में सिमटकर रह गए हैं। इसके पीछे एक बड़ा कारण यह भी है कि दूर-दराज के गांवों से लेकर घने जंगलों के बीच बसी आबादी तक सड़क और अन्य तमाम मूलभूत सुविधाएं पहुंची हैं।
राज्य सरकार ऐसे गांवों को भी चिन्हित कर रही है, जहां से दो अथवा उससे अधिक ग्रामीण किसी नक्सली संगठन से जुड़े हैं। अब इन गांवों के विकास पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। बिहार से अलग होकर भी झारखंड विकास के रास्ते पर सरपट नहीं दौड़ पाया है तो उसके पीछे नक्सलवाद भी बड़ा कारण रहा है। यहां की कठिन भौगोलिक परिस्थितियों और कई राज्यों से जुड़ी सीमाओं में घने जंगली रास्ते नक्सलियों के लिए अनुकूल साबित होते रहे हैं। कभी गरीबों की आवाज बनकर उन्हें न्याय दिलाने का दावा करने वाले नक्सलियों का दोहरा चेहरा उजागर हो चुका है। बंदूक की नोक पर लेवी वसूली करना ही उनका एकमात्र ध्येय बन चुका है। वैचारिक लड़ाई से उनका दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं। उनकी लड़ाई में आम लोगों की कोई रुचि नहीं है। राज्य में जिन कुछ छोटे हिस्सों में नक्सली गुट सक्रिय हैं, वहां उन्हें काडर के लिए नए युवा नहीं मिल रहे हैं।
लातेहार जिले के सलैया जंगल में नक्सलियों के खिलाफ सर्च आपरेशन चलाते जवान। जागरण
राज्य में 2016 में उग्रवादी हिंसा की 195 घटनाएं हुई थीं। इनमें 61 मामले निदरेष लोगों की हत्या के थे। पिछले वर्ष 2020 में 125 नक्सली घटनाएं हुईं, जिनमें 28 नागरिकों की हत्या हुई। इस दौरान कुल 715 उग्रवादी गिरफ्तार किए गए। वहीं मुठभेड़ में पुलिस और सुरक्षा बलों ने 18 उग्रवादियों को मार गिराया। अलग राज्य बनने के बाद से अब तक नक्सलियों से मुठभेड़ में 450 से अधिक पुलिस अधिकारियों और जवान शहीद हो चुके हैं। राज्य में अब मुख्य रूप से पारसनाथ पहाड़, बूढ़ा पहाड़, सरायकेला, खूंटी, चाईबासा, कोल्हान क्षेत्र तथा बिहार सीमा के कुछ इलाकों तक नक्सली सीमित हो गए हैं। सारंडा एवं बूढ़ा पहाड़ का इलाका बड़े नक्सलियों का गढ़ है। इसकी मुख्य वजह है यहां से दूसरे राज्यों की सीमा का सटना। झारखंड पुलिस की दबिश पर नक्सली बिना किसी परेशानी के छत्तीसगढ़, ओडिशा, बंगाल सीमा में प्रवेश कर जाते हैं और उन राज्यों में दबाव बढ़ने पर झारखंड में आ जाते हैं।
फिलहाल झारखंड में मुख्य रूप से पांच नक्सली संगठन सुरक्षाबलों को चुनौती दे रहे हैं। इनमें भाकपा माओवादी, पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट आफ इंडिया (पीएलएफआइ), तृतीय सम्मेलन प्रस्तुति कमेटी (टीएसपीसी), झारखंड जन मुक्ति परिषद (जेजेएमपी) और झारखंड प्रस्तुति कमेटी (जेपीसी) शामिल हैं। जेपीसी को छोड़, शेष चार संगठन के 115 हार्डकोर नक्सलियों-उग्रवादियों के खिलाफ राज्य सरकार ने एक लाख रुपये से लेकर एक करोड़ रुपये तक का इनाम रखा है, जिनकी तलाश जारी है। नक्सलवाद का रास्ता छोड़कर मुख्य धारा से जोड़ने के लिए राज्य सरकार ने आत्मसमर्पण नीति का रास्ता भी नक्सलियों-उग्रवादियों के लिए छोड़ रखा है, ताकि राज्य से नक्सल समस्या का समाधान हो सके। इसी वर्ष जुलाई में 15 लाख के इनामी बुद्धेश्वर उरांव एवं दस लाख के इनामी शनिचर सुरीन को मुठभेड़ में मार गिराने के बाद पुलिस का मनोबल बढ़ा हुआ है। दो दर्जन से अधिक बड़े इनामी नक्सलियों ने पिछले तीन साल में या तो आत्मसमर्पण कर दिया अथवा गिरफ्तार किए जा चुके हैं जिससे इन राष्ट्रविरोधी तत्वों का मनोबल गिरा है।
[स्थानीय संपादक, झारखंड]