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हम दूसरे राज्यों को देते ऑक्सीजन, पर हमारे मरीज को ही नहीं मिल पा रही जीवनरक्षक वायु

Jharkhand News दूसरी लहर में बड़ी संख्या में मरीजों को हाई फ्लो ऑक्सीजन की आवश्यकता पड़ रही है। झारखंड के बहुत कम अस्पतालों में मरीजों को हाई फ्लो ऑक्सीजन देने की व्यवस्था है। कई जिलों में व्यवस्था नहीं होने के कारण रांची के अस्पतालों पर मरीजों का अधिक लोड है।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Sun, 02 May 2021 07:26 PM (IST)Updated: Sun, 02 May 2021 08:06 PM (IST)
हम दूसरे राज्यों को देते ऑक्सीजन, पर हमारे मरीज को ही नहीं मिल पा रही जीवनरक्षक वायु
झारखंड के बहुत कम अस्पतालों में मरीजों को हाई फ्लो ऑक्सीजन देने की व्यवस्था है।

रांची, राज्य ब्यूरो। झारखंड से बड़ी मात्रा में ऑक्सीजन दूसरे राज्यों को जा रहा है। यहां ऑक्सीजन का उत्पादन यहां की जरूरत से अधिक हो रहा है। इसके बावजूद झारखंड के कोरोना मरीजों को समय पर ऑक्सीजन नहीं मिलने की बातें सामने आ रही है। इसकी मुख्य वजह राज्य में रिफलिंग प्लांटों व सिलेंडर का अभाव तथा अस्पतालों में ऑक्सीजन टैंक नहीं लग पाना है। अभी ऑक्सीजन से जुड़ी एक समस्या वैसे मरीजों को ऑक्सीजन नहीं मिल पाने की आ रही है, जिन्हें हाई फ्लाे ऑक्सीजन की आवश्यकता है।

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हालांकि हाई ऑक्सीजन फ्लो की जरूरत महसूस करनेवाले मरीजों की संख्या कम होती है, लेकिन जिन्हें भी इसकी जरूरत पड़ रही है, वे इसके लिए इधर से उधर भटक रहे हैं। दरअसल, जिन मरीजों के फेफड़े संक्रमण से काफी खराब हो चुके हैं और वह ऑक्सीजन खींचने लायक नहीं रह जाते, उन्हें हाई फ्लो ऑक्सीजन देना जरूरी होता है। यह काफी कारगर साबित होता है। चिकित्सकों के अनुसार, 85 से नीचे के ऑक्सीजन लेवल वाले मरीजों को इसकी आवश्यकता पड़ती है।

रिम्स के चिकित्सक डाॅ. देवेश कुमार के अनुसार, इसमें नेजल विधि से कई गुना अधिक (50-60 लीटर) ऑक्सीजन फेफड़ों तक पहुंचाया जाता है, जबकि मास्क के जरिए फेफड़ो में प्रति मिनट पांच से 12 लीटर ऑक्सीजन ही पहुंचाया जाता है। राज्य के अस्पतालों में इसकी व्यवस्था की बात करें तो राजधानी रांची में रिम्स के अलावा कुछ बड़े अस्पतालों में ही इसकी सुविधा उपलब्ध है।

ऐसा सिर्फ इसलिए क्योंकि अधिसंख्य अस्पतालों के पास ऑक्सीजन स्टोर करने की कैपेसिटी ही नहीं है। राज्य के अन्य जिलों की बात करें तो बड़े शहरों के कुछ अस्पतालों में ही यह व्यवस्था है। सभी छोटे और पिछड़े जिले में इसकी कोई व्यवस्था नहीं है। जानकारों का कहना है कि जिलों में इसकी पर्याप्त व्यवस्था नहीं होने के कारण ही रांची के अस्पतालों पर मरीजों का अधिक लोड है।

रिम्स में 600 मरीजों में 90 हाई फ्लो ऑक्सीजन सपोर्ट पर

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, वर्तमान में अस्पतालों में भर्ती मरीजों में दो से पांच फीसद मरीजों को हाई फ्लो ऑक्सीजन सपोर्ट की आवश्यकता पड़ रही है। लेकिन रांची के रिम्स में भर्ती मरीजों की संख्या कुछ और बयां कर रही है। बताया जाता है कि यहां लगभग 600 कोरोना मरीज भर्ती हैं जिनमें 80 से 90 हाई फ्लो ऑक्सीजन सपोर्ट पर हैं।

अधिक ऑक्सीजन खर्च होने से भी नहीं देते हाई फ्लो

कुछ अस्पतालों में मरीजों को हाई फ्लो ऑक्सीजन देने की व्यवस्था होने के बाद भी मरीजों को हाई फ्लो ऑक्सीजन नहीं दिया जा रहा है। इसमें ऑक्सीजन की अधिक खपत होने के कारण ऐसा नहीं करते। कई मरीजों के परिजनों की यह शिकायत रही है।

हाई फ्लो ऑक्सीजन इसलिए है जरूरी

-हाई फ्लो ऑक्सीजन में कई गुना अधिक ऑक्सीजन फेफड़े तक पहुंचाई जाती है।

-सामान्य मास्क के जरिए फेफड़े में प्रति मिनट पांच से छह लीटर ही ऑक्सीजन जाती है, लेकिन हाई फ्लो ऑक्सीजन विधि से प्रति मिनट 20 से लेकर 60 लीटर प्रति मिनट ऑक्सीजन दी जाती है।

-यही काम वेंटिलेटर भी करता है, लेकिन हाई फ्लो नेजल में यह कार्य आसानी से किया जाता है।

मरीजों को हाई फ्लो ऑक्सीजन नहीं मिलने की यह है वजह

-राज्य के अधिसंख्य अस्पतालों में इसकी व्यवस्था नहीं है। न तो नेजल मशीन है और न ही ऑक्सीजन स्टोर करने की क्षमता।

-गिने-चुने अस्पतालों को छोड़कर अधिसंख्य के पास लिक्विड ऑक्सीजन स्टोर करने के लिए टैंक नहीं है।


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