पलामू के अब्दुल गफ्फार हर दिन पढ़ते हैं 10-11अखबार, कहते है - ये आदत खासा नामचीन बना दिया
Jharkhand News कभी-कभी कुछ विशेष कारण से लोग चर्चा का विषय बन जाते हैं। ज्ञान पिपासा कहें या मन मस्तिष्क पर छाया देश- दुनियां की खबरें जानने का जुनून। यह व्यक्ति को लोकप्रिय बना देता है। वे समाज में कुछ खास बन जाते हैं।
पलामू (मेदिनीनगर), (ताैहीद रब्बानी)। Jharkhand News : कभी-कभी कुछ विशेष कारण से लोग चर्चा का विषय बन जाते हैं। ज्ञान पिपासा कहें या मन मस्तिष्क पर छाया देश- दुनियां की खबरें जानने का जुनून। यह व्यक्ति को लोकप्रिय बना देता है। वे समाज में कुछ खास बन जाते हैं। ऐसे ही जुनून में 60 साल से शामिल है पलामू जिला मुख्यालय मेदिनीनगर के कुंड मुहल्ला निवासी 76 वर्षीय बुजुर्ग अब्दुल गफ्फार टेलर।
पढ़ने-पढ़ाने की आदत ने इन्हें खासा नामचीन बना दिया
अब्दुल गफ्फार टेलर आज भी प्रतिदिन 10-11 अखबार खरीद कर पढ़ने व दर्जनों लोगों को पढ़ाने की आदत पर कायम है। पढ़ने-पढ़ाने की इस आदत ने इन्हें खासा नामचीन बना दिया है। सुबह की नमाज व तिलावत के बाद इनकी सुबह अखबार से होती है। ये छोटी मस्जिद रोड स्थित अपने नाम से संचालित गफ्फार टेलर दुकान पहुंचते हैं। यहां भी ये रह-रहकर दिन भर हिन्दी-उर्दू अखबार पढ़ते और लोगों को पढ़ाते हैं।
रसिक की भांति पढ़ना शुरू कर देते अखबार
अखबार पहुंचने के साथ ही रसिक की भांति अखबार पढ़ना शुरू कर देते हैं। यह क्रम दिन भर जारी रहता है। आज के दौर में भी ये प्रतिदिन 10 -12 अखबार खरीदकर पढ़ने- पढ़ाने की अपनी दशकों पुरानी आदत पर कायम है।
प्रिंट मीडिया का कोई जवाब नहीं
गफ्फार बताते हैं कि आज भी प्रिंट मीडिया का कोई जवाब नहीं है। इलेक्ट्रोनिक व डिजिटल की दुनिया में भी अखबार का महत्व बना हुआ है। अखबार में छपी खबर हर समाज व पूरे विश्व में प्रमाणिक मानी जाती है। और क्यों नहीं प्रिंट मीडिया आज भी खबरों की दुनिया का सरल, सहज, सुलभ व सस्ता साधन है।
कीमत भी एक-चाय पान से कम
सुबह होते ही अखबार आसानी से सुदूरवर्ती गांव के घरों तक पहुंच जाता है। कीमत भी एक-चाय पान से कम है। खबरों के लिए अखबार से सस्ता व बेहतर साधन और क्या हो सकता है। बताया कि वे हर दिन कर्मयोगी बजरंगी साव व कृष्णा प्रजापति से अखबार खरीदते हैं। सप्ताह में अखबार की कीमत अदा करते हैं।
अखबार ने सिखाया पढ़ना-लिखना
अब्दुल गफ्फार टेलर बतातें हैं कि उनकी पढ़ाई किसी स्कूल में नहीं हुई। उन्होंने पढ़ना-लिखना अखबार से ही सीखा है। उनके उस्ताद अब्दुल मजीद टेलर ने कहा कि अखबार पढ़ो। इससे पढ़ना-लिखना सीख जाओगे। 1960-70 के दशक में हिन्दी में स्थानीय अखबार भी निकलता था। उर्दू अखबार नकीब आता था। इसकी कीमत 50 पैसे होती थी। वे अखबार पढ़ने लगे। इससे उन्हें पढ़ने-लिखने आ गया।
दैनिक जागरण समेत हिन्दी के 6 व उर्दू के 5-6 अखबार पढ़ते है रोज
उन्होंने बताया कि साथ ही खबर से देश-दुनिया में घटित घटनाओं से वे रूबरू होने लगे। बताया कि पहले वे मंगकर या देखकर अखबार पढ़ते थे। 1982 से उन्हें खरीदकर अखबार पढ़ने का शौक जागा। इसके बाद वे हर दिन खरीदकर अखबार पढ़ रहे हैं। बताया कि दैनिक जागरण समेत हिन्दी के 6 व उर्दू के 5-6 अखबार या उर्दू की जो भी अखबार आया हर दिन खरीद लेते हैं।