Exclusive Interview: दो जून से गोली-बंदूक डाउन, डंडा-झंडा से जनता की सेवा : डीजीपी
Jharkhand. झारखंड के डीजीपी डीके पांडेय 31 मई को सेवानिवृत्त हो रहे हैं। इससे पूर्व उन्होंने गुरुवार को दैनिक जागरण से बातचीत करते हुए कहा कि दो जून से गोली-बंदूक डाउन रहेगा।
रांची। डीजीपी डीके पांडेय 31 मई यानी आज सेवानिवृत्त हो जाएंगे। भारतीय पुलिस सेवा में 1984 बैच के इस आइपीएस अधिकारी ने जीवन में बहुत उतार-चढ़ाव देखा। बॉटनी से पीएचडी व अपने समय के गोल्ड मेडालिस्ट रहे डीके पांडेय का मिशन प्रोफेसर बनना था, लेकिन परिस्थितियों ने उन्हें पहले भारतीय वन सेवा का अधिकारी बनाया और बाद में भारतीय पुलिस सेवा के लिए चुने गए। बिहार के सीतामढ़ी जिले में 1988 में बतौर एसपी करियर की शुरुआत की, साहिबगंज, रेल जमशेदपुर के एसपी भी रहे।
डीजीपी डीके पांडेय सीआरपीएफ भी रहे। करीब 35 साल की पुलिस की नौकरी में समाज के अंतिम व्यक्ति तक को नजदीक से देखने वाले डीजीपी की इच्छा अब समाज सेवा करने की है। कहते हैं, दो जून से गोली-बंदूक डाउन, डंडा व झंडा से जनता की सेवा करूंगा। जनता को एक बार फिर करीब से देखूंगा, उनकी जिंदगी जिउंगा, उनके साथ लिट्टी-चोखा खाउंगा, उनकी तरह पुआल पर सोऊंगा और जरूरत पड़ी तो उनके लिए झंडा लेकर धरना-प्रदर्शन भी करूंगा। सेवानिवृत्त से एक दिन पूर्व दैनिक जागरण के सीनियर कोरोस्पोंडेंट दिलीप कुमार से विशेष बातचीत में डीजीपी डीके पांडेय ने बेबाकी से अपनी बातें रखीं और भविष्य की योजनाओं के बारे में बताया।
1. आप पुलिस की नौकरी में कैसे आए?
मैं गोरखपुर जिले के सुदूर गांव का रहने वाला हूं। पुलिस से दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं था। पिताजी गोरखपुर विश्वविद्यालय में कार्यरत थे। मैंने गोरखपुर में स्कूलिंग के बाद वहां के डीएवी डिग्री कॉलेज व गोरखपुर विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर में बॉटनी में गोल्ड मेडल जीता। उस समय गोल्ड मेडलिस्ट को पढ़ाने का मौका मिलता था और मुझे भी मिला। बाद में वहीं से पीएचडी की।
एंटी फंगल एंटी बायोटिक्स पर अपना शोध पत्र सौंपा। एक दवा भी बनाई थी। इसके बाद परिस्थिति वश दिल्ली चले गए। वहां छात्रावास में रहकर प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी की। पहले ही प्रयास में भारतीय वन सेवा में चयन हो गया। इसके बाद प्रशिक्षण के लिए देहरादून चले गए। पढ़ाई जारी रखी और 1984 में भारतीय पुलिस सेवा में चयन हो गया। फिर शुरू हो गई पुलिस की नौकरी।
2. एक प्रोफेसर पुलिस की नौकरी में आया। दोनों ही प्रोफेशन अलग-अलग है। वर्दी की नौकरी में आपका बॉटनी विषय कितना काम किया?
पीएचडी करने के बाद मुझे लगा कि उत्तर प्रदेश में मवेशियों में स्कीन संबंधित बीमारियां हो रही है। उसके लिए एक दवा तैयार की। 1982 में मेरी दवा बनकर तैयार हो गई। जब पुलिस की नौकरी में आया तो इस नौकरी में भी प्रोफेसर की तरह रहा। नक्सल व अपराध से क्लास-रूम की तरह निपटा, जिससे सफलता मिलती चली गई।
3. आप सेवानिवृत्त होने जा रहे हैं। भविष्य में आपकी क्या योजनाएं हैं?
डीजीपी पद से सेवानिवृत्त होने के बाद अब मेरा एक ही उद्देश्य है, जनता के लिए खुद को समर्पित कर देना। दो तारीख (दो जून) से गोली-बंदूक डाउन, डंडा व झंडा से जनता की सेवा करूंगा। पुलिस की 35 साल की नौकरी मेरे लिए तपस्या थी। दो बेटे हैं, दोनों साफ्टवेयर इंजीनियर हैं। भौतिकवाद से कभी अटैचमेंट नहीं रहा।
जिस जनता को नौकरी के दौरान नजदीक से देखा, अब सेवानिवृत्त होने के बाद उनके बीच जाऊंगा और उनकी जिंदगी जीकर उनके सुख-दुख को देखूंगा। उनकी आवाज सरकार तक पहुंचाता रहूंगा। जरूरी नहीं है कि राजनीति में आकर उनकी बात रखूं, समाज सेवा कर भी उनकी बात रखता रहूंगा। जरूरत पडऩे पर उनके लिए धरना-प्रदर्शन करना पड़े तो वह भी करूंगा।
4. क्या आपके कार्यकाल में नक्सलवाद का सफाया हो गया? आप बराबर, हर सभा में उन्हें ललकारते रहे। आपकी ललकार कहां तक सफल हो पाई?
24 फरवरी 2015 को जब डीजीपी बना तो एक ही संकल्प था राष्ट्र को सुरक्षित करना है। इस संकल्प को आम जनता तक पहुंचाने के लिए एक मिशन बनाया। उग्रवाद मुक्त झारखंड का मेरा संकल्प रहा है। जो किसी कारणवश भटक गए हैं, उन्हें सरकार की आत्मसमर्पण नीति के तहत मुख्यधारा से लौटने का ऑफर दिया। जो नहीं मानें उनके साथ युद्ध किया। आज स्थिति यह है कि 80 फीसद नक्सली समाप्त हो चुके हैं। जो बचे हैं, उन्हें आने वाले डीजीपी समाप्त करेंगे, ऐसा विश्वास है।
5. आप प्रत्येक भाषण में कहा करते थे सबका साथ, सबका विकास, यह है रघुवर सरकार। यह नारा यूं ही था या फिर आप भाजपा में शामिल होने जा रहे हैं?
देखिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक योगी हैं, एक फकीर हैं। उस फकीर के एक-एक शब्द संजीवनी बूटी की तरह है। मैं जनता की सेवा से जुड़ा रहूंगा। मुझे पद का लालच नहीं है। यह नारा उस बेहतर सरकार के लिए रहा है और सरकार के इस नारे का असर वर्तमान में लोकसभा चुनाव में भी दिखा है।
6. अपने कार्यकाल में आपको क्या नहीं कर पाने का मलाल रहा? नए डीजीपी के लिए क्या संदेश देना चाहेंगे?
अपने कार्यकाल से मैं संतुष्ट हूं। कोई मलाल नहीं रहा। नए डीजीपी से यही उम्मीद करता हूं कि वे हाथ में बंदूक थाम लें, सामने लक्ष्य है, उसे भेद डालें। अपने इस झारखंड को उग्रवाद मुक्त बनाएं।
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