लालू के पैरोल पर असमंजस, 7-7 साल की सजा के चलते जेल से निकलना मुश्किल; डटी वकीलों की फौज
कोरोना के मरीजों की संख्या बढ़ते ही लालू प्रसाद को पैरोल पर रिहा करने की मांग उठने लगी है। उम्मीद की जा रही है कि सुप्रीम कोर्ट के गाइडलाइन का उन्हें लाभ मिल जाए।
रांची, मनोज सिंह। चारा घोटाले के चार मामलों के सजायाफ्ता राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव को अंतरिम राहत देने का मामला राज्य सरकार के लिए असमंजस की स्थित उत्पन्न कर रहा है। कोरोना के मरीजों की संख्या बढ़ते ही लालू प्रसाद को पैरोल पर रिहा करने की मांग राजनीति गलियारों में उठने लगी है। उम्मीद की जा रही है कि सुप्रीम कोर्ट के गाइडलाइन का उन्हें लाभ मिल जाए और वे जेल से बाहर आ जाएं। सबकी नजरें सात अप्रैल को हुई उच्चस्तरीय कमेटी की बैठक पर टिकी थी कि शायद इसमें फैसला हो लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
बैठक में सुप्रीम कोर्ट के गाइडलाइन पर चर्चा हुई थी। इसमें अधिकतम सात साल की सजा पाने वाले कैदियों को प्रोविजनल (औपबंधिक) जमानत पर छोडऩे के लिए सूची मांगी गई। बताया जा रहा है कि इस सूची में अन्य लोगों के अलावा लालू प्रसाद का भी नाम था। सात अप्रैल को हुई बैठक में इस बात पर सहमति बनी कि सिर्फ सात साल की सजा पाने वालों को ही राहत दी जाएगी। लेकिन दुमका मामले में लालू प्रसाद को सात-सात साल की सजा मिली है, यानी कुल 14 साल की सजा।
सजा पर हाई कोर्ट की अलग राय
दुमका कोषागार से अवैध निकासी मामले में लालू प्रसाद यादव को पीसी एक्ट (प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट) के तहत सात साल और आइपीसी के तहत सात साल की सजा सुनाई गई है। सीबीआइ कोर्ट ने इन दोनों सजाओं को अलग-अलग चलाने का आदेश दिया है। यानी कुल सजा 14 साल की हुई। लेकिन हाई कोर्ट ने ऐसे मामलों में सजायाफ्ता को जमानत देने के समय अलग-अलग सजा नहीं, बल्कि एक धारा में मिली सजा को मानते हुए उसकी आधी सजा पूरी करने पर कई को जमानत की सुविधा प्रदान की है। अगर ऐसा होता है तो लालू प्रसाद को पैरोल मिल सकती है।
पैरोल नहीं मिलने पर कोर्ट में देंगे अर्जी
अगर दुमका वाले मामले में मिली सजा को आधार मानकर पैरोल नहीं दी जाती है तो लालू प्रसाद की ओर से हाई कोर्ट में आवेदन दिया जाएगा। इस मामले में उनकी ओर से अधिवक्ताओं से राय ली जा रही है।