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नक्सली सरेंडर पॉलिसी पर हाई कोर्ट ने सरकार से मांगा जवाब, 4 हफ्ते बाद फिर सुनवाई Ranchi News

अदालत को नक्सली कुंदन पाहन के सरेंडर के दौरान किए गए समारोह लालकालीन बिछाने का हवाला देते हुए कहा गया कि इससे युवा नक्सली बनने के लिए प्रेरित होंगे।

By Alok ShahiEdited By: Published: Fri, 25 Oct 2019 09:19 PM (IST)Updated: Sat, 26 Oct 2019 09:13 AM (IST)
नक्सली सरेंडर पॉलिसी पर हाई कोर्ट ने सरकार से मांगा जवाब, 4 हफ्ते बाद फिर सुनवाई Ranchi News
नक्सली सरेंडर पॉलिसी पर हाई कोर्ट ने सरकार से मांगा जवाब, 4 हफ्ते बाद फिर सुनवाई Ranchi News

रांची, राज्य ब्यूरो। झारखंड हाई कोर्ट के एक्टिंग चीफ जस्टिस एचसी मिश्र व जस्टिस अपरेश कुमार सिंह की अदालत में नक्सली सरेंडर पॉलिसी मामले में सुनवाई हुई। सुनवाई के बाद अदालत ने सरकार से जवाब मांगा है। मामले में अगली सुनवाई चार सप्ताह बाद होगी। स्वत: संज्ञान और अधिवक्ता हेमंत सिकरवार की याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने उक्त जानकारी मांगी है।

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सुनवाई के दौरान प्रार्थी की ओर से अदालत को बताया गया कि नक्सलियों को सरेंडर करने की जो नीति सरकार ने बनाई है वह सही नहीं है। इस नीति से युवकों को नक्सली बनने की प्रेरणा मिलती है। सरकार नक्सलियों को गिरफ्तार करने के बदले उन पर ईनाम की राशि घोषित करती है। जितना बड़ा नक्सली होता है उस पर ईनाम की राशि उतनी ही अधिक होती है। नक्सलियों को सरेंडर करने के बाद काफी सुविधाएं मिलती हैं। सरेंडर करने के बाद ईनाम की राशि भी नक्सलियों को मिल जाती है। लेकिन इस मामले में पीडि़तों को सरकार एक लाख रुपये तक मुहैया नहीं करा पाती है। इससे पुलिसकर्मियों का मनोबल गिरता है।

अदालत को नक्सली कुंदन पाहन के सरेंडर के दौरान किए गए समारोह  लालकालीन बिछाने का हवाला देते हुए कहा गया कि इससे युवा नक्सली बनने के लिए प्रेरित होंगे। अदालत को बताया गया कि नक्सली आम लोगों, जन प्रतिनिधियों और पुलिसकर्मियों की हत्या करते हैं। इसके बाद उन्हें यह सुविधा मिलती है जो उचित नहीं है। सरेंडर करने के बाद नक्सलियों के खिलाफ लंबित मामलों में गवाही नहीं होती और पुलिस अधिकारियों पर गवाह नहीं लाने का दबाव दिया जाता है। बरी होने के बाद सरकार उनके खिलाफ अपील में भी नहीं जाती।

अदालत को बताया गया कि नक्सली हमले में मारे गए लोगों के परिजनों और पीडि़तों को सरकार की ओर से बेहतर सुविधा नहीं दी जा रही है। एक- दो लाख रुपये ही दिए जाते हैं। मुआवजा लेने के लिए पीडि़तों को सरकारी दफ्तरों का चक्कर लगाना पड़ता है। कई लोगों को दस साल बाद भी मुआवजे का भुगतान नहीं किया जा सका है।


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