Move to Jagran APP

रांची में लावारिसों को 'मुक्ति' की राह दिखा रही यह संस्था

रिम्स का मर्चरी हाउस जहां रखी रहती थीं लावारिस लाशें

By Krishan KumarEdited By: Published: Mon, 24 Sep 2018 06:00 AM (IST)Updated: Mon, 24 Sep 2018 06:00 AM (IST)
रांची में लावारिसों को 'मुक्ति' की राह दिखा रही यह संस्था

जागरण संवाददाता, रांची : राजधानी में कई संस्थाएं ऐसी हैं जो नि:स्वार्थ भाव से अपने कार्यों के माध्यम से न सिर्फ सामाजिक जिम्मेदारी निभा रही हैं, बल्कि मानवीय संवेदनाओं को जगा कर दूसरों को भी नेक काम के लिए प्रेरित कर रही हैं। रांची की 'मुक्ति' संस्था भी ऐसी ही संस्थाओं में एक है। इस संस्था ने लावारिस लाशों के अंतिम संस्कार का बीड़ा उठाया है। पिछले चार वर्षों के दौरान संस्था सैंकड़ों ऐसे शवों की अंत्येष्टि कर चुकी है जिन्हें अंतिम विदाई देने के लिए उनके अपने उनके पास मौजूद नहीं थे।

loksabha election banner

इस अभियान ने लावारिसों को मुक्ति देने का सिलसिला शुरू किया वहीं रिम्स में भी पोस्टमार्टम के बाद लाश रखी जानेवाली जगह में फ्रीजर, सफाई आदि की व्यवस्था को सुचारू कराया। अब रांची के अलावा धनबाद और जमशेदपुर के मेडिकल कॉलेज के साथ जुड़कर भी संस्था ने वहां भी यह काम शुरू किया है।

चार साल पहले शुरू हुआ सिलसिला

शहर के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स में अक्सर वैसे लोगों की लाश लावारिस पड़ी रहती थी जिन्हें पुलिस ने कहीं से लावारिस बरामद किया है या जिन्हें अस्पताल में ही छोड़कर कोई भाग गया हो। इन लाशों की न कोई जिम्मेदारी लेने वाला था ना ही अंतिम संस्कार करनेवाला। ना ही इन्हें ठीक से रखे जाने की व्यवस्था थी। हजारीबाग के एक समाजसेवी मो. खालिद की प्रेरणा से रांची के व्यवसायी प्रवीण लोहिया ने भी एक संगठन बनाकर इन लाशों को सम्मानपूर्वक अंतिम विदाई देने की ठानी। खालिद खुद भी हजारीबाग में ऐसा अभियान चलाते हैं।

इसके बाद कई लोग सामने आए और देखते ही देखते 2014 में मुक्ति नाम की एक संस्था बन गई। फिर रिम्स प्रबंधन से लेकर पुलिस, प्रशासन और नगर निगम से बात कर रांची-पटना रोड पर स्थित जुमार पुल के नीचे नदी किनारे इन लाशों की अंत्येष्टि का सिलसिला शुरू हुआ। अब हर ढाई महीने में एक बार संस्था की ओर से इन लाशों का अंतिम संस्कार कराया जाता है। संस्था के सभी लोग सेवा भाव से और पुण्य काम समझते हुए जिम्मेदारी पूर्वक इस काम को करते हैं। इसमें आनेवाले खर्च का वहन संस्था के लोग सामूहिक रूप से उठाते हैं।

अबतक संस्था 605 शवों की विधि-विधान पूर्वक सामूहिक अंत्येष्टि करा चुकी हैं। अब व्यवस्था ऐसी बन गई है कि ढाई महीने में जैसे ही कुछ शव जमा हो जाते हैं, रिम्स प्रबंधन इसकी सूचना मुक्ति संस्था को देकर उनके अंतिम संस्कार का आग्रह करता है। इसके बाद संस्था के लोग सक्रिय हो जाते हैं। आगामी 30 सितंबर को भी संस्था जुमार पुल के पास 22 शवों की अंत्येष्टि करेगी।

...ताकि ना रहे कोई लावारिस
संस्था की कोशिश यह भी है कि कोई भी व्यक्ति लावारिस रहे ही ना, इसके लिए सरकार-पुलिस और अस्पताल से लगातार आग्रह किया जा रहा है कि आधार के माध्यम से बायोमेट्रिक पहचान के जरिए लोगों की शिनाख्त की कोशिश हो। इससे वैसे लोगों को भी सुकून मिलेगा जिन्हें पता ही नहीं चल पाता कि उनके किसी अपने की मौत हो गई है। इस तरह वे खुद परिजनों के अंतिम संस्कार का फर्ज भी निभा पाएंगे।

सोशल मीडिया पर भी चल रहा अभियान

संस्था ने अपने अभियान से लोगों को जोडऩे के लिए फेसबुक पर मुक्ति नाम से पेज बनाया है। इससे काफी लोग जुड़े हैं। वाट्सएप से भी लोगों को जोड़ा गया है। संस्था के काम की लगातार सराहना हो रही है। कई पुरस्कार भी मिल चुके हैं।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.