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कुम्हारों के घर में रहे खुशहाली, इसलिए आइपीएस की पत्नी ने ठुकराया नौकरी का ऑफर

समाज के अंतिम पायदान पर खड़े आम आदमी के अधिकारों की रक्षा को समर्पित है यह महिला।

By JagranEdited By: Published: Thu, 13 Aug 2020 02:42 AM (IST)Updated: Thu, 13 Aug 2020 06:17 AM (IST)
कुम्हारों के घर में रहे खुशहाली, इसलिए आइपीएस की पत्नी ने ठुकराया नौकरी का ऑफर
कुम्हारों के घर में रहे खुशहाली, इसलिए आइपीएस की पत्नी ने ठुकराया नौकरी का ऑफर

रांची (मधुरेश नारायण)। समाज के अंतिम पायदान पर खड़े आम आदमी के अधिकारों की रक्षा ही स्वतंत्रता का सही मायने-मतलब है। संस्कृति की रक्षा के लिए कुछ ऐसी ही पहल नेहा गुप्ता कर रही हैं। नेहा के पति अनीश गुप्ता वर्ष 2008 बैच के आइपीएस अधिकारी हैं। नेहा ने एलएलबी की पढ़ाई की है। मल्टीनेशनल कंपनी में उन्हें लॉ एडवाइजर पद का ऑफर मिला। नेहा ने मोटी सैलरी ठुकराकर कुम्हारों के घर में खुशहाली के लिए काम करना स्वीकार किया। नक्सल प्रभावित खूंटी इलाके में बतौर एसपी अनीश गुप्ता की पदस्थापना के दौरान वर्ष 2013-14 में नेहा ने पति के साथ रहते हुए कुम्हारों को मिट्टी से सजावटी सामग्री तैयार करने का हुनर सिखाया। मिट्टी के बर्तन व दीपक बनाकर अपने परिवार के लिए पेटभर भोजन की व्यवस्था नहीं करने वाले कुम्हारों को उनके पेशे में ही कमाई का नया जरिया मिल गया। नेहा ने अपना यह प्रयोग चाईबासा, हजारीबाग और रांची में भी जारी रखा।

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चीनी उत्पाद के मुकाबले खड़े हुए झारखंड के कुम्हार

नेहा के प्रशिक्षण के बाद कुम्हारों ने मिट्टी की छोटी-छोटी सजावटी मूर्तियां, विड चैंग, आकर्षक बोतल, वॉल हैंगिग, घड़ी, फूलदान, टेराकोटा वर्क, फ्लोर लैंप, टेबल लैंप, क्लॉक, टेबल्स, टेराकोटा बाक्स जैसे आइटम बनाने शुरू कर दिए। पहले इस क्षेत्र पर पूरी तरह चीन से तैयार होकर आने वाले उत्पादों का कब्जा था। नेहा की पहल के बाद झारखंड के कुम्हारों की कारीगरी चीनी सामान से प्रतिस्पद्र्धा करने लगी। इससे एक तरफ जहां कुम्हारों की अपनी संस्कृति और परंपरा बच गई, वहीं दूसरी तरफ आर्थिक खुशहाली का मार्ग भी प्रशस्त हो गया। नेहा ने इन कारीगरों के तैयार किए गए उत्पादों की उपलब्धता देश के अलग-अलग राज्यों तक सुनिश्चित कराई। अलग-अलग राज्यों में लगने वाले आ‌र्ट्स मेले में भी इन कुम्हारों के सामान पहुंचाने में मदद की। इसमें लगने वाली राशि खुद वहन की।

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नाम दिया मोरपंख

नेहा गुप्ता बताती हैं कि मुझे कुम्हारों के साथ काम करना अच्छा लगता है। मैं उनके साथ घंटों समय गुजारती हूं। उन्हें बताती-सिखाती हूं। परंपरा के साथ आधुनिकता के जुड़ाव से वह बहुत कुछ बेहतर कर पा रहे हैं। नेहा ने अपने प्रशिक्षण व तैयार होने वाले उत्पाद का नाम मोरपखं दिया है। कुम्हारों की मदद के लिए शुरू किया गया यह कार्य अब खुद नेहा की पहचान का हिस्सा बन गया। कुम्हारों के लिए अलग-अलग राज्यों व विदेश से ऑर्डर मुहैया कराने के लिए एक वेबसाइट तैयार करा रही हैं। जल्द ही इसकी लांचिग हो जाएगी। फिलहाल ये सामान अलग-अलग मार्केटिग वेबसाइट के जरिए उपलब्ध कराए जा रहे हैं। चीन से सीमा विवाद के बाद देसी कुम्हारों के उत्पाद की मांग पहले की अपेक्षा बढ़ गई है।

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तीन किताबें हो चुकी है प्रकाशित

नेहा को कला,संस्कृति और साहित्य से अगाध प्रेम है। नेहा की तीन किताबें अब तक प्रकाशित हो चुकी हैं। वह हिदी, पंजाबी और अंग्रेजी में कविताएं लिखती हैं। वह अमृता प्रीतम की लेखनी से प्रभावित हैं। उन्हें खूब पढ़ती हैं, लेकिन दूसरे रचनाकारों को भी पढ़ने से गुरेज नहीं करती हैं। उनके घर की दीवारों पर कविताएं अंकित हैं। कविता के प्रति ऐसा लगाव कम ही दिखता है। कविता से प्रेम उनके घर की बोलती दीवारों और ड्राइंग रूम को देखकर लगाया जा सकता है। उन्होंने ड्राइंग रूम पर मुनव्वर राणा की पंक्तियां लिखवाई हैं।


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