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जिन्‍हें लोग नरभक्षी कहते थे, वह हितैषी भी था; 5 हजार एकड़ जमीन गरीबों में यूं ही बांट दी थी

Maneater Palamu News इलाके में ऐसा दबदबा रखने वाले के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती थी। कार्रवाई न होने से लोगों में बदला लेने की भावना पनपती थी और नक्‍सलवाद फलता-फूलता था।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Sat, 12 Sep 2020 02:04 PM (IST)Updated: Sat, 12 Sep 2020 05:31 PM (IST)
जिन्‍हें लोग नरभक्षी कहते थे, वह हितैषी भी था; 5 हजार एकड़ जमीन गरीबों में यूं ही बांट दी थी
जिन्‍हें लोग नरभक्षी कहते थे, वह हितैषी भी था; 5 हजार एकड़ जमीन गरीबों में यूं ही बांट दी थी

रांची, जेएनएन। झारखंड के पलामू जिला के रहने वाले जगदीश्‍वरजीत सिंह का पिछले सप्‍ताह निधन हो गया। जगदीश्‍वरजीत सिंह को इलाके के लोग नरभक्षी के नाम से भी जानते थे। उनके गांव मनातू में लोग कहते हैं कि उन्‍होंने एक चीता पाल रखा था। जो कोई भी विद्रोह करता या जगदीश्‍वरजीत सिंह के विरोध में काम करता, उसे वे चीता के पिंजरे में डाल देते थे। हालांकि इस नरभक्षी प्राणी का एक दूसरा चेहरा भी था।

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उस दौर में पलामू के एसपी रहे पीके सिद्धार्थ अपने संस्‍मरणों पर एक किताब लिख रहे हैं। इसमें वे जगदीश्‍वरजीत सिंह के बारे में लिखते हैं कि जगदीश्‍वरजीत सिंह ने 5 हजार एकड़ जमीन यूं ही दान कर दी थी और कहा था कि जिसे चाहिए, उसे दे दीजिए। पीके सिद्धार्थ लिखते हैं कि इलाके में ऐसा दबदबा रखने वाले लोगों के खिलाफ कोई कार्रवाई भी नहीं होती थी। कार्रवाई न होने से लोगों में अपमान का बदला लेने की भावना पनपती थी और इसी से नक्‍सलवाद फलता-फूलता था।

एसपी ने नक्‍सलवाद पर नियंत्रण के लिए सामंती प्रवृति के लोगों पर कार्रवाई करने की सोची। इसी क्रम में उन्‍होंने जगदीश्‍वरजीत सिंह उर्फ मव्‍वार के खिलाफ कार्रवाई के लिए विधिसम्‍मत कारण तलाशे। उन्‍होंने इस क्रम में मव्‍वार के एक पुत्र के खिलाफ आपराधिक मामला पाया, जिसपर वारंट लंबित था। पीके सिद्धार्थ डीएसपी और थानेदार के साथ मव्‍वार के घर कुर्की-जब्‍ती करने के लिए पहुंचे।

पुलिस ने उनके घर का एक-एक सामान कुर्क किया। घर के बाहर खड़ी दो पुरानी विंटेज गाड़ियाें को भी जब्त कर लिया गया। लोगों ने बताया कि यह पहली बार हुआ था कि जब पुलिस जगदीश्‍वरजीत सिंह के घर में घुसी थी। लोगों ने उम्‍मीद जताई कि कोई प्रतिक्रिया होगी लेकिन तत्काल कुछ नहीं हुआ। दरअसल मव्‍वार परिवार का कोई सदस्य घर में नहीं मिला। जाहिर है कि पुलिस से ही उन्हें पहले ही खबर मिल गयी होगी।

मनातू मव्‍वार के घर कुर्की-जब्ती की कोई प्रतिक्रिया नज़र नहीं आई। इससे जिले की कलक्टर का मनोबल बढ़ गया। एसपी के दो-तीन दिनों की छुट्टी पर जाने के बाद उन्होंने भी उनके घर में छापामारी कर डाली। इस बार प्रतिक्रिया हुई और जगदीश्‍वरजीत सिंह ने कलक्टर पर मुकदमा ठोक दिया। पीके सिद्धार्थ लिखते हैं कि इस घटना ने मेरे मन में कई सवाल खड़े किए। इसमें मुख्‍य रूप से ये कि इस सामंत ने मेरे ऊपर मुकदमा नहीं कर कलक्टर पर ही क्यों मुकदमा किया। मैंने इस विषय पर कुछ लोगों से चर्चा की।

कुर्सी पर बैठे जगदीश्वरजीत सिंह और खिड़की में दिखाई दे रहा चीता।

इसमें यह बात निकल कर सामने आई कि मव्‍वार मेरी गतिविधियों और न्याय से प्रेरित अन्य कार्रवाईयों पर निगाह रखे हुए थे। उन्हें यह स्पष्ट हो गया था कि उनके विरुद्ध मैंने जो कार्रवाई की, उसके न्यायोचित कारण थे। उनके बेटे के खिलाफ वारंट था। उसने गंभीर अपराध किया था। वह फरार चल रहा था। दूसरी ओर कलक्टर ने जो कार्रवाई की, उसके पीछे ऐसा कोई औचित्य नहीं था। कलक्टर पर मुकदमा ठोकने के बाद मव्‍वार ने मुझे भी एक जबरदस्त प्रत्युत्तर दिया, जो नितांत अप्रत्याशित था।

एक रोज मैं अपने कार्यालय में बैठा हुआ था। उस समय के वरीय पत्रकार देवव्रत मेरे साथ बैठे हुए थे। उसी समय गार्ड ने आकर कहा कि एक सज्‍जन आपसे मिलना चाहते हैं। मैंने कहा, आने दो। उठी और मुड़ी हुई मूंछ वाले एक उम्रदराज सज्जन पधारे। मैंने उन्हें बैठने के लिए कहा और पूछा कि मैं उनकी क्या सहायता कर सकता हूं। उन्होंने अपना परिचय देते हुए कहा कि वे मनातू के मव्‍वार जगदीश्वर जीत सिंह हैं। तब मैंने इस ख्यात व्यक्ति को पहली बार देखा था। मैंने पूछा, कैसे आना हुआ।

मव्‍वार साहब ने अपने साथ लाए एक लंबे कागज को मेरे टेबल पर फैला दिया। वह कागज एक जमीन का नक्‍शा था। उन्‍होंने कहा, मेरे अधिकार में 5000 एकड़ जमीन है। यह पाँच हजार एकड़ जमीन मैं आपको देता हूँ। आप जिसे चाहें, दे दीजिए। मुझे यकीन है कि आप सही लोगों को देंगे। मैंने कहा कि शुक्रिया मव्‍वार साहब। लेकिन यदि आप ये जमीनें गरीबों में खुद बाँट देते तो नक्सलवादी आपके पीछे नहीं पड़ते। उन्‍होंने कहा कि मुझसे मेरी सम्पति कोई जबरदस्ती बंदूक दिखा कर नहीं ले सकता।

मैंने मव्‍वार साहब को चाय पिलाई और ससम्मान विदा किया। इसके बाद मैंने कलक्टर साहिबा को फोन किया और आग्रह किया कि वे जमीनों को गरीबों-भूमिहीनों में तुरंत बंटवाने के लिए आवश्यक कार्रवाई करें। मोहतरमा ने कहा कि उनके पास कर्मियों की बहुत कमी है और यह काम तुरंत होने की कोई गुंजाइश नहीं है। इतनी जमीन बांटने में 5 से 10 साल लग सकते थे। मैं निराश नहीं हुआ। मैंने स्वयंसेवी संस्थाओं की एक बैठक बुलाई और उन्हें यह दायित्व दिया कि वे भूमिहीन लाभुकों का चयन कर उन्हें इन जमीनों पर कब्‍जा दिलवाएं। अगले दिन मव्‍वार के इस स्वैच्छिक भूमि-दान की खबर अख़बारों में सुर्ख़ियों में आई। इसका नक्सलवादियों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा।

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