राम-भरत मिलाप से तीर-कमान हैरान और हाथ परेशान है... पढ़ें सत्ता के गलियारे की खरी-खरी
Political Gossip and Rumors in Jharkhand Politics. गिराने वालों ने ऐसे गले लगाया मानो कुंभ के बिछड़े भाई मिले हों।
रांची, आनंद मिश्र। Political Gossip and Rumors in Jharkhand Politics केले की महिमा से जुड़ी एक कविता बचपन में सुनी थी। लाला जी ने केला खाया (यहां लाला जी को नेताजी के संदर्भ में लें), केला खाकर छड़ी उठाई, छड़ी उठाकर कदम बढ़ाया, कदम के नीचे छिलका आया, लाला जी गिरे धड़ाम, मुंह से निकला हाय राम...। तो सबक यह है कि केले के साथ उसका छिलका भी जुड़ा रहता है जो गिराने का जोखिम साथ लेकर चलता है। विधानसभा चुनाव में केले वाले इस जोखिम से दो-चार हो चुके हैं और ऐसा गिरे कि महज दो पर ही टिके हैं। जब औंधे मुंह गिरे थे तो राम नाम ही निकला था। सो अवसर देख अब एक बार फिर श्री राम का पेटेंट रखने वालों के साथ हो लिए हैं। उधर गिराने वालों ने भी ऐसे गले लगाया मानो कुंभ के बिछड़े भाई मिले हों। रिश्तों की ताजगी चेहरों से नुमाया हो रही है। राम-भरत मिलाप से तीर-कमान हैरान और हाथ परेशान है।
बैटिंग तो मिली
भाई चिकना घड़ा इसे कहते हैं, मजाल है जो हार की तनिक भी शिकन किसी के चेहरे से नुमाया हो। न किसी से गिला न शिकवा। ऐसे ही हैं हमारे हाथ वाले। इनका तो बस एक ही जुमला है। जो दे उसका भी भला, जो न दे उसका भी भला। संतों सी तबीयत पाई है। इनसे ज्यादा तो परेशान जनता जनार्दन है। सोच रही है कि बड़े-बड़े दावे करने वालों के पास जब बूता नहीं था तो क्यों लंका में कूदे। जवाब रांची से दिल्ली तक किसी को ढूंढे नहीं मिल रहा है। इसी खेमे के कुछ ज्ञानी जीत को माया बता रहे हैं। तर्क भी वाजिब देते हैं कि हमें तो बस खेलने से मतलब था, ये क्या कम है कि सामने वालों को फील्डिंग सजानी पड़ गई। बड़े-बड़े क्वारंटाइन हुए। हमारी जीत तो उनके फिल्डिंग में ही छिपी थी, इसी बहाने बैटिंग का मौका तो मिला।
मूंछ का सवाल
पलामू में पानी की किल्लत भले हो लेकिन यहां के नेता हैं खासे पानीदार। आन-बान के लिए, शान से पाला बदलते हैं, भले ही कोई कितना तंज कसे। फिर इनकी तो बात ही निराली है। पार्टी का सिम्बल भी 10 बजकर, 10 मिनट दिखता है। मतलब मूंछ हमेशा ऊपर की ओर ही तनी रहनी चाहिए। मूंछ का सवाल था। नकारा लोगों से रिश्ता रखना इनकी शान के खिलाफ है। हाथ वालों के खाली हाथ में वैसे भी हैं सुराखां हजारों, देना भी चाहें तो क्या देंगे किसी को। यहां तो ईडी की पहेली भी सुलझानी है। पुराने जख्म का हिसाब भी साथ ही निपटा लिया। सगे होने का दावा करने वालों ने रोड़ा अटकाने में कोई कमी न की थी। वैसे भी लड़ाई आमने-सामने की ही थी। ये तो बस मार्जिन भर थे, तो मौका देख लगा दिया चौका।
हकीकत से वास्ता
हाथ की हकीकत से सभी वाकिफ हैं। किस्मत से तीर-धनुष का साथ मिला तो लॉटरी लग गई। हाथ में सत्ता आई तो हनक दिखाने की भी जल्दबाजी मची। राज्यसभा चुनाव में इसका मौका मिला तो प्रभारी ने पैंतरा दिखाते हुए अपनी चाल चली। शुरू में लगा कि सरकार पर दबाव पड़ेगा, लेकिन हुआ ठीक उल्टा। तीर-धनुष ने ज्यादा टेंशन नहीं ली। रही-सही कसर आपसी खींचतान से निकल गई। एक तीर से कई निशाने सध गए। सिल्ली वाले की कमल क्लब में पूछ बढ़ी तो इधर हाथ को अपनों ने ही झटका देना शुरू कर दिया। खलबली मची तो प्रभारी जी को बुलावा भेजा गया कि कम से कम एक दिन तो झांककर देख लें। उन्होंने कोविड का हवाला देकर तौबा कर ली। अब उनके आगमन पर बवाल की तैयारी में एक खेमा जुट गया है। इस फेर में अगर उनकी कुर्सी हिल गई तो आश्चर्य मत करिएगा।