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Migrant Workers Back Home: खाली हाथ घर कौन लौटना चाहता है साहब....

देश के विभिन्न शहरों से झारखंड लौटे प्रवासी मजदूरों ने सुनाया दर्द...आमदनी बंद खाने के भी लाले ऐसे में मकान मालिक बना रहा था किराया चुकाने का दबाव। आप भी जानिए मजलूमों का दर्द...

By Alok ShahiEdited By: Published: Sun, 31 May 2020 12:25 AM (IST)Updated: Sun, 31 May 2020 04:07 AM (IST)
Migrant Workers Back Home: खाली हाथ घर कौन लौटना चाहता है साहब....
Migrant Workers Back Home: खाली हाथ घर कौन लौटना चाहता है साहब....

रांची, जेएनएन।  रोजी-रोटी के चक्कर में अपने घर-बार को छोड़ परिवार से सैंकड़ो किलोमीटर दूर रहकर बड़े-बड़े शहरों की अर्थव्यवस्था का आधार बने प्रवासी मजदूर इन दिनों बुरे दौर से गुजर रहे हैं। कोरोना संकट और लॉकडाउन के बीच जब चारो ओर जिंदगी थम सी गई तो इसकी सबसे बड़ी मार इन मजदूरों ने ही झेली। श्रमिकों के पास न रोजी-रोटी का कोई साधन बचा, ना ही बिना काम के परदेस में रहने की कोई वजह।घर लौटना भी संभव नहीं था। आमदनी बंद हुई तो चूल्हा चलाना भी मुश्किल हो गया।

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जहां रह रहे थे, वहां कष्ट सहकर किसी तरह विपदा की घड़ी को झेल रह सकते थे, लेकिन घर का खर्च चलाने के साथ-साथ मकान का किराया भी चुकाना था, जो बेरोजगारी की हालत में संभव नहीं दिख रहा था। लाख मनाही के बावजूद पैदल नंगे पांव सैंकड़ो किलोमीटर की यात्रा पर भूखे- प्यासे निकल पड़े इन मजदूरों के घर पहुंचने की छटपटाहट को समझना उतना आसान नहीं। अब बड़ी संख्या में मजदूर झारखंड वापस आने के बाद अपनी पीड़ा बयां कर रहे हैं। बेगारी की स्थिति में घर पहुंचने से पहले ही इनकी सारी जमापूंजी भी खत्म हो चुकी हैं।

मुसीबत के वक्त भी मकान मालिक बना रहे थे किराये के लिए दबाव

लॉकडाउन के दौरान प्रधानमंत्री समेत देश के विभिन्न राज्यों की सरकारों ने गरीब मजदूरों को राहत देने के लिए मकान मालिकों से अपील की कि संकट के क्षण में गरीब और बेबस लोगों पर किराया देने का दबाव न बनाएं और सहानुभूति का रवैया अपनाएं, पुलिस-प्रशासन ने विभिन्न शहरों में माइक से घोषणा की, हेल्पलाइन नंबर भी जारी किये.  लेकिन इस अपील का कम ही असर देखने को मिला।

मुंबई, अंबाला, दिल्ली, हैदराबाद, वेल्लोर, तिरुचिरापल्ली, चेन्नई, बेंगलुरु, पानीपत, रोहतक  समेत विभिन्न शहरों से  झारखंड लौटे मजदूरों ने यह बात दोहराई है कि मकान का किराया न चुका पाना उनके घर लौटने की एक बड़ी वजह रही। पानीपत से कोडरमा लौटे प्रकाश रमानी और रोहतक से रामगढ़ आए दिनेश पासवान भी अपना ददर् बताते हुए भावुक हो जाते हैं।

प्रकाश रमानी कहते हैं कि अगर वहां आमदनी का कोई साधन होता और मकान मालिक किराया के लिए परेशान नहीं करते तो घर लौटने की उतनी जल्दबाजी नहीं थी, वैसे भी खाली हाथ कौन घर लौटना चाहता है।  रोहतक से आए दिनेश कहते हैं कि रोहतक में तो पुलिस ने बाकायदा माइक से किराया नहीं लेने के लिए एनाउंसमेंट किया था, मकानमालिकों द्वारा दबाव बनाकर किराया वसूले जाने की स्थिति में शिकायत के लिए हेल्पलाइन नंबर भी जारी किया था, लेकिन इन सबके बावजूद मकान मालिकों ने किराया के लिए दबाव बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। हर दूसरे दिन मकान खाली कराने की धमकी दी जाती थी।

गोड्डा जिले के मेहरमा प्रखंड अंतर्गत बलिया गांव के श्रमिक संजीव यादव व रामप्रवेश यादव तेलंगाना में ट्रक पर टाइल्स चढ़ाने व उतारने का काम करते थे। मासिक पगार के तौर पर 10 हज़ार रुपये मिलते थे। ठेकेदार मदन ने घर आने से पहले पूरे पैसे भी नहीं दिए। वहीं मकान मालिक ने मई तक का एडवांस किराया वसूल लिया। पहले कुछ साथी मजदूरों ने बताया था कि लॉकडाउन में मकान मालिक किराया नहीं मांगेगे, लेकिन हकीकत इससे अलग थी।

मार्च और अप्रैल का किराया तो किसी तरह चुका दिया, लेकिन मई का किराया चुकाना संभव नहीं था, लेकिन वह भी किसी तरह चुकाना पड़ा। मकान मालिक मकान खाली करने के लिए दबाव बना रहे थे। आगे कबतक काम बंद रहता और लॉकडाउन जारी रहता, इसका अंदाजा लगाना भी मुश्किल था।  ऐसे में हमलोगों के पास घर लौटने के सिवा कोई चारा नहीं था। ज्यादा दिन रुकने पर परेशानी और बढ़ सकती थी।

यही वजह है कि बड़ी संख्या में लोग अपने घर के लिए पैदल ही निकल पड़े थे। रामप्रवेश बताते हैं कि वह ट्रेन के किराये की राशि का भी किसी तरह मांग कर जुगाड़ किया। घर पहुंचने से पहले ही सारी जमापूंजी खत्म हो गई और खाली हाथ घर आना पड़ा। दोनों श्रमिक ट्रेन से बीते  2 मई को भागलपुर पहुंचे। वहां से पैदल मेहरमा आए। स्वास्थ्य परीक्षण के बाद क्वारंटाइन में रहे। अब घर पर रोजगार की तलाश कर रहे हैं।  वहीं एक सप्ताह पूर्व गोड्डा के ही ठाकुरगंगटी  प्रखंड के चांदा गांव के गोपाल पासवान दिल्ली से लौटे। वहां उत्तर प्रदेश के ठेकेदार ओमप्रकाश के अधीन वह दिल्ली के राम नगर में दिहाड़ी का काम करते थे। उनपर मकान मालिक ने जून तक का किराया देने का दबाव बनाया था।

गिरिडीह के पचंबा थाना क्षेत्र के बोड़ो निवासी कृष्णकांत नोएडा में एक मोबाइल कंपनी में काम करते थे। इन्हें 12 हजार रुपये मिलते थे। एक कमरे में तीन लोग रहते थे जिनमें एक बिहार व एक यूपी के थे। तीनों मिलकर 4500 रुपये कमरे का किराया चुकाते थे। मार्च का किराया वसूलते वक्त मकान मालिक ने 1500 रुपये किराया माफ किया था, लेकिन अप्रैल में मालिक ने फिर पूरा किराया वसूला। इस बीच उनके साथ रहने वाले दोनों युवक किसी तरह अपने गांव लौट गए। ऐसे में 4500 रुपये अब अकेले उसे ही चुकाने थे। यह किराया अकेले देने में सक्षम नहीं था। इस कारण वह भी घर लौट गया।

पाकुड़ के पकड़िया प्रखंड के शमीम अंसारी कोलकाता की एक सूत फैक्ट्री में काम करते थे। वहां उसने 2000 रुपये मासिक किराए पर कमरा ले रखा था । लॉक डाउन के कारण जब काम बंद हो गया  तो शमीम के लिए भी किराया चुकाना मुश्किल होने लगा । मकान मालिक ने कहा किराया नहीं दोगे तो मकान खाली करना होगा।  काम बंद रहने के कारण वेतन नहीं मिल रहा था। इसके कारण शमीम कोलकाता से अपने गांव वापस आ गया। घर लौटने से इन मजदूरो के चेहरे पर सुकून का भाव तो है, लेकिन अब नये सिरे से  जिंदगी की गाड़ी खींचने की चुनौती है।


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