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मेक स्माल स्ट्रांग : कोरोना काल में बुलंद इरादों व दृढ़ इच्छाशक्ति से कायम रखी पहचान

इरादे बुलंद हों तो एक न एक दिन कामयाबी मिल ही जाती है। इसके लिए जुनून और दृढ़ इच्छाशक्ति की जरूरत है। आज उनकी इमानदारी के पैसे की पूंजी ही है जो बरकत हो रही है। मैंने व्यापार में दो चीजें सीखीं ग्राहक को कभी खाली हाथ न जाने दो।

By Edited By: Published: Sun, 25 Oct 2020 06:20 PM (IST)Updated: Sun, 25 Oct 2020 06:20 PM (IST)
मेक स्माल स्ट्रांग : कोरोना काल में बुलंद इरादों व दृढ़ इच्छाशक्ति से कायम रखी पहचान
1976 में 16 वर्ष की आयु में व्यापार शुरू किया।

जासं, रांची : इरादे बुलंद हों तो एक न एक दिन कामयाबी मिल ही जाती है। इसके लिए जुनून और कड़ी मेहनत चाहिए। भारत इलेक्ट्रॉनिक्स के संस्थापक मोहम्मद गयासुद्दीन ने 1976 में 16 वर्ष की आयु में व्यापार शुरू किया। तब से लेकर आज तक उन्होंने न सिर्फ इलेक्ट्रॉनिक्स की दुनिया में अपना एक ब्रांड स्थापित किया, बल्कि अपने ग्राहकों से अटूट रिश्ता भी बनाया। कोरोना काल में जहां व्यापारिक मंदी ने दुकानदारों को परेशानी में डाल दिया। मोहम्मद गयासुद्दीन ने व्यापार को ठंडे दिमाग से रणनीति बनाकर तरक्की की। वो बताते हैं कि कोरोना संक्रमण जैसी भयावह स्थिति मानव जाति और व्यापार के लिए कभी नहीं देखी। भारत इलेक्ट्रॉनिक्स दुकान को कभी इतने दिनों के लिए नहीं बंद करना पड़ा था। व्यापार में बना पुराना नाम ही पूंजी की तरह काम आया। दुकान पर लोगों के भरोसे ने हमें खड़े रहने की ताकत दी। ------- अनलाक में सामने खड़ी थी मुसीबतें: भारत इलेक्ट्रॉनिक्स के संस्थापक बताते हैं कि लॉकडाउन में ऐसी स्थिति थी कि केवल खर्च थे और कमाई एक रुपये नहीं। इस हाल में भी मैंने अपने किसी कर्मचारी को नहीं निकाला। हर तरह से उनकी आर्थिक मदद की। मगर असली मुसीबत अनलॉक शुरू होने पर सामने आई। दुकान का किराया, बिजली का बिल, बैंक की इएमआइ और अन्य कई ऐसे खर्चें सामने खड़े थे। इनसे निबटने के लिए रणनीति बनाई। खर्चों को जरूरत के हिसाब से श्रेणी में बांटज्ञ। मुश्किल का हल धीरे-धीरे निकल गया। अब व्यापार अच्छा चल रहा है। जल्द ही रांची की पांच दुकानों के अलावा अब एक नया शोरूम कांके रोड में भी खुलने वाला है। -------- ग्राहकों में जगाया सुरक्षा का भाव: कोरोना काल में कोई भी ग्राहक संक्रमण के खतरे से घर से बाहर निकलने से कतरा रहा था। ऐसे में विभिन्न माध्यमों का इस्तेमाल करके लोगों तक सूचना पहुंचाई की भारत इलेक्ट्रॉनिक्स सुरक्षित है। ग्राहकों का नाम मोबाइल नंबर लेने के साथ उनकी थर्मल स्कैनिंग की जाती है। इसके साथ ही दुकान में जगह-जगह पर सैनिटाइजर की व्यवस्था है। थोड़े अंतराल पर हम पूरी दुकान सैनिटाइज करवाते हैं। हमारे यहां कोरोना संबंधी गाइडलाइन का सख्ती से पालन किया जाता है। इससे भी ग्राहकों का भरोसा हमपर पक्का हुआ। ------ आवश्यकताओं ने कारोबार को दी संजीवनी: मोहम्मद गयासुद्दीन बताते हैं कि लॉकडाउन में लोगों की जरूरतें कम नहीं हुईं। लोगों को कपड़े धोने और सुखाने के लिए वा¨शग मशीन की जरूरत थी। फल और सब्जियों के लिए फ्रिज और पानी से होने वाली बीमारियों से सुरक्षा के लिए आरओ प्लांट। यही नहीं सभी उत्पाद की बिक्री कोरोना काल में दुकान खुलने के बाद तेज हुई। लोग फूड प्रोसेसर घर में जूस पीने के लिए ले जा रहे थे। वहीं घर में बंद बच्चों और बड़ों के लिए टीवी की जरूरत भी पड़ी। ऐसे में लोगों की आवश्यकताओं ने व्यापार को संजीवनी देने में मदद की। हालांकि एक बात जो कोरोना काल में देखने को मिली कि लोगों की खरीदने की इच्छा तो थी, मगर पाकेट में पैसे की कमी थी। हमने इच्छा अनुसार फाइनेंस का आप्शन दिया। इससे उन्हें सहूलियत मिली। ----- मां के दिए पैसे से शुरू किया था कारोबार: मोहम्मद गयासुद्दीन बताते हैं कि परिवार में मान्यता थी कि व्यापार हमारे यहां फलता नहीं है। इसलिए किसी ने कभी व्यापार नहीं किया। मगर घर की आर्थिक स्थिति इतनी तंग थी कि पांव पसारने को चादर ही नहीं थी। मेरी मां बहुत समझदार हैं। उन्होंने अपना पेट काटकर तीन हजार रुपये जमा किए थे। मेरे व्यापार करने की इच्छा पर उन्होंने मेरे हाथ में पैसे रख दिए। पहली बार व्यापार में घाटा हुआ। फिर पिता ने हिम्मत बढ़ाई और उनके दोस्तों ने अपने पीएफ के पैसे से मेरी मदद की। आज उनकी इमानदारी के पैसे की पूंजी ही है जो बरकत हो रही है। मैंने व्यापार में दो चीजें सीखीं, ग्राहक को कभी खाली हाथ न जाने दो। कम से कम मार्जिन पर उसे जरूरत का सामान दो। इमानदारी से पैसे कमाओ तो व्यापार में बरकत तय है। --------- बच्चों को दी शिक्षा की पूंजी: मोहम्मद गयासुद्दीन की चार बेटियां और दो बेटे हैं। वो बताते हैं कि जिस तरह दुकान को चलाने के लिए पूंजी को सुरक्षित रखने की जरूरत है। उसी तरह परिवार को खुशहाल रखने के लिए शिक्षा की। इसलिए मैंने अपने सभी बच्चों को बेहतर और उच्च शिक्षा दी। कल अगर दुकान न भी रहे तो मेरे बच्चे इस लायक होंगे कि अपने पैरों पर खड़े हो सकें।

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