अधूरी रह गई कौरव जलाशय परियोजना, बेकार बह जाता है बरसात का पानी, नदी का पानी भी हो रहा बेकार
Jharkhand News पलामू (Palamu) जिला के विश्रामपुर-नावाबाजार प्रखंड क्षेत्र (Vishrampur-Nawabazar Block Area) से हाेकर गुजरने वाली एकमात्र जिंदा लब्जी नदी (Labji River) के अस्तित्व अब खतरे में है। पूरे वर्ष के कुछ माह में ही इस नदी (River) पर पानी नजर आता है।
पलामू, जागरण संवाददाता। Jharkhand News : पलामू (Palamu) जिला के विश्रामपुर-नावाबाजार प्रखंड क्षेत्र (Vishrampur-Nawabazar Block Area) से हाेकर गुजरने वाली एकमात्र जिंदा लब्जी नदी (Labji River) के अस्तित्व अब खतरे में है। पूरे वर्ष के कुछ माह में ही इस नदी (River) पर पानी नजर आता है। नदी के रास्ते में कहीं-कही तो अतिक्रमण (Encroachment) भी साफ नजर आने लगा है। स्थानीय लोग बताते है कि अगर अब भी हम नहीं चेते तो आने वाली पीढ़ियों के लिए सिर्फ रेगिस्तान (Desert) छोड़ कर जाएंगे।
किसानों को अपने अच्छे दिन आने की बन गई थी उम्मीद
लोग इस स्थिति के उत्पन्न होने के लिए लोग सीधे तौर पर सरकार के अदूरदर्शिता को जिम्मेवार मानते है। इनका कहना है इस क्षेत्र के हताई गांव में 34 वर्ष पूर्व लब्जी नदी पर बनने वाले कौरव जलाशय योजना की आधारशीला रखे जाने के बाद किसानों को अपने अच्छे दिन आने की उम्मीद बन गई थी।
21 साल बीत गए, पर इस योजना पर नहीं हुआ कोई विचार
लोग बताते है कि शिलान्यास के बाद ना तो राजनेताओं ना प्रशासनिक अधिकारियों ने निर्माण कार्य शुरू करने की पहल की। यहां तक के झारखंड बने 21 साल बीत गए। बावजूद इस योजना पर कोई विचार नहीं हुआ।
कौरव नदी पर बांध निर्माण का किया था शिलान्यास
बता दे कि क्षेत्र में व्याप्त जलसंकट के निदान को संयुक्त बिहार सरकार के तत्कालीन मुख्यमंत्री स्व. बिंदेश्वरी दुबे ने स्वंय हताई द्वारपार जंगल में पहुंच कौरव नदी पर बांध निर्माण का शिलान्यास किया था।
अब यह सिर्फ चुनावी मुद्दा बन कर रह जाता है।
नदी का पानी बेकार
लोग बताते हे कि पूरा हो जाने के बाद यह योजना क्षेत्र के लगभग दो दर्जन से अधिक गांवों के लिए वरदान साबित होता। इससे सैकड़ों एकड़ बंजर भूमि को सिंचित किया जा सकता था। बांध नहीं बनने से नदी का पानी बेकार में बह कर चला जाता है।
इन गांवों की जमीन होगी सिंचित
विश्रामपुर प्रखंड के चेचरिया, ब्रहमोरिया, भंडार, बरिगांवा, अमवा, सेमरी, अटरिया, गुरी, नौगड़ा, नौडीहा, बसना, दमारो, झरहा, टोना, पिपरा, कधवन, सेवरा, जरका, लालगढ़, पंजरी, लादी, रबदा, बैरिया आदि सहित दो दर्जन से अधिक गांवों की भूमि को सिंचित किया जा सकता था।