कोरोना संकट के बीच अधिकारी सांप-सीढ़ी का खेल खेल रहे, शर्म है.. आती-जाती रहती है
पिछले साल बड़ी संख्या में खरीदे गए वेंटिलेटर चलाने के लिए दक्ष स्टाफ की अब तक नियुक्ति नहीं हो सकी है। इससे बड़ा मजाक और क्या हो सकता है कि अब जिलों में भेजे गए वेंटिलेटर वापस राजधानी रांची मंगाए जा रहे हैं।
रांची, प्रदीप शुक्ला। झारखंड उच्च न्यायालय की कुछ टिप्पणियों पर गौर फरमाइए। पहली, रिम्स में अपनी सीटी स्कैन मशीन नहीं होना शर्म की बात है। लोग मर रहे हैं, लेकिन किसी को कोई परवाह नहीं है और सरकार शपथ पत्र-शपथ पत्र खेल रही है। दूसरी, अब कितने लोगों के मरने का इंतजार किया जाएगा। इस प्रदेश में शिक्षा और स्वास्थ्य की स्थिति बहुत ही खराब है। अधिकारी सांप-सीढ़ी का खेल खेल रहे हैं। कोर्ट के आदेश को अधिकारी मजाक में ले रहे हैं। तीसरी, रांची सिविल सर्जन की मानवीय संवेदना समाप्त हो गई है। उनमें अब कोई शर्म नहीं बची है। ऐसे अधिकारियों को जब काम नहीं करना है, तो वे अपना इस्तीफा देकर घर क्यों नहीं चले जाते हैं।
पिछले कुछ दिनों में उच्च न्यायालय में स्वास्थ्य सेवाओं संबंधी कुछ मामलों की सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश की दो सदस्यीय खंडपीठ द्वारा की गई इन तल्ख टिप्पणियों से यह बखूबी समझा जा सकता है कि वास्तव में राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं का हाल क्या है। ये टिप्पणियां तो सिर्फ बानगी भर हैं। हर दूसरे-तीसरे दिन उच्च न्यायालय सरकारी तंत्र की बखिया उधेड़ रहा है, लेकिन बाबुओं के कान में जूं तक नहीं रेंग रही है। सरकारी बाबू हर बार उच्च न्यायालय में एक नए बहाने के साथ पहुंच जाते हैं। अब जब कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर बहुत घातक रूप अख्तियार कर चुकी है और हर तरफ अफरा-तफरी मची हुई है तब भी स्वास्थ्य महकमा संवेदनहीन बना हुआ है। किसी को कुछ सूझ नहीं रहा है। रांची सहित राज्य के कई जिलों में संक्रमण की स्थिति विस्फोटक हो चुकी है। अस्पतालों में बेड नहीं हैं। जांच नहीं हो पा रही है। यहां तक कि अंतिम संस्कार तक के लिए दो से तीन दिनों का इंतजार करना पड़ रहा है। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि पिछले एक साल में हमने क्या तैयारियां कीं? दुनिया भर के स्वास्थ्य विशेषज्ञ यह चिंता जता रहे थे कि दूसरी और उसके बाद संभावित तीसरी लहर और ज्यादा खतरनाक हो सकती है तो हमने उस ढंग से तैयारियां क्यों नहीं कीं। अब जब हर दिन बड़ी संख्या में मौत हो रही हैं तो इसका ठीकरा भी केंद्र पर फोड़ने की कोशिश करना कहां तक उचित है?
जिस गति से राज्य में कोरोना संक्रमण के मामले बढ़ रहे हैं, वह डरा रहे हैं। सिर्फ रांची में ही सात हजार से ज्यादा सक्रिय मामले हैं। राज्य में 20 हजार से ज्यादा कोरोना पीड़ित हैं। हर 100 जांच में 11 संक्रमित मिल रहे हैं। यह स्थिति भयावह है। राज्य में 71 प्रतिशत मरीज होम आइसोलेशन में हैं। करीब 87 प्रतिशत मरीजों में कोई लक्षण नहीं दिख रहा है। इससे यह भी समझा जा सकता है कि वर्तमान में संक्रमितों की संख्या सरकारी रिकार्ड से कहीं बहुत ज्यादा हो सकती है। हर तरफ हाहाकार मचा हुआ है। ऐसे में झारखंड उच्च न्यायालय के उच्च न्यायाधीश की खंडपीठ लगातार कुछ मामलों की सुनवाई कर राज्य सरकार को कठघरे में खड़ा करने के साथ-साथ जरूरी दिशा-निर्देश भी दे रही है।
राज्य के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स (राजेंद्र प्रसाद आयुíवज्ञान संस्थान) में जांच के लिए मशीनों का न होना, जरूरत के अनुसार पैरामेडिकल और मेडिकल स्टाफ की कमी सहित तमाम अन्य सुविधाओं का न होना अब लोगों की जान के लिए खतरा बन चुका है। खंडपीठ ने राज्य सरकार से पूछा है कि अगर इमरजेंसी में आवश्यक चिकित्सकीय उपकरणों की खरीदारी की जानी है तो क्या नियमों को शिथिल किया जा सकता है? अभी तक रिम्स में आवश्यक जांच उपकरणों की खरीदारी नहीं हो पाई है। राज्य का सबसे बड़ा अस्पताल होने के कारण गरीब लोग भी यहीं पर इलाज कराने आते हैं। आवश्यक उपकरण नहीं होने की वजह से गरीबों को पैसे देने पड़ रहे हैं। ऐसे में क्या एक बार में आवश्यक मशीनों की खरीदारी नहीं हो सकती है, जैसा की एम्स व अन्य अस्पताल करते हैं, क्योंकि नियमों के तहत खरीदारी करने में काफी समय लगता है।
कमोबेश राज्य के अन्य सभी सरकारी अस्पतालों का यही हाल है। पिछले साल बड़ी संख्या में खरीदे गए वेंटिलेटर चलाने के लिए दक्ष स्टाफ की अब तक नियुक्ति नहीं हो सकी है। इससे बड़ा मजाक और क्या हो सकता है कि अब जिलों में भेजे गए वेंटिलेटर वापस राजधानी रांची मंगाए जा रहे हैं। अब जब संक्रमण हर जिले में बढ़ रहा है तो अगले कुछ ही सप्ताह में लगभग सभी जगह वेंटिलेटर की जरूरत पड़ने वाली है तब वहां के गंभीर मरीजों का क्या होगा? इसका जवाब फिलहाल किसी के पास नहीं है।
[स्थानीय संपादक, झारखंड]