Move to Jagran APP

Forest Rights Act: कहीं शोला न बन जाए यह चिंगारी, पढ़ें खास रिपोर्ट

Forest Rights Act. ग्रामीणों के उग्र तेवर और उनके द्वारा की जा रही कानून की व्याख्या से कुछ वैसा ही माहौल बन रहा है जैसे पत्थलगड़ी के समय बनता था।

By Alok ShahiEdited By: Published: Tue, 16 Apr 2019 06:04 PM (IST)Updated: Tue, 16 Apr 2019 06:04 PM (IST)
Forest Rights Act: कहीं शोला न बन जाए यह चिंगारी, पढ़ें खास रिपोर्ट
Forest Rights Act: कहीं शोला न बन जाए यह चिंगारी, पढ़ें खास रिपोर्ट

रांची, [जागरण स्‍पेशल ]। लोहरदगा के सलैया गांव में ग्रामीणों ने जंगल को अपनी संपत्ति बताते हुए उस पर बोर्ड गाड़ दिया। कहा कि जंगल और जंगली उत्पादों पर सिर्फ हमारा हक है, वन विभाग का इस पर कोई अधिकार नहीं। ग्रामस्तरीय वनाधिकार समिति के बैनर तले आयोजित इस बैठक की अध्यक्षता ग्राम प्रधान एवं समिति के अध्यक्ष ने की। ग्रामीणों के उग्र तेवर और उनके द्वारा की जा रही कानून की व्याख्या से कुछ वैसा ही माहौल बन रहा था जैसे पत्थलगड़ी के समय बनता था।

loksabha election banner

तब गांव की सीमा पर पत्थल गाड़ कहा जाता है कि यहां से आगे प्रवेश वर्जित है, ग्राम प्रधान से पूछकर ही इस सीमा के अंदर प्रवेश करें। प्रशासन और पुलिस को भी कई बार पत्थलगड़ी वाले इलाके में जाने से रोका गया। खूंटी में तो इतना बवाल हुआ कि पुलिस को फायरिंग तक करनी पड़ी। कई लोगों पर देश द्रोह के मुकदमे हुए, कई की गिरफ्तारी हुई तब जाकर यह मामला शांत हुआ। लेकिन अब जंगल पर अधिकार के नाम पर ग्रामीण गोलबंद हो रहे। पत्थल की जगह बोर्ड गाड़े जा रहे।

सवाल यह उठता है कि आखिर कौन भोले भाले आदिवासियों को भड़काता है। उनके मन में ऐसा जहर भरता है कि वे सरकार और प्रशासन के खिलाफ आग उगलते हैं। ऐसे लोगों की पहचान करने की आवश्यकता है। आदिवासियों को भी यह समझना होगा कि उन्हें बरगलाने वाले कतई उनके हितचिंतक नहीं हो सकते। किसी बड़ी साजिश के लिए उन्हें टूल बनाया जा रहा।

आदिवासियों को ऐसे लोगों से किनारा करना चाहिए और उनका पर्दाफाश करना चाहिए। सरकार को इस मामले को गंभीरता से लेने की जरूरत है ताकि यह चिंगारी शोला न बने। अगर अभी इस मामले को नियंत्रित नहीं किया गया और ग्रामीणों को सही तरीके से समझाया नहीं गया तो आने वाले दिनों में मुसीबत बढ़ जाएगी। सरकार और प्रशासन को यह भी देखना चाहिए कि वर्षों से जंगलों में रह रहे और उसकी संपदा का इस्तेमाल कर रहे आदिवासियों की हकमारी न हो।

वनाधिकार पट्टे के हजारों मामले लंबित हैं। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले दिनों स्पष्ट कहा है कि जंगलों में अवैध तरीके से रह रहे लोगों को बेदखल करिए। ऐसे में आदिवासियों को चिंता सता रही कि कहीं उनकी हकमारी न हो। उनकी यह चिंता तभी दूर हो सकती है जब पट्टों के लंबित मामलों पर तेजी से फैसला हो। आदिवासियों को जब कानूनन कोई अधिकार मिल जाएगा तो उन्हें फिर कोई बरगला नहीं पाएगा। आदिवासी भी चैन से रहेंगे और प्रशासन भी।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.