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महाराज प्रमाणिक का बड़ा खुलासा : सालाना पांच करोड़ की उठाते थे लेवी, बड़े नक्सली नेता कर लेते थे बंदरबांट

Ranchi News जोनल कमांडर महाराज प्रमाणिक मूल रूप से सरायकेला-खरसांवा जिले के इचागढ़ थाना क्षेत्र के दारूदा गांव का रहने वाला है। उसने बताया कि वर्ष 2007-08 में वह चांडिल स्थित एसबी कॉलेज में गणित स्नातक पार्ट टू में पढ़ता था।

By Madhukar KumarEdited By: Published: Fri, 21 Jan 2022 05:57 PM (IST)Updated: Fri, 21 Jan 2022 05:57 PM (IST)
महाराज प्रमाणिक का बड़ा खुलासा : सालाना पांच करोड़ की उठाते थे लेवी, बड़े नक्सली नेता कर लेते थे बंदरबांट
महाराज प्रमाणिक का बड़ा खुलासा : सालाना पांच करोड़ की उठाते थे लेवी, बड़े नक्सली नेता कर लेते थे बंदरबांट

रांची, राज्य ब्यूरो। आत्मसमर्पण के मौके पर माओवादियों के जोनल कमांडर महाराज प्रमाणिक उर्फ राज उर्फ बबलू उर्फ अशोक ने संगठन के बारे में विस्तार से बताया। उसने यह भी बताया कि प्रति वर्ष वह अपने सभी चार सब जोन से पांच करोड़ की लेवी वसूलता था और अपने शीर्ष नक्सलियों को पहुंचाता था। लेवी की यह राशि सड़क निर्माण कंपनी, पुल-पुलिया निर्माण, टावर आदि निर्माण के ठेकेदार से मिलती है। शीर्ष नक्सली आपस में ही रुपयों का बंदरबांट कर लेते थे। उन्हीं के पास लेवी के रुपयों के आय-व्यय का ब्योरा होता है। इसकी रसीद शीर्ष नक्सली नेता रखते हैं। वे अपने बच्चों को देश-विदेशी में अच्छी शिक्षा देते हैं और नीचे के नक्सलियों का शोषण करते हैं। उसने यह भी बताया कि जोनल रैंक को केवल लेवी वसूलने का जिम्मा था, खर्च करने का अधिकार सेंट्रल कमेटी सदस्य, पोलित ब्यूरो के पास था। रुपये-पैसे के मामले में सवाल-जवाब करने का अधिकार नीचे के नक्सलियों को नहीं होता है। उसने अपने उपर लगे आरोप की उसने संगठन के 40 लाख रुपये की हेराफेरी की, इसे गलत बताया है। उसने यह भी बताया कि नक्सलियों का सिद्धांत कि अमीर को लूटो, गरीब में बांटो अब नहीं रहा। नक्सली उल्टे आम जनता को लूटने में लगे हैं, उनकी खाते हैं, लेकिन उन्हें फूटी कौड़ी भी नहीं देते हैं, जिसके चलते आम जनता भी उनसे खफा व प्रताड़ित हो चुकी है। संगठन की इन्हीं विषमताओं के कारण उसने 14 अगस्त को माओवादी संगठन छोड़ दिया था।

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ऐसे माओवादी बना महाराज प्रमाणिक, फिर बन गया कुख्यात

जोनल कमांडर महाराज प्रमाणिक मूल रूप से सरायकेला-खरसांवा जिले के इचागढ़ थाना क्षेत्र के दारूदा गांव का रहने वाला है। उसने बताया कि वर्ष 2007-08 में वह चांडिल स्थित एसबी कॉलेज में गणित स्नातक पार्ट टू में पढ़ता था। उसी दौरान उसकी मां जो उस वक्त आंगनबाड़ी सेविका थी, उसे चबूतरा निर्माण के दौरान विवाद हो गया था। उस विवाद में गांव के ही कुछ लोगों ने उसकी मां को जान से मारने के लिए सुपारी दे दी। अपराधी एक दिन उसकी मां को मारने के लिए घर पर धावा बोल दिए, लेकिन उसकी मां घर पर नहीं थी, जिसके चलते बच गई। तब महाराज प्रमाणिक ने इधर-उधर सबसे गुहार लगाई, लेकिन कहीं से भी कोई मदद नहीं मिल पाया। इसी वक्त विरोध व मारपीट में महाराज प्रमाणिक जेल गया। जेल से छूटने के बाद गांव आया। उस वक्त इसके गांव के आसपास भाकपा माओवादी नक्सली संगठन का एरिया कमांडर राम विलास लोहरा का दस्ता सक्रिय था। महाराज प्रमाणिक उससे मिला। राम विलास लोहरा ने उसकी मुलाकात वहां के सब जोनल कमांडर डेविड महतो, मार्शल टूटी से मुलाकात करा दी। नक्सलियों ने उसे समझा-बुझाकर अपने संगठन में शामिल कर लिया। वर्ष 2008-09 से महाराज प्रमाणिक माओवादियों के साथ सक्रिय रूप् से जुड़कर काम करने लगा। शुरूआत में उसे स्थानीय होने के कारण ग्रामीणों को संगठन से जोड़ने की जिम्मेदारी दी गई। एक साल तक इसने बड़ी लगनशीलता से काम किया और उस क्षेत्र में जनता को पार्टी से जोड़ा, जिससे पार्टी मजबूत हो गई।

वर्ष 2010 में कुंदन पाहन से मिला और बना एरिया कमांडर, 2011 में कोटेश्वर राव से मिला

महाराज प्रमाणिक ने बताया कि वर्ष 2010 में जोनल कमांडर कुंदन पाहन से उसकी मुलाकात हेस्साकोचा क्षेत्र में हुई थी। वहां इसके कार्य कुशलता को देखते हुए पार्टी ने उसे चांडिल क्षेत्र का एरिया कमांडर बना दिया। वर्ष 2011 में केंद्रीय कमेटी सदस्य कोटेश्वर राव उर्फ किशन से मुलाकात हुई। वह उस वक्त सारंडा से बंगाल लौट रहा था, उसको पार कराने के लिए अनल, अतुल, अमित भी साथ थे। उस वक्त महाराज प्रमाणिक ने कोटेश्वर राव को सफलता पूर्वक बंगाल पार करवा दिया। इससे प्रभावित होकर अनल ने महाराज प्रमाणिक को अपने साथ रख लिया और पोड़ाहाट चला गया। वहां पर अनल ने ही महाराज प्रमाणिक को प्रशांत बोस से मिलवाया। वापस अनल के साथ ही महाराज प्रमाणिक ट्रायजक्शन इलाके में आ गया। वर्ष 2013 में कुंदन पाहन संगठन छोड़कर भाग गया तो महाराज प्रमाणिक को बुंडू, चांडिल का सब जोनल कमांडर बना दिया गया। नक्सली संगठन में बेहतर काम करने के चलते वर्ष 2015 में महाराज प्रमाणिक को जोनल कमांडर बना दिया गया। तब से इसने संगठन को मजबूती दी। बंगाल, उत्तरी जोन (गिरिडीह, बोकारो, संथाल परगना) के शीर्ष नेताओं (किशन, विवेक, मिसिर बेसरा, कंचन) को सुरक्षित रूप से (सारंडा, पोड़ाहाट, ट्राइजक्शन क्षेत्र) तक लाने व ले जाने में महाराज प्रमाणिक मुख्य भूमिका निभा रहा था।

शोषण व लेवी वसूली की पार्टी हो गए हैं भाकपा माओवादी

महाराज प्रमाणिक ने बताया कि वह अपने घर की परेशानियों व नक्सलियों के सिद्धांतों से प्रभावित होकर संगठन से जुड़ा था, लेकिन नक्सली संगठन अपने सिद्धांतों व दिशा से भटक गए हें। अब भाकपा माओवादी शाेषण व लेवी वसूली की पार्टी हो गए हैं। शीर्ष नक्सली कमांडर नीचे के कमांडरों का शोषण करते हैं। वे सिद्धांत के विपरित कार्य करने के लिए भ्रमणशील इलाकों के ग्रामीणों को अनावश्यक रूप से प्रताड़ित करते हैं और दबाव बनाते हैं। इससे नक्सलियों को ग्रामीणों का साथ नहीं मिल रहा है। यही वजह है कि पूर्व में जीवन कंडुलना, कुंदन पाहन, बोयदा पाहन, नकुल पाहन आदि आत्मसमर्पण कर चुके हैं।

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