विद्युत संशोधन विधेयक गैर भाजपा शासित राज्यों को अस्थिर करने का षड्यंत्र : हेमंत
रांची केंद्र सरकार के विद्युत संशोधन विधेयक-2020 के मसौदे पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने आपत्ति जताई है। शुक्रवार को इस सिलसिले में केंद्रीय ऊर्जा मंत्री राजकुमार सिंह के साथ वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए बैठक के बाद उन्होंने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि मसौदे का स्वरूप गैर भाजपा शासित राज्यों को अस्थिर करने का षड्यंत्र है।
रांची : केंद्र सरकार के विद्युत संशोधन विधेयक-2020 के मसौदे पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने आपत्ति जताई है। शुक्रवार को इस सिलसिले में केंद्रीय ऊर्जा मंत्री राजकुमार सिंह के साथ वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए बैठक के बाद उन्होंने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि मसौदे का स्वरूप गैर भाजपा शासित राज्यों को अस्थिर करने का षड्यंत्र है। अभी लगातार जिस प्रकार केंद्र सरकार नीतियां बना रही है, उससे उनकी कथनी-करनी स्पष्ट होकर उभर रही है। रेल के निजीकरण की शुरुआत हो चुकी है। देश में बन रही नीतियों पर चिंतन करने की आवश्यकता है। देखना होगा कि कहीं इससे देश का संघीय ढांचा तो प्रभावित नहीं हो रहा है?
इससे पूर्व वीडियो कांफ्रेंसिंग में केंद्रीय ऊर्जा मंत्री ने भरोसा दिलाया कि राज्य सरकारों द्वारा दिए जाने वाले जरूरी सुझावों को विद्युत (संशोधन) विधेयक में शामिल किया जाएगा। मुख्यमंत्री ने जोर देकर कहा कि विद्युत (संशोधन) विधेयक के मसौदे में कमजोर और पिछड़े राज्यों के साथ बिजली उपभोक्ताओं के हितों को सुरक्षित रखने की माकूल व्यवस्था की जाए।
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने दामोदर घाटी निगम (डीवीसी) द्वारा बार-बार बिजली कटौती का मसला भी बैठक के दौरान उठाया। कहा कि राज्य के सात जिलों में डीवीसी द्वारा बिजली आपूíत की जाती है। बकाया होने की बात कहकर बार-बार घटों बिजली आपूíत बाधित की जाती है। खास बात यह है कि जिन इलाकों में डीवीसी द्वारा बिजली दी जाती है, वहा ज्यादातर औद्योगिक क्षेत्र हैं। ऐसे में डीवीसी द्वारा बार-बार फरमान जारी कर बिजली आपूíत काटने पर रोक लगाई जाए। डीवीसी ने एकबार फिर बकाया नहीं देने पर बिजली आपूíत रोकने की चेतावनी दी है, जबकि वह राज्य सरकार के संसाधनों का पूरा इस्तेमाल करती है। उन्होंने केंद्रीय मंत्री को इस बात से भी अवगत कराया कि उनकी सरकार ने इस साल मार्च माह तक का बकाया डीवीसी को दे दिया है, जबकि जो पहले का बकाया है, वह पूर्ववर्ती सरकार के कार्यकाल का है। 2014 में शून्य बकाया था। ऐसे में केंद्र सरकार डीवीसी को यह निर्देश दे कि वह झारखंड की बिजली नहीं काटेगा। राज्य सरकार बिजली लेने के एवज में उसका भुगतान सुनिश्चित करेगी। बैठक में मुख्य सचिव सुखदेव सिंह, अपर मुख्य सचिव एल खियागते, मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव राजीव अरुण एक्का, झारखंड राज्य बिजली वितरण निगम के कार्यकारी निदेशक सह झारखंड ऊर्जा संचरण निगम लिमिटेड के प्रबंध निदेशक केके वर्मा भी मौजूद थे।
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नियामक आयोग को रहे टैरिफ तय करने का अधिकार :
मुख्यमंत्री ने केंद्रीय मंत्री से कहा कि झारखंड की एक बड़ी आबादी गरीबी रेखा के नीचे और ग्रामीण इलाके में रहती है। सरकार इनके घरों में सस्ती दर पर बिजली उपलब्ध कराने को प्रतिबद्ध है। इसके लिए विद्युत (संशोधन) विधेयक-2020 में क्रॉस सब्सिडी के मूल्य का निर्धारण करने की शक्ति राज्य विद्युत नियामक आयोग के साथ बनाए रखा जाए, ताकि घरेलू और कृषि उपभोक्ताओं के टैरिफ का निर्धारण हो सके। मुख्यमंत्री ने क्रॉस सब्सिडी इलेक्ट्रिसिटी रेगुलेटरी कमीशन के कार्य क्षेत्र से बाहर निकाल कर नेशनल टैरिफ पॉलिसी के माध्यम से तय करने की प्रक्रिया पर आपत्ति जताते हुए कहा कि इससे राज्य सरकारों की शक्तियों का हनन होगा।
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नियामक आयोग का केंद्रीयकरण राज्य के क्षेत्राधिकार का हनन :
मुख्यमंत्री ने स्टेट इलेक्ट्रिसिटी रेगुलेटरी कमीशन के केंद्रीयकरण के प्रस्ताव पर आपत्ति जताते हुए कहा कि यह राज्य सरकारों के क्षेत्राधिकार का हनन होगा। पूरे देश के लिए एक ही कमेटी का गठन करने से अतिरिक्त लाभ मिलने की संभावनाएं बहुत कम है।
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बिजली सब्सिडी देने की वर्तमान व्यवस्था जारी रहे :
राज्य विद्युत नियामक आयोग को विवादों के समाधान के लिए अलग प्राधिकार बनाने के प्रस्ताव पर आपत्ति जताते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि आयोग इन सभी मामलों के लिए सक्षम है और केंद्रीकृत अथॉरिटी से राज्यों की परेशानी बढ़ सकती है। वर्तमान में उपभोक्ताओं को सब्सिडी बिजली बिलों में कटौती के माध्यम से हस्तातरित की जाती है और इस व्यवस्था को आगे भी जारी रखा जाना चाहिए।
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