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Jharkhand Budget Session: जमशेदपुर की बंद पड़ी इंकैब इंडस्ट्री पर एनसीएलटी जाएगी सरकार

Jharkhand Budget Session. विधानसभा के बजट सत्र में सरयू राय ने ध्यानाकर्षण के जरिए उठाया सवाल। मंत्री ने कहा कि सरकारी संपत्ति सरकार बचाएगी।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Thu, 12 Mar 2020 09:35 PM (IST)Updated: Thu, 12 Mar 2020 09:35 PM (IST)
Jharkhand Budget Session: जमशेदपुर की बंद पड़ी इंकैब इंडस्ट्री पर एनसीएलटी जाएगी सरकार
Jharkhand Budget Session: जमशेदपुर की बंद पड़ी इंकैब इंडस्ट्री पर एनसीएलटी जाएगी सरकार

रांची, राज्य ब्यूरो। जमशेदपुर में बंद पड़ी इंकैब इंडस्ट्री लिमिटेड को लेकर नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) में राज्य सरकार अपना पक्ष मजबूती से रखेगी। विधायक सरयू राय ने गुरुवार को विधानसभा में ध्यानाकर्षण के जरिए इससे संबंधित प्रश्न उठाया था। मंत्री आलमगीर आलम ने इसपर जवाब देते हुए कहा कि सरकार इसे लेकर गंभीर है। औद्योगिक वातावरण को प्रभावी बनाए रखने के लिए राज्य सरकार ने औद्योगिक नीति बनाई है। इंकैब कंपनी पर राज्य सरकार संज्ञान लेगी।

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सरयू राय ने इसपर कहा कि राज्य सरकार के पास सूचनाओं का अभाव है। इससे सबका हित प्रभावित होगा। इसपर मंत्री ने उत्तर दिया कि सरकार एनसीएलटी में पक्ष मजबूती से रखेगी। सरयू राय ने अपनी चिंता से अवगत कराते हुए कहा कि 1920 में स्थापित इंकैब इंडस्ट्री लिमिटेड को टाटा स्टील ने 177 एकड़ जमीन दिया था। यह भूखंड टिस्को को सरकार की ओर से मिले 15724.84 एकड़ जमीन का हिस्सा था, जो सरकार ने उसे दिया था। समझौते में अंकित था कि इंकैब को जमीन की जरूरत नहीं रहेगी, तो उसे किसी को देने या बेचने से पहले वह स्थानीय सरकार से पूछेगी कि समझौते के अनुरूप इसे लेना चाहती है या नहीं।

1985 में इंकैब को ब्रिटिश कंपनी द्वारा छोड़े जाने के कारण यह भारत सरकार के अधीन हो गया। 1985 से 1993 तक काशीनाथ तापूरिया ने वित्तीय संगठनों की पहल पर इसे चलाया। जब कंपनी दिवालिया हो गई तो वित्तीय कंपनियों ने इसे चलाने के लिए मारीशस के मेसर्स लीटर्स यूनिवर्सल को दे दिया। इसने कंपनी के प्रबंधन में कई बार बदलाव किया। कंपनी मुकदमेबाजी का शिकार हो गई।

कंपनी को पुनर्जीवित करने के उद्देश्य से जिस प्रबंधन ने इसे लिया, उसका उद्देश्य कंपनी चलाने की बजाय स्थायी संपत्ति हड़पना था। दिल्ली उच्च न्यायालय ने टाटा स्टील को कंपनी चलाने को कहा लेकिन उसने रुचि नहीं ली। सुनियोजित तरीके से कंपनी की देनदारियां बढ़ाकर इसे बीमार कर दिया गया। इसका सबसे खराब असर इंकैब के कर्मचारियों पर पड़ा। मजदूरों के समक्ष भूखमरी की स्थिति पैदा हो गई। अनेकों श्रमिक मौत के मुंह में चले गए। उन्होंने कहा कि इंकैब को पुनर्जीवित करने के लिए राज्य सरकार को पहल करना चाहिए।


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