माननीय को पप्पू से हो गया प्यार, मच गया हंगामा; पढ़ें सियासत की कही-अनकही
Jharkhand Assembly. उस दिन पूरा मैच तो आखिर उनके नाम ही रहा। पप्पू के प्यार में कई अवार्ड मिलते लेकिन सदन ही स्थगित हो गया।
रांची, [आशीष झा]। हम आप भले ही यह मानकर चलें कि सदन में आम जनता का काम करने के लिए ही माननीय पहुंचते हैं लेकिन कई माननीय सिर्फ सदन का वक्त खराब करने के लिए ही आते हैं। ऐसे ही एक माननीय अभी-अभी सत्ता से बेदखल हुए हैं। सरकार में उनके नाम भले ही कोई उपलब्धि नहीं रही हो, विपक्ष में रहकर सदन का वक्त खराब करने में उन्हें महारत हासिल हो रही है।
इन दिनों उन्हें पप्पू शब्द से प्यार हो गया है। अब इस प्यार में उन्होंने ना जाने किसे क्या कह दिया, हंगामा हो गया। पूरे एक दिन का कार्यक्रम उनके नाम रहा। इस हिसाब से उन्हें मैन ऑफ द मैच कहा जा सकता है। उस दिन पूरा मैच तो आखिर उनके नाम ही रहा। आगे के लिए भी उनकी तैयारियां भरपूर थीं और पप्पू के प्यार में कई अवार्ड मिलते लेकिन सदन ही स्थगित हो गया।
गुस्से की बात
छोटे अंसारी की अभी उम्र ही क्या हुई है। मौज-मस्ती का ही तो वक्त है लेकिन उन्हें बड़ा गुस्सा आया जब बड़े भाई के मोहब्बत का लांछन लगा दिया। वह भी दुश्मनों के दल के साथ। कुछ क्षणों के लिए मुश्किल से खुद को संभाल कर रखा लेकिन विस्फोट तो हो ही गया। बड़े भाई मंत्रीजी को तरीके से समझा दिया कि इस तरह की टिप्पणी बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
दरअसल, बड़े भाई ने विपक्ष के विधायक को जवाब देते हुए कहा था कि पता है आपको छोटे से मोहब्बत है लेकिन मेरे मंत्री होने पर सवाल नहीं उठाइए। अब मोहब्बत की बात को छोटे ने दूसरे मायनों में ले लिया। उनकी पार्टी के ही एक साथी ने दूर से टिप्पणी की - आदमी हूं आदमी से प्यार करता हूं। खैर, हमें तो मोहब्बत से कोई शिकवा नहीं है।
समरी का समर
समरी लाल पहली बार विधायक बनकर पहुंचे हैं लेकिन उनके जलवे किसी से कम नहीं। अभी दो दिन पहले ही जब उन्होंने बोलना शुरू किया तो सबको चुप करा दिया। क्या पक्ष, क्या विपक्ष। लोगों को याद भी दिलाया कि जब विधायक नहीं थे तब भी विधायकों का काम करते रहे हैं। रिम्स की अच्छाइयों और खामियों से भली भांति परिचित होने का उन्होंने जो उदाहरण दिया उससे तो सभी स्तब्ध रहे।
पूरे फ्लो में आए तो अपने पराए सभी को भूल गए। पिछली सरकार की प्रशंसा करते-करते निजी हाथों में जांच से हो रहे नुकसान पर व्याख्यान दे दिया। इस दौरान पुराने मंत्री की तो बोलती ही बंद हो गई। आखिर कैसे किसी को बताएं कि प्राइवेट जांच एजेंसियों को तो उन्होंने ही काम करने का मौका दिया था। समरी ने समर जीत लिया लेकिन आगे अपने ही साथियों से खतरा है, खासकर सीनियर्स से।
विपक्ष की आदत
विधायकजी लंबे समय तक विपक्ष में रहे हैं और किसी भी मुद्दे पर सरकार को घेरने का माद्दा रखते हैं। इस बार भी उन्हें जीतकर विपक्ष में बैठने का मौका मिला लेकिन परिस्थितियां इस कदर बदलीं कि वे सत्ता वाले गुट में आ गए। अचानक बदली भूमिका के लिए उनकी तैयारियां इतनी नहीं थीं। शायद यही कारण है कि जब भी वो बोलने के लिए उठते हैं, सरकार के विरोध में बातें अपनेआप शुरू हो जाती हैं।
लोगों ने बहुत समझाया लेकिन हार गए। अब उनको कौन समझाए कि सत्ता की खूबियों को भी देखें। जब भी देखते हैं नाकामियां ही दिखती हैं। पिछले दिनों डॉक्टरों का ख्याल रखनेवाले मंत्री को साफ-साफ कह दिया। आप बहुत बातें बोलते हैं मीडिया में लेकिन बातों को पूरा भी करना होगा। अब संकेतों में तो उन्होंने बता ही दिया कि हिसाब रखा जा रहा है। आखिर पुराने मंत्री जो ठहरे।