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Mumbai Terror Attack: अभी तक नहीं भरा मुंबई आतंकी हमले का जख्म, 9 वर्षों से धूल चाट रही मुआवजे की फाइल

Mumbai Terror Attack 2017 में सीएम से डीसी ने एक सप्ताह के भीतर नौकरी देने का वादा किया था। जिससे दुनिया हिल गई उससे अफसरों का दिल नहीं पसीजा। 26/11 में मारे गए शहाबुदीन के आश्रित को नौ वर्षों में भी सरकारी नौकरी नहीं मिल पाई है।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Thu, 26 Nov 2020 11:59 AM (IST)Updated: Thu, 26 Nov 2020 02:54 PM (IST)
Mumbai Terror Attack: अभी तक नहीं भरा मुंबई आतंकी हमले का जख्म, 9 वर्षों से धूल चाट रही मुआवजे की फाइल
चतरा में मृतक शहाबुदीन खान के परिजन। जागरण

चतरा, [जुलकर नैन]। 26/11 किसे याद नहीं। भला मुंबई आतंकी हमले को कौन भूल सकता है। उसके गहरे जख्म अभी भरे नहीं हैं। वारदात से पूरी दुनिया हिल गई थी। महाराष्ट्र सरकार ने हमले में मारे गए नागरिकों के आश्रितों को तत्काल पांच-पांच लाख रुपये मुआवजा देने की घोषणा की थी। झारखंड सरकार ने भी अपने राज्य के मारे गए नागरिकों के आश्रितों को तत्काल एक-एक लाख रुपये मुआवजा और परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने का एलान किया था।

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उस हमले में चतरा जिले के प्रतापपुर प्रखंड स्थित नवरतनपुर गांव निवासी शहाबुदीन खान की भी जान चली गई थी। वादे के मुताबिक दोनों राज्य सरकारों ने उनकी विधवा को घोषित मुआवजे की राशि का भुगतान तो कर दिया, मगर आश्रित को नौकरी अफसरों की सुस्ती की भेंट चढ़ गई है। हमले के शिकार शहाबुदीन खान के आश्रित पुत्र सलाउद्दीन खान पिछले नौ साल से नौकरी के लिए सरकारी दफ्तरों में चप्पल घिस रहे हैं, मगर संबंधित अधिकारियों का दिल नहीं पसीजा।

उनकी मानें तो उन्हें आश्वासन देकर टाला जाता रहा। विवश होकर उन्होंने 2017 में मुख्यमंत्री जनसंवाद में भी मामला उठाया था। उस पर खुद तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास ने संज्ञान लिया था। मुख्यमंत्री ने तत्काल वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए तत्कालीन उपायुक्त संदीप सिंह से बात की और मामले के शीघ्र निष्पादन का आदेश दिया। उपायुक्त ने मुख्यमंत्री से एक सप्ताह के भीतर नौकरी देने का वादा किया था। हालांकि कुछ दिनों के बाद उनका यहां से तबादला हो गया।

उनके प्रतिस्थानी उपायुक्त जितेंद्र कुमार सिंह ने 2018 में इस मामले में राज्य के गृह सचिव से मार्गदर्शन मांगा था। तब से मामला सचिवालय में लटका हुआ है। सलाउद्दीन डीसी आफिस से लेकर मुख्यमंत्री सचिवालय तक चक्कर लगाकर थक चुके हैं, मगर कोई लाभ नहीं हुआ। उनका कहना है कि मुंबई हमले के गुनहगार कसाब को मौत की सजा देकर अदालत ने पीड़ित परिवार के जख्म पर भले ही मरहम लगा दिया, मगर झारखंड के अधिकारियों की सुस्ती से उसकी टीस अब भी महसूस हो रही है।


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