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JAC 12th Results 2019: रिजल्ट में आया सुधार, आधे बच्चों के फेल होने का धुला कलंक

JAC 12th Results 2019. इंटरमीडिएट साइंस की परीक्षा में झारखंड को पिछले कई वर्षों में आधे से अधिक बच्चों के फेल होने के कलंक का सामना करना पड़ा था। लेकिन इस बार इसमें सुधार आया है।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Wed, 15 May 2019 12:49 PM (IST)Updated: Wed, 15 May 2019 12:49 PM (IST)
JAC 12th Results 2019: रिजल्ट में आया सुधार, आधे बच्चों के फेल होने का धुला कलंक
JAC 12th Results 2019: रिजल्ट में आया सुधार, आधे बच्चों के फेल होने का धुला कलंक

रांची, [नीरज अम्बष्ठ]। किसी परीक्षा में आधे से अधिक विद्यार्थी फेल हो जाएं तो इससे बड़ा कलंक किसी राज्य के लिए नहीं हो सकता। इंटरमीडिएट साइंस की परीक्षा में झारखंड को पिछले कई वर्षों में इस कलंक का सामना करना पड़ा था। लेकिन इस बार इंटरमीडिएट साइंस के रिजल्ट में आधे से अधिक बच्चों के फेल होने का कलंक धुल गया है।

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पूर्व की तरह पिछले साल भी आधे से अधिक बच्चे साइंस की परीक्षा में फेल हो गए थे। लेकिन इस बार इस संकाय में 57 फीसद बच्चे पास हुए हैं। रिजल्ट में सुधार का सबसे बड़ा कारण स्कूलों को शिक्षक मिलना रहा। राज्य के प्लस टू स्कूलों में लंबे समय के बाद वर्ष 2017 में रसायन विज्ञान तथा भौतिकी विषयों में शिक्षकों की नियुक्ति हुई थी।

इसका असर इस साल परीक्षा परिणाम पर दिखा। इन दोनों विषयों में पिछले साल की अपेक्षा पांच फीसद अधिक रिजल्ट हुआ। वरिष्ठ शिक्षक एमपी मिश्रा का भी मानना है कि सरकार ने रसायन विज्ञान एवं भौतिकी विषयों में शिक्षकों की नियुक्ति कर दी थी। इससे बच्चों का रिजल्ट बेहतर हुआ। उनके अनुसार, स्कूलों में स्वीकृत सभी यूनिटों के विरुद्ध शिक्षक उपलब्ध हों तो परीक्षा का परिणाम बेहतर होना तय है।

पूर्व में स्कूलों में शिक्षकों की कमी के कारण ही इंटरमीडिएट साइंस में खराब परिणाम रहा। पूर्व के परीक्षा परिणामों की बात करें तो पिछले तेरह वर्षों में नौ बार लगभग आधे या इससे अधिक बच्चे इंटरमीडिएट साइंस में फेल हो गए थे। वर्ष 2006 से 2013 तक लगातार यह स्थिति रही। 2014 तथा 2015 में थोड़ा सुधार हुआ, लेकिन 2016 के बाद रिजल्ट में लगातार गिरावट हो रही थी।

इस बार परीक्षा परिणाम में सुधार ने उच्चतर माध्यमिक शिक्षा की योजनाओं को भी बल दिया है। इंटरमीडिएट कॉमर्स में भी 2016 से लगातार गिरावट आ रही थी। लेकिन पिछले साल इसमें लगभग सात फीसद का सुधार हुआ। इस बार इसमें भी बढ़ोतरी हुई है।

ऐसा हो तो और भी बेहतर रहे रिजल्ट

  • ग्यारहवीं की परीक्षा के नाम पर खानापूर्ति न हो। अभी इस परीक्षा में अधिकांश बच्चे पास हो जाते हैं, लेकिन उनमें से कई बारहवीं में जाकर फेल हो जाते हैं।
  • कॉलेजों व प्लस टू स्कूलों में निर्धारित अवधि की कक्षाएं पूरी हों।
  • इंटरमीडिएट की पढ़ाई में एकरूपता हो।
  • शिक्षकों के सभी रिक्त पद भरे जाएं। लैब व लाइब्रेरी दुरुस्त हो।

कब कितने बच्चे हुए फेल

2006 : 56.91

2007 : 54.89

2008 : 49.71

2009 : 49.61

2010 : 69.77

2011 : 66.30

2012 : 51.63

2013 : 61.72

2014 : 36.35

2015 : 36.12

2016 : 41.64

2017 : 47.64

2018 : 51.66

2019 : 43.00

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