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नियोजन नीति व शिक्षकों की नौकरी बचाने सुप्रीम कोर्ट पहुंची सरकार

झारखंड हाईकोर्ट ने दिया था नियोजन नीति रद करने का आदेश

By JagranEdited By: Published: Fri, 23 Oct 2020 02:04 AM (IST)Updated: Fri, 23 Oct 2020 02:04 AM (IST)
नियोजन नीति व शिक्षकों की नौकरी बचाने सुप्रीम कोर्ट पहुंची सरकार
नियोजन नीति व शिक्षकों की नौकरी बचाने सुप्रीम कोर्ट पहुंची सरकार

राज्य ब्यूरो, रांची : हेमंत सरकार नियोजन नीति सहित 13 अधिसूचित जिलों के शिक्षकों की नौकरी बचाने की कवायद में जुट गई है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की मंजूरी मिलने के बाद सरकार नियोजन नीति को रद करने और 13 अधिसूचित जिलों के शिक्षकों की नियुक्ति रद करने के झारखंड हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है। हालांकि इस मामले में अधिसूचित जिलों के वैसे अभ्यर्थियों ने पूर्व में ही सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दाखिल कर दी है, जिनकी नियुक्ति रद कर दी गई है। सुप्रीम कोर्ट से उन्होंने अपनी नौकरी बचाने की गुहार लगाई है, जिस पर सुनवाई लंबित है। इस मामले में राज्य सरकार व जेएसएससी सहित अन्य प्रतिवादियों को सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किया है। सरकार गठन के बाद हेमंत सोरेन सरकार ने नियोजन नीति में संशोधन के लिए एक कमेटी का गठन करने की बात कही थी। लेकिन इससे पहले ही हाई कोर्ट का फैसला आ गया। ------------------

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2016 में जारी हुई थी अधिसूचना

झारखंड सरकार ने 14 जुलाई 2016 को नियोजन नीति की अधिसूचना जारी की थी। इसके तहत 13 जिलों को अधिसूचित व 11 को गैर अधिसूचित जिला घोषित किया गया। इसमें 13 अधिसूचित जिलों की तृतीय एवं चतुर्थवर्गीय नौकरी में स्थानीयता, जन्मस्थान के आधार वहीं के लोगों को ही नियुक्त करने का प्रावधान किया गया था। सरकार ने 10 साल के लिए यह प्रावधान किया था। इसके बाद इस नीति के तहत हाई स्कूल शिक्षकों की नियुक्ति के लिए जेएसएससी की ओर से विज्ञापन (संख्या 21-2016) निकाला गया। विवाद तब उठा जब इसके चलते गैर अधिसूचित जिलों के अभ्यर्थी अधिसूचित जिलों में नियुक्ति के लिए आवेदन नहीं कर पाए। इसको लेकर सोनी कुमारी ने हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। इस पर फैसला सुनाते हुए हाई कोर्ट ने राज्य सरकार की नियोजन नीति को असंवैधानिक बताते हुए रद कर दिया था।

---- परिस्थिति के अनुसार बनी थी नीति : सरकार जब हाई कोर्ट की वृहद पीठ में इस मामले की सुनवाई चल रही थी, तो सरकार का कहना था कि राज्य की वर्तमान स्थिति और परिस्थिति को देखते हुए सरकार ने उक्त नीति बनाई है। स्थानीय लोगों की उन्नति के साथ-साथ रोजगार देने के लिए यह अस्थाई व्यवस्था की गई है जो सिर्फ 10 साल के लिए ही है। 10 साल बाद यह नीति स्वत: समाप्त हो जाएगी। सरकार ने कहा था कि कई राज्यों में भी इस तरह का प्रावधान किया गया है। इसलिए यह नीति संवैधानिक है और इसे गलत करार नहीं दिया जा सकता। ------

नियोजन नीति पर हाई कोर्ट का आदेश

हाई कोर्ट के जस्टिस एचसी मिश्र, जस्टिस एस चंद्रशेखर व जस्टिस दीपक रोशन की अदालत ने झारखंड की नियोजन नीति को असंवैधानिक बताते हुए रद करने का आदेश दिया। हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट की ओर से इंद्रा साहनी और आंध्रप्रदेश के चेबरू लीला प्रसाद राव के मामले में दिए गए आदेश का हवाला देते हुए कहा कि किसी भी हाल में कोई भी पद शत-प्रतिशत आरक्षित नहीं किया जा सकता है। अदालत ने यह भी माना है कि अधिकतम 50 प्रतिशत ही आरक्षण हो सकता है, जबकि राज्य में नियोजन नीति के चलते 13 अधिसूचित जिलों के सभी पद 100 प्रतिशत आरक्षित हो गए हैं, जो कि असंवैधानिक है। राज्य सरकार को इस तरह की नीति बनाने का अधिकार नहीं है। इसलिए नियोजन नीति को निरस्त किया जाता है।


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