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गुमला में 5 की हत्‍या पर हाई कोर्ट ने कहा- काश डायन प्रथा के खिलाफ सरकार गंभीरता से कदम उठाती...

Jharkhand News हाई कोर्ट ने एक ही परिवार के पांच लोगों की हत्‍या मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि डायन प्रथा के खिलाफ सरकार गंभीरता से कदम उठाती तो गुमला की घटना नहीं होती। कनीय अधिकारी द्वारा शपथ पत्र दाखिल करने पर भी कोर्ट ने नाराजगी जताई।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Thu, 18 Mar 2021 04:03 PM (IST)Updated: Thu, 18 Mar 2021 07:46 PM (IST)
गुमला में 5 की हत्‍या पर हाई कोर्ट ने कहा- काश डायन प्रथा के खिलाफ सरकार गंभीरता से कदम उठाती...
Jharkhand News कनीय अधिकारी द्वारा शपथ पत्र दाखिल करने पर भी कोर्ट ने नाराजगी जताई।

रांची, राज्य ब्यूरो। Jharkhand News झारखंड हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस डाॅ. रवि रंजन व जस्टिस एसएन प्रसाद की खंडपीठ में गुरुवार को गुमला में एक ही परिवार के पांच लोगों की हत्या के मामले की सुनवाई हुई। इस दौरान अदालत ने सरकार के जवाब को पर्याप्त नहीं बताते हुए दोबारा जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया। अदालत ने पूछा कि सरकार इस तरह के मामलों की रोकथाम के लिए क्या-क्या कदम उठा रही है। इस दौरान कड़ी मौखिक टिप्पणी करते हुए अदालत ने कहा कि काश सरकार पहले ही इस तरह के मामलों को रोकने के लिए गंभीरता से कदम उठाती, तो गुमला में ऐसी घटना नहीं होती।

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इस घटना से राज्य का सिर पूरे देश के सामने शर्म से झुक गया है। गुमला में पांच लोगों की हत्या बहुत दुखद है। यदि इस तरह की घटना को रोकने के लिए प्रभावी कदम नहीं उठाए जा रहे हैं, तो हमें अपने-अपने पदों पर बने रहने का अधिकार नहीं है। कोर्ट ने इस मामले में कनीय अधिकारी द्वारा शपथ पत्र दाखिल करने पर भी नाराजगी जताई। अदालत ने कहा कि इस तरह के मामलों में सचिव को शपथ पत्र दाखिल करना चाहिए। बता दें कि इस मामले में हाई कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया है।

इसके बाद अदालत ने सरकार से पूछा कि डायन-बिसाही में हत्या के मामलों को रोकने के लिए राज्य सरकार के वि‍जन क्या हैं। डायन प्रथा निषेध अधिनियम को प्रभावी तरीके से लागू करने की सरकार की क्या योजना है। कोर्ट ने यह भी पूछा कि उस परिवार में मात्र एक बच्ची बची है। उसके कल्याण के लिए सरकार क्या कदम उठाएगी। इस पर सरकार को विस्तृत जवाब अदालत में पेश करना है। इस मामले में अगली सुनवाई आठ अप्रैल को होगी और अदालत ने सुनवाई के दौरान सामाजिक कल्याण सचिव को ऑनलाइन हाजिर होने का निर्देश दिया है।

अदालत ने कहा कि हम सभी पर समाज में व्याप्त इस तरह की कुरीतियों को रोकने का उत्तरदायित्य है। समाज के साथ-साथ अधिवक्ता वर्ग को भी इसे जिम्मेदारी के रूप में लेना चाहिए और डायन-बिसाही हिंसा को खत्म करने में अपनी भूमिका निभानी चाहिए। इस दौरान सरकार की ओर से शपथ पत्र दाखिल कर कहा गया कि घटना के बाद एसआइटी बनाई गई थी, जो पूरे मामले की जांच कर रही है। अब तक दस अभियुक्तों को गिरफ्तार किया गया है।

डीजीपी ने सभी जिलों के एसपी को इस तरह के मामलों को रोकने के लिए बनी एसओपी (स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसिड्योर) के तहत कार्रवाई करने का निर्देश दिया है। एसएसपी को जिले का नोडल पदाधिकारी बनाया गया है। पूरे राज्य में डायन-बिसाही को लेकर जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है। ऐसे मामलों में जिला जज से समन्वय कर आरोपितों को जल्द से जल्द सजा दिलाने का भी निर्देश दिया गया है।

इस मामले में अदालत ने झारखंड विधिक सेवा प्राधिकार (झालसा) से पूछा है कि राज्य में डायन प्रथा के खिलाफ कितने प्रोग्राम चलाए जा रहे हैं। कितने स्कूलों में लीगल क्लीनिक खोले गए हैं और इसमें कितने लीगल कैडेट कोर बनाए गए हैं। झालसा का राज्य के सभी सरकारी स्कूलों में इस तरह के कार्यक्रम चलाने की क्या योजना है। इस पर भी झालसा को हाई कोर्ट में जवाब दाखिल करना है।


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