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झारखंड में सरकार को आया बेरोजगारों का ख्याल, लेकिन घोषणाओं को धरातल पर उतारना होगी बड़ी चुनौती

झारखंड में अब प्रशिक्षित बेरोजगार युवाओं को हर साल 5 हजार रुपए बेरोजगारी भत्ता मिलेगा। इसकी घोषणा सोमवार को CM हेमंत सोरेन ने विधानसभा में बजट सत्र के दौरान की। इसके अलावा निजी क्षेत्र में स्थानीय को 75 फीसदी आरक्षण के लाभ का ऐलान भी उन्होंने किया।

By Shashank PandeyEdited By: Published: Tue, 16 Mar 2021 11:38 AM (IST)Updated: Tue, 16 Mar 2021 11:38 AM (IST)
झारखंड में सरकार का बेरोजगारों के लिए ऐलान। (फोटो: दैनिक जागरण/प्रतीकात्मक)

रांची, राज्य ब्यूरो। झारखंड में विधानसभा के बजट सत्र की कार्यवाही के दौरान सरकार ने राज्य के बेरोजगारों को केंद्र में रखकर दो बड़ी घोषणाएं की हैं। पहली निजी क्षेत्र की नौकरियों में स्थानीय बेरोजगारों को 75 फीसद आरक्षण देने की है। इसके तहत निजी क्षेत्र की कंपनियों, कल-कारखानों, प्रतिष्ठानों आदि में 30 हजार रुपये तक के वेतन वाले पद स्थानीय बेरोजगारों के लिए आरक्षित होंगे। दूसरी घोषणा तकनीकी रूप से प्रशिक्षित बेरोजगारों को साल में एक बार 5,000 रुपये के प्रोत्साहन भत्ता देने की है। विधवाओं, दिव्यांगों और आदिम जनजाति समुदायों से आनेवाले बेरोजगारों को इस मद में 50 फीसद अधिक यानी 7,500 रुपये सालाना देने की घोषणा मुख्यमंत्री ने सदन में की है।

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माना जा रहा है कि सरकार की ये दोनों घोषणाएं बेरोजगारों के व्यापक हित में है। इससे पढ़े-लिखे बेरोजगारों को अपने राज्य में ही नौकरी मिलने के द्वार खुलेंगे। रोजी-रोटी की तलाश में उन्हें बाहर के प्रदेशों का रुख नहीं करना होगा। वहीं, प्रोत्साहन राशि के पैसे से बेरोजगार राज्य और राज्य से बाहर की नौकरियों के लिए आवेदन कर सकेंगे। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि दोनों ही घोषणाएं राज्य के बेरोजगारों की मुश्किलों को बहुत हद तक पाटने में सहायक होगी, बशर्ते इन घोषणाओं को धरातल पर उतारने में आने वाली परेशानियों को समय रहते दुरुस्त कर लिया जाए। 

सबसे बड़ी समस्या राज्य की अपनी नियोजन नीति का न होना है। इसी तरह, राज्य में अब तक स्थानीयता भी परिभाषित नहीं हो सकी है। ऐसे में स्थानीय कौन होंगे और किन्हें 75 फीसद आरक्षण का लाभ मिलेगा, बड़ा सवाल है। दोनों घोषणाओं को अमलीजामा पहनाने में एक बड़ी अड़चन बेरोजगारों के पहचान की भी है। राज्य के नियोजनालयों में लाखों ऐसे लोग भी निबंधित हैं, जो आज कहीं न कहीं नियोजित हैं। ऐसे में इन घोषणाओं का लाभ वास्तविक लाभार्थियों तक पहुंचाने से पूर्व व्यापक सर्वे की आवश्यकता होगी। अगर ऐसा नहीं होता है तो अन्य कल्याणकारी योजनाओं की ही तरह इसमें भी गड़बड़ी की आशंकाओं को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। जरूरत दोनों ही घोषणाओं को मूर्त रूप देने से पूर्व इसके श्वेत और स्याह दोनों ही पक्षों की ईमानदार मूल्यांकन की है।


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