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यहां है आपसी एकता की मिसाल, हिन्दू संजोए कब्रिस्तान व मुस्लिम महफूज रखे श्मशान Palamu News

Jharkhand News मेदिनीनगर का श्मशान-कब्रिस्तान सामाजिक समरसता की पहचान है। हिंदू बहुल क्षेत्र में कब्रिस्तान व मुस्लिम बहुल क्षेत्र में श्मशान है।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Sat, 05 Sep 2020 07:44 PM (IST)Updated: Sun, 06 Sep 2020 11:42 AM (IST)
यहां है आपसी एकता की मिसाल, हिन्दू संजोए कब्रिस्तान व मुस्लिम महफूज रखे श्मशान Palamu News
यहां है आपसी एकता की मिसाल, हिन्दू संजोए कब्रिस्तान व मुस्लिम महफूज रखे श्मशान Palamu News

मेदिनीनगर (पलामू), [तौहीद रब्बानी]। झारखंड के पलामू प्रमंडलीय मुख्यालय मेदिनीनगर का शमशान-कब्रिस्तान सामाजिक समरसता का पैगाम दे रहा है। हिंदू बहुल क्षेत्र में कब्रिस्तान व मुस्लिम बहुल क्षेत्र में श्मशान हिंदू-मुस्लिम एकता, भाईचारगी व आपसी प्रेम का आदर्श प्रस्तुत कर रहा है। अतीत काल से ही एक-दूसरे की आबादी व क्षेत्र से गुजरते हुए शवयात्रा कोयल नदी के किनारे बसे पहाड़ी मुहल्ला स्थित राजा हरिश्चंद्र घाट पहुंचती है। इधर, जनाजा साहित्य समाज चौक होते हुए हमीदगंज स्थित कब्रिस्तान पहुंचता है।

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यहां मुस्लिम श्मशान को महफूज रखे हुए हैं तो हिन्दू कब्रिस्तान को संजाेए रखे हैं। गंगा-यमुनी तहजीब शहर की स्थापना काल से ही कायम है। शव के दाह संस्कार व जनाजे को सुपुर्द-ए-खाक करने की ऐसी मिसाल शायद ही कहीं देखने को मिलती हो। यहां वर्तमान परिवेश में सामाजिक सौहार्दता की दीवारें दरकाने का प्रयास भले ही किया जाता हो, राजनीतिक फायदे-नुकसान के लिए लोगों में कटुता व वैमनस्य के बीज भले ही बोए जाते हों, पर यह सत्य है कि मेदिनीनगर शहर की हिन्दू-मुस्लिम आबादी परस्पर सहयोग की मिसाल पेश करती है।

ये लोग शव व जनाजे को मंजिल तक पहुंचाते हैं। न कभी कोई विवाद उत्पन्न हुआ और न ही कभी कोई समस्या खड़ी हुई। मालूम हो कि मेदिनीनगर शहर का श्मशान घाट कोयल नदी के किनारे पहाड़ी मोहल्ला में स्थित है। इसे राजा हरिश्चंद्र घाट के नाम से जाना जाता है। श्मशान घाट के अगल-बगल की पूरी आबादी मुस्लिम समुदाय की है। शहर का सबसे पुराना कब्रिस्तान हमीदगंज पुलिस लाइन के बगल में स्थित है। यहां की पूरी आबादी हिन्दू धर्मावलंबियों की है। वर्षों से मानव शरीर की नश्वर काया की अंतिम विदाई इन्हीं स्थानों से की जाती है। परस्पर समन्वय व सौहार्द की मिसाल पेश करता शमशान और कब्रिस्तान सुरक्षित व महफूज है।

पलामू जिला मुख्यालय मेदिनीनगर शहर के हिंदू बहुल्य क्षेत्र में बना कब्रिस्तान।

सौहार्द की मिसाल है श्मशान-कब्रिस्तान: प्रो मिश्र

मेदिनीनगर के श्मशान व कब्रिस्तान सामाजिक सौहार्द की मिसाल हैं। यह कहना है जिले के ख्याति प्राप्त प्राध्यापक प्रो. एससी मिश्रा का। बताते हैं कि हिंदुओं की शवयात्रा मुस्लिम बहुल क्षेत्र से होकर गुजरती है। रास्ते में शव रखकर पिंडदान किया जाता है। न कभी कोई विरोध हुआ और न ही कोई विवाद। इसी प्रकार मुस्लिम समुदाय का जनाजा हिंदू बहुल रास्ते से गुजरकर कब्रिस्तान पहुंचता है। कभी कोई विरोध-प्रतिराेध नहीं हुआ। वर्षों से यह परंपरा जारी है। यह हिंदू-मुस्लिम एकता का अनोखा उदाहरण है।

राष्ट्रीय एकता की तस्‍वीर करते हैं प्रस्तुत: पं विजयानंद

प्रमंडलीय मुख्यालय मेदिनीनगर का श्मशान व कब्रिस्तान राष्ट्रीय एकता की तस्वीर प्रस्तुत करते हैं। एक-दूसरे समुदाय बाहुल्य क्षेत्रों से होकर गुजरने वाली शवयात्रा व जनाजा सुदृढ़ सामाजिक परंपरा दर्शाता है। इससे कभी भी सामाजिक समरसता खंडित नहीं हुई। दोनों समुदाय परस्पर सहयोगात्मक आदर्श प्रस्तुत करते हैं। भविष्य में भी हमें इस उच्चतम मानदंड को कायम रखना होगा।

पलामू जिला मुख्यालय मेदिनीनगर के मुस्लिम बहुल क्षेत्र पहाड़ी मोहल्ला में स्थापित राजा हरिश्चंद्र श्मशान घाट।

आपसी भाईचार का प्रतीक है श्मशान-कब्रिस्तान: शम्सउद्दीन

उम्र 76 वर्ष की हो गई है। बचपन से लेकर आज तक मेदिनीनगर का सौहार्द इस तरह कायम है जैसे प्रयागराज स्थित गंगा, यमुना सरस्वती का संगम। मुस्लिम क्षेत्र में श्मशान व हिन्दू क्षेत्र में कब्रिस्तान पुराने जमाने से स्थापित है। यह एक-दूसरे समुदाय के बीच व्याप्त भाईचारा, भारतीय गंगा यमुनी तहजीब को दर्शाता है। यह बातें स्थानीय कुंड मुहल्ला पुराना गढ़वा रोड निवासी शम्सउद्दीन चूड़ीफरोश ने कही। उन्होंने कहा कि यह शहर हिन्दू-मुस्लिम एकता की बेमिसाल दास्तां बयां करता है। आज तक शहर में श्मशान व कब्रिस्तान को लेकर न कोई विवाद हुआ और न होगा। यही दुआ है मेरी।

श्मशान व कब्रिस्‍तान एकता की पहचान : मो. इसराईल

स्थानीय पहाड़ी मुहल्ला स्थित श्मशान राजा हरिशचंद्र घाट के निकट के रहने वाले मो. इसराईल उर्फ कल्लू बक्सा कहते हैं कि वे प्रारंभिक काल से यहां की एकता देखते आ रहे हैं। यहां के लोगों के लिए श्मशान व कब्रिस्‍तान एकता की पहचान बन गए हैं। इन दोनों जगहों पर किसी काे आने-जाने में कोई परेशानी नहीं होती। दिन-रात लोगों के लिए रास्ते खुले हैं। बताया कि वे कम उम्र में बनारस से डालटनगंज आए। यहां के आपसी सौहार्द को देखकर हमेशा के लिए इसे अपना मस्कन बना लिया। उनके मकान की सीमा श्मशान घाट की सीमा से जुड़ गई। कहीं किसी तरह का कभी भी कोई विवाद न हुआ है और न होगा।


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