19 करोड़ के घोटोल पर HC ने कहा- जिस पर आरोप, वह कैसे कर सकता है जांच, जानिए मामला
Jharkhand High Court. सीवरेज ड्रेनेज मामले में हुए 19 करोड़ की वित्तीय अनियमितता के मामले में हाई कोर्ट ने राज्य सरकार पर तल्ख टिप्पणी की है।
रांची, राज्य ब्यूरो। झारखंड हाई कोर्ट ने राज्य सरकार पर बेहद तल्ख टिप्पणी की है। बुधवार को उच्च न्यायालय ने सीवरेज ड्रेनेज मामले में हुए वित्तीय अनियमितता के मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि सरकार के जिस विभाग के खिलाफ अनियमितता के गंभीर आरोप लगे हैं, वही विभाग जांच कैसे कर सकता है। इस मामले में स्वतंत्र जांच एजेंसी यथा एसीबी से जांच कराई जानी चाहिए थी। अदालत ने सुनवाई के क्रम में राज्य सरकार से पूछा कि नगर विकास विभाग पर आरोप होने के बाद वही विभाग इस मामले की जांच कैसे कर रहा है। इस पर सरकार को विस्तृत रिपोर्ट 29 मार्च तक हाई कोर्ट में जमा करनी है। बता दें कि इस मामले में हाई कोर्ट में जनहित याचिका पंकज पांडेय ने दाखिल की है।
जिस विभाग पर आरोप, वो कैसे कर सकता जांच : हाई कोर्ट
झारखंड हाई कोर्ट के जस्टिस एके गुप्ता की अदालत में रांची के सीवरेज-ड्रेनेज के निर्माण के लिए डीपीआर बनाने में हुई वित्तीय अनियमितता के मामले में सुनवाई हुई। इस दौरान अदालत ने मौखिक रूप से कहा कि जिस पर आरोप लगा है वह खुद उस मामले की जांच कैसे कर सकता है। अदालत ने सरकार से पूछा है कि इस मामले में नगर विकास विभाग पर ही आरोप लगा है, ऐसे में किन परिस्थितियों में मामले की जांच नगर विकास को सौंपी गई। अदालत ने सरकार को 29 मार्च तक इस पर विस्तृत जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।
मैनहार्ट को हुआ था पैसे का भुगतान
इस संबंध में पंकज कुमार यादव ने हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की है। याचिका में कहा गया है कि वर्ष 2009 में रांची में सीवरेज- ड्रेनेज निर्माण के डीपीआर बनाने का काम मैनहार्ट को दिया गया था। मैनहार्ट ने डीपीआर तैयार नहीं किया लेकिन उसे करीब 19 करोड़ का भुगतान कर दिया गया। पूर्व में अदालत ने प्रार्थी को इसकी शिकायत एंटी करप्शन ब्यूरो (एसीबी) के पास करने को कहा था।
एसीबी ने नहीं की जांच
बुधवार को प्रार्थी की ओर से अदालत को बताया गया कि उसने एसीबी से शिकायत की थी। एसीबी आइजी एमवी राव ने 2009 से 2011 तक निगरानी आयुक्त से मामले में आरोपितों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने की अनुमति मांगी, लेकिन निगरानी आयुक्त की ओर से कोई जवाब नहीं दिया गया। 2 फरवरी 2012 को निगरानी आयुक्त ने एसीबी को पत्र लिखकर कहा कि इस मामले की जांच एसीबी को करने की जरूरत नहीं है। अब नगर विकास विभाग की ओर से मामले की जांच के लिए एक कमेटी बनाई गई है, जो जांच कर रिपोर्ट देगी। प्रार्थी की ओर कहा गया कि नगर विकास विभाग पर ही आरोप है और विभाग ही मामले में खुद जांच कर रहा है। ऐसे में निष्पक्ष जांच नहीं हो सकती। इसके बाद अदालत ने सरकार से जवाब मांगा है।