जीवत्पुत्रिका 22 को, पुत्र की दीर्घायु के लिए माताएं रखेंगी व्रत
पौराणिक कथाओं व मान्यताओं के आधार पर माताओं द्वारा संतान की रक्षा हेतु व्रत किया जाएगा।
जासं, रांची : पौराणिक कथाओं व मान्यताओं के आधार पर माताओं द्वारा संतान की रक्षा हेतु किया जाने वाला प्रमुख व्रत जीवत्पुत्रिका है, जिसे जिउतिया व्रत के नाम से भी जाना जाता है। यह व्रत आश्विन कृष्ण पक्ष की उदया अष्टमी तिथि को किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि जिउतिया अर्थातं जीवत्पुत्रिका व्रत को करने से पुत्र शोक नहीं होता है। अत: इस व्रत को माताएं पुत्र की लंबी आयु, रक्षा, आरोग्यता, सबलता, सुख समृद्घि, ख्याति एवं कष्टों से मुक्ति की कामना से करती हैं। क्षेत्रीय लोकाचार एवं मान्यताओं के आधार पर इस व्रत में माताएं सप्तमी तिथि को दिन में नहाय-खाय, रात में विधिवतं पवित्र भोजन करके, अष्टमी तिथि के सूर्योदय से पूर्व भोर में ही सरगही व चिल्हो सियारो को भोज्य पदार्थ अर्पण कर व्रत का प्रारंभ करती हैं तथा विधिवतं राजा जीमूतवाहन की कथा को श्रवण करती हैं।
काशी से प्रकाशित पंचांगों के अनुसार जीवत्पुत्रिका व्रत सोमवार 22 सितंबर रविवार को है। इस बार शनिवार 21 सितंबर को दिन में 3:33 बजे तक सप्तमी तिथि रहेगी तदुपरांत अष्टमी तिथि लग रही है। अंष्टमी तिथि रविवार 22 सितंबर को दिन में 2:40 बजे तक रहेगी तदुपरांत नवमी तिथि लगेगी। पौराणिक व शास्त्रीय उल्लेखों के अनुसार सूर्योदय कालीन शुद्घ अष्टमी तिथि में व्रत करके तिथि के अंत में अर्थातं नवमी तिथि में पारण करना वर्णित है। सप्तमी विद्घ अष्टमी तिथि में व्रत प्रारंभ करना शास्त्र सम्मत नहीं है।
कात्यायन के अनुसार-आश्विने बहुले पक्षे याष्टमी भास्करोदये। स्वल्पापि चेतं् तदा कार्या सा स्मृता जीवत्पुत्रिका।।
माधवाचार्य के अनुसार-उदये चाष्टमी किंचितं् सकला नवमी भवेतं्। सैवोपोष्या वरस्त्रीभि: पूजयेज्जीवतं् पुत्रिकामं्।। निराहारं व्रतं कुर्यातं् तिथ्यन्ते पारणं सदा।। अर्थातं् जिउतिया व्रत सूर्योदय के उपरांत की शुद्घ अष्टमी में करना शास्त्रानुसार उचित है। अत: जिउतिया व्रत हेतु शनिवार 21 सितंबर को दिन में नहाय-खाय, रात्रि में शुद्घ भोजन, भोर में अर्थातं् रात्रि शेष 3:00 बजे से 4:00 बजे के मध्य सरगही एवं रविवार 22 सितंबर को शुद्घ उदया अष्टमी तिथि में जिउतिया व्रत एवं पूजन करना श्रेयस्कर रहेगा। जिउतिया व्रत का पारण सोमवार 23 सितंबर को प्रात: सूर्योदय के उपरांत करना शास्त्रोचित होगा। विशेष परिस्थिति में रविवार को पूजनोपरांत रात्रि मेंनवमी तिथि में जलपान या पारण करना भी शास्त्र सम्मत है। व्रत के दौरान शांत चित्त, क्रोध से दूर रहते हुए, सदं्विचार के साथ भगवतं भजन व ध्यान करें। परमपिता परमेश्वर की कृपा से सभी माताओं का व्रत सफल हो तथा उन्हें अभीष्ट व पूर्ण फल की प्राप्ति हों।
-पं रमा शंकर तिवारी, ज्योतिषाचार्य