Move to Jagran APP

पिता-पुत्र की जिंदगी में फैली स्‍वीट कॉर्न की मिठास, जानें कैसे हर साल हो रही लाखों की कमाई...

Lohardaga News Jharkhand लोहरदगा के सेन्‍हा एक पिता-पुत्र मिलकर स्वीट कॉर्न की खेती करते हैं। इसकी बाजार में अच्छी कीमत मिलती है। प्रखंड के अन्‍य किसानों को भी इन्‍होंने एक अच्‍छा उदाहरण दिया है। पुत्र हेमंत ने इसका प्रशिक्षण लिया है।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Wed, 13 Jan 2021 02:36 PM (IST)Updated: Thu, 14 Jan 2021 05:05 AM (IST)
सेन्‍हा के अपने खेत में रामवृक्ष महतो। जागरण

सेन्हा (लोहरदगा), [गफ्फार अंसारी]। यदि स्थानीय बाजार की मांग को ध्यान में रखते हुए वैज्ञानिक तरीके से किसान खेती करें तो यह कभी घाटे का सौदा साबित नहीं होगा। खेती से आर्थिक समृद्धि के साथ-साथ हम गांव-घर की जीवन-शैली भी बदल सकते हैं। कुछ ऐसा ही कर दिखाया है लोहरदगा जिले के सेन्हा प्रखंड क्षेत्र के रामनगर गांव में रहने वाले किसान पिता-पुत्र ने। नाम है रामवृक्ष महतो और हेमंत महतो।

loksabha election banner

पारंपरिक तरीके से मक्के की खेती करने वाले पिता-पुत्र अब स्वीट कॉर्न की खेती कर रहे हैं। इनकी जिंदगी में अब मिठास तैर रही है। इनके घर-परिवार की सूरत ही बदल गई है। अपने गांव के दूसरे किसानों के लिए भी प्रेरणास्रोत बन गए हैं। दरवाजे पर हर दिन किसान और कारोबारी धमक पड़ते हैं। यह किसान जहां स्वीट कॉर्न की खेती का हुनर सीखना चाहते हैं, कारोबारी स्वीट कॉर्न का सौदा करते हैं। दरवाजे से ही इनका उत्पादन दूसरे शहरों में पहुंचने लगा है।

पिता रामवृक्ष महतो और पुत्र हेमंत महतो भी अपने गांव के दूसरे किसानों की तरह की पारंपरिक तरीके से धान आदि की खेती किया करते थे, लेकिन आमदनी उतनी नहीं होती कि घर में सुख-समृद्धि आ सके। मन की इच्छाएं परवाज भर सकें। हर बार उतना ही उत्पादन होता जिससे घर में भोजन की कोई दिक्कत नहीं होती। बारिश के भरोसे पिता-पुत्र धान उपजाते थे। शेष दिनों में यूं ही खेत खाली पड़ा रहता। कई बार तो पानी के अभाव में धान की फसल ही चौपट हो जाती थी।

एक दिन रामवृक्ष महतो ने अपने पुत्र हेमंत महतो से कहा कि खेती-किसानी में कोई फायदा नहीं है। अब दूसरा रोजगार करना होगा। दोनों इस पर मंथन कर ही रहे थे कि एक दिन हेमंत महतो को मदर डेयरी संस्था के बारे में पता चला, जो कृषकों को आधुनिक तरीके से खेती का तरीका बताने का काम करती थी। यह वाक्या तीन साल पहले का है। हेमंत महतो ने मदर डेयरी से जुड़कर राजधानी रांची के पिस्का मोड़ में प्रशिक्षण प्राप्त किया।

फिर सेन्हा प्रखंड के एकागुड़ी गांव के प्रगतिशील किसान सचिन महतो और राजकिशोर महतो से स्वीट कॉर्न की खेती की बारीकी को समझा। प्रशिक्षण के बाद संस्था की ओर से खाद-बीज और दवा आदि उपलब्ध कराए गए। पहले साल संस्था ने ही स्वीट कॉर्न को 11 रुपये प्रति किलो की दर से खरीद लिया। इससे अच्छी आमदनी हुई तो पिता-पुत्र का हौसला बढ़ गया। इसके बाद दोनों स्वीट कॉर्न की खेती करने लगे।

अब प्रति एकड़ कमा रहे डेढ़ लाख रुपये मुनाफा

किसान हेमंत महतो बताते हैं कि वे तीन एकड़ में अभी स्वीट कॉर्न की खेती कर रहे हैं। प्रति एकड़ उत्पादन पर 40 हजार रुपये खर्च आता है। दो लाख रुपये की आमदनी होती है। इसमें से डेढ़ लाख मुनाफे के रूप में बच जाते हैं। बताते हैं कि जहां सामान्य मक्का 10 रुपये प्रति किलो बिकता है, वहीं स्वीट कॉर्न बाजार में 40 रुपये प्रति किलो की दर से बिकता है। कारोबारी जब खेत में आकर खरीदारी करते हैं, तो 30 रुपये प्रति किलो की दर से उत्पाद बिक जाता है।

फसल बेचने के लिए अब नहीं जाना पड़ता है बाजार

हेमंत महतो कहते हैं कि पहले धान बेचने के लिए सरकारी क्रय केंद्र पर जाना पड़ता था। नंबर लगाकर इंतजार करना पड़ता था। पैसे भी देर से मिलते थे। अब ऐसी झंझटों से मुक्ति मिल गई है। जैसे ही स्वीट कॉर्न तैयार होते हैं, कारोबारी दरवाजे पर धमक पड़ते हैं। वहीं सौदा तय होता है और खेत से ही स्वीट कॉर्न बड़े शहरों में पहुंच जाता है। रांची और कोलकाता के कई कारोबारी तो एडवांस देकर सौदा भी तय कर लेते हैं। शहर के बाजार में इसकी मांग अधिक है। अगर कभी कभार थोड़ी बहुत फसल बच जाती है तो खुद ही बाजार जाकर बेच भी आते हैं।

फसल तोड़ने के बाद हरा चारा बेच कर भी कमा लेते हैं पैसा

हेमंत महतो बताते हैं कि फसल तोड़ने के बाद शेष हिस्से यानी पत्ते मवेशियों के चारा के रूप काम आ जाते हैं। वे इसे बड़े चाव से खाना पसंद करते हैं। गांव-घर के लोग इसे खरीदकर ले जाते हैं। इससे भी थोड़ी बहुत आमदनी हो जाती है। खैर, वे कहते हैं कि गांव की मिट्टी और जलवायु स्वीट कॉर्न की खेती के लिए उम्दा है। अम्लीय व क्षारीय मिट्टी को छोड़कर किसी भी मिट्टी में इसकी खेती संभव है। हां, खेत में पानी की निकासी की व्यवस्था जरूर होनी चाहिए। बाजार में इसके कई प्रभेद के बीज उपलब्ध हैं। 70 से 85 दिनों के भीतर फसल तैयार हो जाती है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.