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सरयू राय ने रघुवर दास के जले पर छिड़का नमक, दर्द बर्दाश्‍त करें, चीखने पर जगहंसाई होगी...

Jharkhand News पूर्व मुख्‍यमंत्री रघुवर दास पर भ्रष्‍टाचार का केस दर्ज किया गया है। बहरहाल सियासी खींचतान के बीच राज्यसभा प्रकरण में सरयू राय भी कूद गए हैं। चीर प्रतिद्वंद्वी रघुवर दास के मजे लेते हुए उन्‍होंने बाबूलाल मरांडी पर भी तंज कसा है। हेमंत सोरेन के कसीदे पढ़े हैं।

By Alok ShahiEdited By: Published: Sat, 29 May 2021 08:11 PM (IST)Updated: Mon, 31 May 2021 05:02 AM (IST)
सरयू राय ने रघुवर दास के जले पर छिड़का नमक, दर्द बर्दाश्‍त करें, चीखने पर जगहंसाई होगी...
Jharkhand News: सरयू राय ने चीर प्रतिद्वंद्वी रघुवर दास के मजे लेते हुए बाबूलाल मरांडी पर भी तंज कसा है।

रांची, राज्य ब्यूरो। Jharkhand News झारखंड के पूर्व मुख्‍यमंत्री रघुवर दास पर भ्रष्‍टाचार अधिनियम की धाराओं में मुकदमा होने के बाद झारखंड की सियासत गर्म हो गई है। राज्यसभा चुनाव 2016 के हालिया घटनाक्रम और उससे उपजी राजनीति से वरिष्ठ विधायक सरयू राय भी जुड़ गए हैं। सरयू राय ने अपने ही अंदाज में ट्वीट कर इस प्रकरण पर तंज कसे हैं। हालांकि उन्होंने पूर्व सरकार के मुखिया का नाम नहीं लिया। हां, पूर्व मुख्यमंत्री और तत्कालीन झाविमो प्रमुख बाबूलाल मरांडी को शामिल करते हुए उन्हें भी टैग किया है।

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सरयू राय ने अपने ट्वीट में कहा है कि शरीर का फोड़ा दवा से ठीक न हो तो उसका ऑपरेशन होता है, नहीं तो वह भगंदर बन जाता है। चुनाव आयोग ने बाबूलाल मरांडी के दबाव में एक दवा दी पर फोड़ा ने अपना भी और झारखंड भाजपा का भी बेड़ा गर्क कर दिया। शुक्र है हेमंत सोरेन ने ऑपरेशन कर दिया। दर्द बर्दाश्त करें, चीखने से जगहंसाई होगी।

राज्यसभा चुनाव में जिन्होंने वोट नहीं दिया, उनपर भी दर्ज होनी चाहिए थी प्राथमिकी

राज्यसभा चुनाव-2016 में हार्स ट्रेडिंग मामले में रांची के जगन्नाथपुर थाने में दर्ज प्राथमिकी में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धाराएं तीन साल बाद जोड़ने और इसपर आगे की कार्रवाई पर हाई कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता अभय मिश्रा ने कानूनी पक्ष को स्पष्ट तरीके से बताया। उन्होंने कहा कि वोट के लिए लालच देने वाला, धमकाने वाला या पैैसे देने वाला उतना ही दोषी है, जितना पैसे लेने वाला है। इसलिए वोट के लिए धमकाने, लालच देने के मामले में राज्यसभा चुनाव-2016 में तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास, एडीजी अनुराग गुप्ता व अजय कुमार पर प्राथमिकी दर्ज हुई तो विशुनपुर के विधायक चमरा लिंडा व पांकी के विधायक बिट्टू सिंह पर प्राथमिकी क्यों नहीं दर्ज की गई। इन दोनों विधायकों ने तो वोट भी नहीं दिया था।

जांच तो इनके विरुद्ध भी होनी चाहिए थी। अब उनसे पूछताछ करके कितना सबूत जुटाया जा सकता है।अधिवक्ता अभय मिश्रा ने बताया कि यह प्राथमिकी भारत निर्वाचन आयोग के आदेश के आलोक में दर्ज की गई थी। भारत निर्वाचन आयोग ने 13 जून 2017 को मुख्य सचिव झारखंड के नाम से पत्र भेजकर सभी आरोपितों पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम व भादवि की धारा 171बी व 171सी में प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश दिया था। इसके बावजूद 29 मार्च 2018 को जमानतीय धारा 171बी व 171सी ही लगाया तथा गैर जमानतीय धारा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम लगाया ही नहीं। अब यह धारा जुड़ा है तो इसके तहत पुलिस साक्ष्य जुटाने का प्रयास करेगी।

पीसी एक्ट में सजा दिलाना टेढ़ी खीर, साक्ष्य महत्वपूर्ण

अधिवक्ता अभय मिश्रा ने बताया कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (पीसी एक्ट) में सजा दिलाना टेढ़ी खीर है। केस लंबा चलता है, साक्ष्य जुटाना बेहद महत्वपूर्ण होता है। न्यायालय में इस अधिनियम के तहत केस को साबित करना बहुत मुश्किल होता है। यह राजनीतिक स्टंट बनकर रह जाता है। गवाह सामने आ ही नहीं पाते हैं। ऑडियो-विजुअल साक्ष्य ही पर्याप्त नहीं है केस को साबित करने के लिए। एक पशुपालन घोटाला छोड़कर एक भी ऐसा मामला नहीं है, जिसमें इस एक्ट के तहत सजा हुई हो। आयुष नियुक्ति घोटाला, दवा घोटाला में मामला अब भी न्यायालय में विचाराधीन है। 2011 में विधायकों की खरीद-फरोख्त के मामले में पुलिस के पर्याप्त साक्ष्य के दावे के बावजूद अब तक मामला न्यायालय में विचाराधीन है। इसी क्रम में एक तत्कालीन विधायक साइमन मरांडी का निधन भी हो गया था।

वोट के लिए धमकाना, लालच देना, फायदा पहुंचाना पीसी एक्ट का हिस्सा

राज्यसभा चुनाव-2016 में हार्स ट्रेडिंग मामले में रांची के जगन्नाथपुर थाने में दर्ज प्राथमिकी में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धाराएं तीन साल जोड़ने और इसपर आगे की कार्रवाई के संदर्भ में इस केस को देख रहे हाई कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव कुमार ने इसके कानूनी पक्ष को स्पष्ट किया है। उन्होंने बताया कि अगर कोई कहे कि राज्यसभा चुनाव के समय पर जब पैसे का लेनदेन हुआ ही नहीं तो पीसी एक्ट क्यों, तो यह गलत होगा। सिर्फ पैसे का लेनदेन ही भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम में नहीं आएगा, वोट के लिए धमकाना, लालच देना और वोट नहीं देने वालों को फायदा पहुंचाना भी पीसी एक्ट का हिस्सा है और तब यह सब हुआ था तथा इसके सबूत भी पर्याप्त हैं।

रघुवर दास के खिलाफ सबूत पर्याप्त

अधिवक्ता राजीव कुमार ने बताया कि यह प्राथमिकी भारत निर्वाचन आयोग के आदेश के आलोक में दर्ज की गई थी। भारत निर्वाचन आयोग ने 13 जून 2017 को मुख्य सचिव झारखंड के नाम से पत्र भेजकर सभी आरोपितों पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम व भादवि की धारा 171बी व 171सी में प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश दिया था। इसके बावजूद तत्कालीन मुख्य सचिव के निर्देश पर तत्कालीन जगन्नाथपुर के थानेदार ने 29 मार्च 2018 को जमानतीय धारा 171बी व 171सी ही लगाया तथा गैर जमानतीय धारा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम लगाया ही नहीं। इसके विरोध में आयोग ने अदालत में शपथ पत्र दायर भी किया था। पर्याप्त सबूत के बावजूद पुलिस-प्रशासन ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा जोड़ने में ही तीन साल लगा दिया। पीसी एक्ट गैर जमानतीय धारा है, जिसमें थाने से जमानत नहीं दिया जा सकता है। जमानत के लिए अदालत जाना ही पड़ेगा।

रघुवर दास पर उसी वक्त होनी थी प्राथमिकी, पुलिस ने जानबूझकर विलंब किया

वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव कुमार ने बताया कि राज्यसभा चुनाव में रघुवर दास ने सभी दांव-पेंच लगाकर दो सीट दिलाने में सफलता हासिल की थी। अपने प्रत्याशी के पक्ष में वोट दिलाना ही नहीं, वोट नहीं भी दिलाना भ्रष्टाचार है। कांग्रेस के तत्कालीन विधायक बिट्टू सिंह पर सीआइडी में एक केस था, जिसे लेकर उनपर भी राज्य के एक वरिष्ठ आइपीएस अधिकारी ने दबाव बनाया और जेल भेजने की धमकी दी, जिसके बाद बिट्टू सिंह ने वोट नहीं दिया था।

विशुनपुर के विधायक चमरा लिंडा ने भी वोट नहीं दिया था। बाद में उन्हें एक विद्युत निगम में अच्छा पद भी मिला था। यह भ्रष्टाचार नहीं तो और क्या है। रघुवर सरकार ने अपना पावर दिखाया नहीं तो प्राथमिकी अभियुक्त रघुवर दास ही बनते और उन्हें इसमें सहयोग करने का आरोप एडीजी अनुराग गुप्ता व अजय कुमार पर लगता, जो धारा 120बी के आरोपित बनते। ऐसा नहीं करके रघुवर को बचाने की कोशिश की गई थी। सरकार बदलने पर रघुवर अप्राथमिकी अभियुक्त बनाए गए थे।

पीसी एक्ट लगने के बाद एसीबी में चला जाएगा मामला

वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव कमार के अनुसार जगन्नाथपुर थाने के उक्त केस में जैसे ही पीसी एक्ट जुड़ेगा, राज्य सरकार के निर्देश पर यह मामला भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो में चला जाएगा। अदालत ही नहीं, राज्य सरकार भी उक्त केस को एसीबी में भेजने के लिए सक्षम है। पीसी एक्ट लगने के बाद एसीबी के केस के आधार पर भविष्य में प्रवर्तन निदेशालय की भी एंट्री हो जाएगी।


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