Move to Jagran APP

Jharkhand Byelection: क्या वाकई दुमका और बेरमो सीटों की जीत-हार से राज्य की राजनीति पर कोई असर नहीं पड़ने वाला है?

Jharkhand Byelection दुमका में बसंत सोरेन के सामने भाजपा ने पूर्व मंत्री डॉ. लुईस मरांडी को मैदान में उतारा है। वह 2014 में हेमंत सोरेन को चुनाव हरा चुकी हैं। हेमंत सोरेन उस वक्त मुख्यमंत्री थे। यहां आमने-सामने का मुकाबला है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Fri, 30 Oct 2020 09:10 AM (IST)Updated: Fri, 30 Oct 2020 09:13 AM (IST)
Jharkhand Byelection: क्या वाकई दुमका और बेरमो सीटों की जीत-हार से राज्य की राजनीति पर कोई असर नहीं पड़ने वाला है?
विधानसभा चुनाव में सत्ता खोने के बाद भाजपा अपने कार्यकर्ताओं को निराशा के भंवर से बाहर निकालना चाहती है।

रांची, प्रदीप कुमार शुक्ला। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन दावा कर रहे हैं कि दुमका और बेरमो सीट पर हो रहे उपचुनाव में हार-जीत से उनकी गठबंधन सरकार की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ने वाला है। उनके पास 50 विधायकों का प्रचंड बहुमत है। यह बात सही भी है, लेकिन वह अगले ही पल अपने ही दावे पर यह कहकर सवालिया निशान भी लगा देते हैं कि अगर वह पांच साल तक सत्ता में रहे तो भाजपा के सारे पूर्व मंत्री जेल में होंगे।

loksabha election banner

दावों-प्रतिदावों के बीच दुमका का चुनाव : क्या वाकई दोनों सीटों की जीत-हार से राज्य की राजनीति पर कोई असर नहीं पड़ने वाला है? क्या कांग्रेस और झामुमो सरकार को अस्थिर करने का भाजपा पर जो आरोप मढ़ रहे हैं, उसमें कोई दम नहीं है? भाजपा भी कह रही है कि दुमका सीट हारते ही हेमंत सोरेन सरकार का पतन होना शुरू हो जाएगा और अगले साल मार्च तक राज्य में सत्ता परिवर्तन हो जाएगा। इन दावों-प्रतिदावों के बीच दुमका का चुनाव काफी दिलचस्प हो गया है। इतना तय है कि यदि झामुमो यह सीट गंवाती है तो राज्य में बड़े राजनीतिक बदलाव की संभावनाओं की चर्चा को बल मिल जाएगा।

भाजपा वंशवाद को लेकर हमलावर : दुमका सीट मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के छोड़ने के बाद ही खाली हुई है। विधानसभा चुनाव में दुमका के साथ साथ वह बरहेट से भी चुने गए थे। दुमका को सोरेन परिवार की राजनीति का गढ़ माना जाता है। यहां से शिबू सोरेन भी चुनाव जीतते रहे हैं। हालांकि पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा के सुनील सोरेन ने शिबू सोरेन को हराकर परिवार की राजनीति को तगड़ा झटका दिया था। अब हेमंत सोरेन के भाई बसंत सोरेन यहां से झामुमो के टिकट पर मैदान में हैं। भाजपा वंशवाद को लेकर तो हमलावर है ही, परिवार के भ्रष्टाचार, राज्य की बिगड़ती कानून-व्यवस्था, ठप पड़े विकास कार्यो को लेकर भी लगातार हेमंत सरकार को घेर रही है।

बेरोजगारों को भत्ता क्यों नहीं मिला? : भाजपा खुलकर कह रही है कि हेमंत सरकार की पिछले 10 महीने की कोई उपलब्धि है तो वह है राज्य में ट्रांसफर-पोस्टिंग को उद्योग बना देना और अवैध खनन कराना। भाजपा पूछ रही है कि सरकार के वादों का क्या हुआ? 10 महीने बीत गए, किसानों का ऋण माफ क्यों नहीं हुआ? बेरोजगारों को भत्ता क्यों नहीं मिला? गरीबों को न्याय योजना के तहत जो धनराशि देने का वादा किया गया था, उसका क्या हुआ। दूसरी ओर राज्य में बेटियों के खिलाफ यौन हिंसा की घटनाओं में वृद्धि हो रही है और पुलिस महानिदेशक कह रहे हैं कि दुष्कर्म की घटनाएं रोक पाना सिर्फ पुलिस के बूते की बात नहीं है। यहां तक कि मुख्यमंत्री ने खुद भी कहा कि कोरोना काल में लोगों की मनोवृत्ति में आए बदलाव के चलते भी दुष्कर्म की घटनाएं बढ़ी हैं। इन दोनों बयानों को लेकर भाजपा हेमंत सरकार को घेर रही है। साथ ही पूछ रही है कि हेमंत हैं तो हौसला है, वाले नारे का क्या हुआ?

झारखंड के लोग बिहार के चुनाव पर टकटकी लगाए : हेमंत भाजपा के राज्य नेतृत्व पर भी पलटवार कर पूछ रहे हैं कि राज्य के साथ हो रहे भेदभाव को लेकर भाजपा सांसदों ने चुप्पी क्यों साध रखी है? वह झारखंडी अस्मिता की बात भी कह रहे हैं, लेकिन वह भाजपा के इन सवालों का जवाब नहीं दे पा रहे हैं कि जो वादे करके सत्ता में आए थे, उनमें से अब तक एक भी वादा पूरा क्यों नहीं हो पाया? सत्ता में भागीदार कांग्रेस और राजद बिहार में एनडीए से मुकाबला कर रहे हैं। वहां भी किसानों की ऋणमाफी और युवाओं को बेरोजगारी भत्ता देने जैसे तमाम वादे इन दलों के घोषणापत्र में शामिल हैं। झारखंड के लोग बिहार के चुनाव पर तो टकटकी लगाए ही हैं, राज्य की दो सीटों के परिणाम को लेकर भी उनमें काफी उत्सुकता है।

दुमका में बसंत सोरेन के सामने भाजपा ने पूर्व मंत्री डॉ. लुईस मरांडी को मैदान में उतारा है। वह 2014 में हेमंत सोरेन को चुनाव हरा चुकी हैं। हेमंत सोरेन उस वक्त मुख्यमंत्री थे। यहां आमने-सामने का मुकाबला है। अगर झामुमो के कोर मतदाताओं में सेंधमारी हुई तो परिणाम चौंकाने वाला हो सकता है। यही वजह है कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन सारा राजकाज छोड़ वहीं कैंप कर रहे हैं। झामुमो प्रमुख शिबू सोरेन को भी चुनाव प्रचार में उतारा गया है। दुमका उपचुनाव भाजपा में वापसी के बाद पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी की पहली परीक्षा है। भाजपा के कई कद्दावर नेताओं ने यहां कैंप कर रखा है तो इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि पिछले विधानसभा चुनाव में सत्ता खोने के बाद भाजपा अपने कार्यकर्ताओं को निराशा के भंवर से बाहर निकालना चाहती है।

[स्थानीय संपादक, झारखंड]


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.