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विद्यार्थियों पर है वज्रपात का खतरा

बिजय कुमार ठाकुर, रांची : शहर व आसपास के इलाके में मानसून की बारिश शुरू होने से पहले ही वज्रपात क

By JagranEdited By: Published: Sat, 23 Jun 2018 08:54 AM (IST)Updated: Sat, 23 Jun 2018 08:54 AM (IST)
विद्यार्थियों पर है वज्रपात का खतरा
विद्यार्थियों पर है वज्रपात का खतरा

बिजय कुमार ठाकुर, रांची : शहर व आसपास के इलाके में मानसून की बारिश शुरू होने से पहले ही वज्रपात की घटनाएं सामने आने लगी हैं। मानसून आने के साथ वृद्धि के संकेत हैं। सरकारी स्कूलों में तड़ित चालक या वज्रपात से बचाव के साधन नहीं के बराबर है। वर्षो पूर्व शहर के कुछ स्कूलों में तड़ित चालक लगाए गए थे, जो या तो चोरी हो चुके हैं या बेकार हो गए हैं। मानसून को देखते हुए सभी जगह बचाव के लिए लोग अपने-अपने स्तर से तैयारी करते हैं, लेकिन बच्चों की देखभाल के लिए शिक्षा विभाग की अबतक कोई तैयारी नहीं दिख रही है। विशेषकर सरकारी विद्यालयों में नौनिहालों की सलामती के लिए तड़ित चालक की मुक्कमल व्यवस्था नहीं की गई है। विद्यालयों में पूर्व में हुई वज्रपात की घटनाओं के बाद भी विभाग नहीं चेता है। पूर्व में तड़ित चालक तो लगाये गये थे, लेकिन सुरक्षा के उपाय नहीं होने या विद्यालय व विभाग की उदासीनता के कारण या तो चोरी हो गये या फिर गिरकर क्षतिग्रस्त हो गए। कुछ वर्ष पूर्व नामकुम क्षेत्र में स्कूल संचालन के समय ही वज्रपात की घटना हुई थी। इसमें कई बच्चों का जान चला गई थी। इसके बाद शिक्षा विभाग सतर्क हुआ था, लेकिन फिर पुरानी राह पर है। जिले में 2300 से अधिक विद्यालय हैं। सरकारी अनुमान की माने तो जिले के दस फीसद विद्यालयों में ही तड़ित चालक है। 90 फीसद सरकारी विद्यालयों में तड़ित चालक की कोई व्यवस्था नहीं है। राजकीय विद्यालयों की संख्या 5, राजकीयकृत 51, प्रोजेक्ट 16, अल्पसंख्यक 28, स्वायत 7, स्थापना अनुमति 184, प्लस टू उच्च विद्यालय 20 व प्राथमिक मध्य व उत्क्रमित मध्य मिलाकर करीब 2000 विद्यालय है। 13 कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालयों में तड़ित चालक यंत्र की व्यवस्था किए जाने की शत फीसद दावा विभाग करता है, लेकिन बाकी के अधिसंख्य उच्च, प्लस टू, प्राथमिक व मध्य विद्यालयों में तड़ित चालक नहीं है। तड़ित चालक को लेकर जिलास्तरीय शिक्षा विभाग के पास कोई अद्यतन आंकड़ा तक नहीं है।

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तत्कालीन शिक्षा मंत्री ने की थी पहल

तत्कालीन शिक्षा मंत्री बंधु तिर्की के कार्यकाल में वर्ष 2010-11, 2011-12 व 2012-13 में स्कूलों में तड़ित चालक यंत्र लगाए गए थे। इसके लिए प्रति विद्यालय 36 हजार रुपये दिये गये थे। कितने स्कूलों में यह लगा इसकी जांच तक नहीं हुई। प्राचार्या के उपयोगिता प्रमाण पत्र पर ही भरोसा कर लिया गया। अधिसंख्य स्कूलों में तड़ित चालक चोरी हो चुके हैं। इसका रिकॉर्ड भी जिला शिक्षा अधीक्षक या जिला शिक्षा पदाधिकारी कार्यालय के पास नहीं है।

रिपोर्ट में कहा, चोरी हो गया तड़ित चालक

जिला शिक्षा पदाधिकारी कार्यालय की ओर से पिछले कुछ वर्ष पूर्व तड़ित चालक की रिपोर्ट मंगाई गई थी। प्राचार्यो की सुस्ती के कारण आधे से भी कम प्राचार्यो ने रिपोर्ट सौंपी थी। जिसने रिपोर्ट दी थी उसमें अधिसंख्य स्कूलों ने यह सूचना दी थी कि उनके विद्यालय का तड़ित चालक यंत्र चोरी हो गया है। हालाकि इस मामले में कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं कराई गई थी। प्राचार्यो की ओर से यह दलील दी जाती है कि रात्रि प्रहरी की व्यवस्था नहीं होने के कारण चोरी की घटनाएं होती है। यंत्र में कॉपर का तार लगा रहता है। इसलिए चोरों की नजर इस पर बनी रहती है।

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'तड़ित चालक लगवाने को लेकर कोई अलग से बजट नहीं है। न ही कोई निर्देश प्राप्त हुआ है। हालांकि बच्चों की सुरक्षा होनी चाहिए। इसके लिए विद्यालय विकास समिति की बैठक स्थानीय विधायक की अध्यक्षता में होती है। उसमें निर्णय लेकर विद्यालय विकास कोष से तड़ित चालक लगाया जा सकता है।'

- रतन कुमार महावर, जिला शिक्षा पदाधिकारी

------------- तेजी से गर्म होते पठार से बिजली बनाने वाला बादल बन रहा बहुत नीचे : नीतिश प्रियदर्शी

रांची सहित झारखंड में बढ़ती वज्रपात की घटना से पर्यावरणविद नीतिश प्रियदर्शी ने गंभीरता जताई है। उन्होंने बताया कि पिछले आठ वर्षो से वज्रपात की घटनाओं में काफी वृद्धि हुई है। झारखंड पहाड़ी क्षेत्र है। ग्लोबल वार्मिग और ग्रीन हाउस गैस की मात्र बढ़ रही है। इससे पठार तेजी से गर्म हो रहे हैं। इस कारण बिजली (वज्रपात) बनाने वाला बादल निचले स्तर पर बन रहा है। इस कारण यहां वज्रपात की घटनाओं में वृद्धि हुई है। यहां के पत्थरों में आयरण भी ज्यादा पाया जाता है जो विद्युत का सुचालक होता है। इसमें बिजली को नीचे की खिंचने की क्षमता अधिक होती है। बिजली दो तरह से बनते हैं। एक बादल से बादल और दूसरा बादल से धरती। ये दोनों की बीच संख्या बढ़ी है। एक घटा में करीब 300 से 400 बार बिजली चमकती है। इससे बचाव के लिए पंचायत स्तर पर लोगों को जागरुक करना होगा। जागरुकता व सरकार के प्रयास से बचाव संभव हो सकती है।


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