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नई सरकार का सॉलिड बहाना, सब्र करिए खाली है खजाना; माननीयों ने किनारे रखी वादों की गठरी

राज्य के मुखिया के बाद मंत्रियों ने भी प्रभार ग्रहण करने के साथ प्राथमिकताओं से इतर खजाने के हाल का जिक्र किसी न किसी बहाने अवश्य किया। वादों के खरा उतरने की राह में बड़े रोड़े हैं

By Alok ShahiEdited By: Published: Mon, 10 Feb 2020 07:47 AM (IST)Updated: Mon, 10 Feb 2020 10:54 AM (IST)
नई सरकार का सॉलिड बहाना, सब्र करिए खाली है खजाना; माननीयों ने किनारे रखी वादों की गठरी
नई सरकार का सॉलिड बहाना, सब्र करिए खाली है खजाना; माननीयों ने किनारे रखी वादों की गठरी

रांची, [आनंद मिश्र]। खाली डिब्बा खाली बोतल ले ले मेरे यार... हमारा खजाना खस्‍ताहाल। झारखंड की नई सरकार इसी सॉलिड बहाने के सहारे फिलहाल सत्‍ता चला रही है। तमाम चुनावी वादे और विकास की रूपरेखा के साथ राज्‍य को आगे बढ़ाने की प्‍लानिंग तो जरूर है, लेकिन बार-बार मुख्‍यमंत्री से लेकर मंत्री तक आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने की बात कह रहे हैं। इधर जनता की उम्‍मीदों की बोझ तली दबी सरकार ने अब किसानों के लिए पिछली सरकार में चालू की गई कृषि आशीर्वाद योजना को भी बंद करने का मन बना रही है। यहां पढ़ें झारखंड की सियासत पर राज्‍य ब्‍यूरो के आनंद मिश्रा की खरी-खरी... 

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खजाना खस्ताहाल, उम्मीदों का बोझ

खजाना खस्ताहाल हो और जनता से किए गए वादों की गठरी भारी भरकम हो तो समझिए चर्चा झारखंड की नई सरकार के संदर्भ में ही हो रही है। खुद सरकार के स्तर से खजाने की लाल बत्ती जलने का एलान राजधानी रांची से उपराजधानी दुमका तक किया जा रहा है। राज्य के मुखिया के बाद मंत्रियों ने भी प्रभार ग्रहण करने के साथ अपनी प्राथमिकताओं से इतर खजाने के हाल का जिक्र किसी न किसी बहाने अवश्य किया। संकेत साफ है, वादों के खरा उतरने की राह में बड़े रोड़े हैं। लोकतंत्र में चुनाव के बाद जनता बेचारी हो जाती है और इस जनता से बेचारगी की दुहाई दे कुछ मोहलत तो मांगी ही जा सकती है। सरकार ने मौजूदा हालातों की स्थिति को देखते हुए अपने सबसे योग्य मंत्री को वित्त का प्रभार सौंपा है। बहरहाल वित्तमंत्री इन दिनों काफी तनाव में बताए जा रहे हैं। 

शिक्षा गई हाथ से

सरकार में अपेक्षाकृत हिस्सेदारी न मिलने से अधिक कांग्रेसियों को इस बात का मलाल है कि हाथ से शिक्षा निकल गई। पिछली बार यूपीए की सरकार में यह विभाग कांग्रेस के पोर्टफोलियो में गया था। कांग्रेस दफ्तर में इस बात की चर्चा खूब रही। तमाम नेताओं को इस बात की कोफ्त है, हमारे अपनों ने अपना नुकसान करा लिया। प्रभारी तक बातों को तार्किक ढंग से रखा जाता तो यह विभाग अपने खाते में आता। दोष मंत्री पद पर बैठे अपने वरिष्ठों को भी दिया जा रहा है। कहा जा रहा अनदेखी उन्हीं ने की। अब क्या करें चिडिय़ा चुग गई खेत। तीर कमान थामने वाले नए शिक्षा मंत्री की शैक्षणिक योग्यता पर भले ही सवाल उठाया जाए, लेकिन प्रभार लेने के साथ ही जिस कदर वे रेस हुए हैं, उससे कांग्रेसी और हतोत्साहित हो गए हैं। निकट भविष्य में कोई आस भी नहीं दिखाई देती।  

किसानों का आशीर्वाद

किसानों का आशीर्वाद सत्ता की चाबी है। यूपीए वाले इस बात को बखूबी जानते हैं। कई राज्यों की बागडोर इन्हीं किसानों ने विपरीत हालातों में भी इनकी झोली में डाल दी। झारखंड की सत्ता की कमान भी यूपीए को इन्हीं के बूते हासिल हुई। अब किसानों के इस आशीर्वाद का कर्ज चुकाने की बारी सरकार की है। कर्ज माफी कर अब सरकार इन किसानों की ऋण अदायगी का प्लाट तैयार भी कर रही है। बजट सत्र में बकायदा इसकी घोषणा की तैयारी शुरू कर दी गई है। राज्य की पिछली सरकार ने यहीं चूक कर दी थी। मुख्यमंत्री कृषि आशीर्वाद योजना चलाई, आशीर्वाद स्वरूप खूब धन भी लुटाया, फिर भी लग गया झटका। वजह बस इतनी सी थी कि किसानों का आशीर्वाद लेने की जगह उन्हें आशीर्वाद देने में पूरा सिस्टम जुट गया था और किसानों को यही अखर गया। अब परिणाम सामने हैं।  

हां, 32 वाले बाबूलाल

भाजपा के कुछ नेताओं ने अभी से बाबूलाल मरांडी को बधाइयां देनी शुरू कर दी है। सोशल मीडिया पर शुभकामना संदेश भरे पड़े हैं लेकिन कुछ पुराने भाजपाइयों को यह भा नहीं रहा है। ये लोग बाबूलाल की घर वापसी की आहट से खिसियाये हैं। अब इन्हीं के बीच से 32 के खतियान को हवा दी जा रही है। मुख्यमंत्री रहते बाबूलाल ने स्थानीयता नीति (डोमिसाइल) लागू की थी जिसके अनुसार 1932 के खतियान में जिनका नाम होगा उन्हीं के परिजन और वंशज स्थानीय माने जाएंगे। इसके विरोध में जबर्दस्त आंदोलन का परिणाम यह निकला कि बाबूलाल को पहले मुख्यमंत्री का पद छोडऩा पड़ा और फिर भाजपा से भी आउट हो गए। अब इस मुद्दे के सहारे उनकी राह में रोड़े अटकाने के प्रयास हो रहे हैं। नई सरकार में भी 32 के खतियान की बात उठी है, देखना है खतियान पर टकराएंगे या एक हो जाएंगे।


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